पाठ्यक्रम: GS1/ भूगोल
संदर्भ
- हाल ही में नेपाल के निकट पश्चिमी चीन में 7.1 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया।
परिचय
- भूकंप का केन्द्र तिब्बत के शिगात्से क्षेत्र के टिंगरी काउंटी में पाया गया, जो एक महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह माउंट एवरेस्ट के लिए ‘प्रवेश द्वार’ के रूप में कार्य करता है।
- भूकंप का मुख्य आघात संभवतः ल्हासा क्षेत्र में हुआ था, जो एक विशिष्ट भूपर्पटी का खंड है जो प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं में शामिल है, जिसमें चीन द्वारा निर्माणाधीन विश्व का सबसे बड़ा जलविद्युत बाँध भी सम्मिलित है।
भूकंप क्या है?
- भूकंप पृथ्वी की सतह के नीचे होने वाली विक्षोभ के कारण उत्पन्न धरातल का कंपन है, जब दो ब्लॉक एक भ्रंश के साथ एक दूसरे के निकट घर्षण करते हैं।
- इस अचानक विक्षोभ के कारण संग्रहित प्रत्यास्थ तनाव ऊर्जा भूकंपीय तरंगों के रूप में मुक्त हो जाती है, जिससे भूमि कम्पन करने लगती है।
- भूकंप केंद्र और हाइपोसेंटर: पृथ्वी की सतह के नीचे वह स्थान जहाँ भूकंप उत्पन्न होता है उसे हाइपोसेंटर कहा जाता है, और पृथ्वी की सतह पर इसके ठीक ऊपर स्थित स्थान को एपिसेंटर कहा जाता है।
- भूकंप की तीव्रता को रिक्टर पैमाने पर तथा दृश्यमान क्षति के आधार पर तीव्रता को मरकेली पैमाने पर मापा जाता है।
फॉरशॉक(Foreshocks) और आफ्टरशॉक(Aftershocks)
- फॉरशॉक: ये कम प्रभावशील भूकंप होते हैं जो बड़े भूकंप के समान स्थान पर घटित होते हैं।
- अत्यधिक प्रभावशाली, मुख्य भूकंप को मेनशॉक कहा जाता है।
- आफ्टरशॉक: ये कम प्रभावशील भूकंप होते हैं जो मुख्य भूकंप के पश्चात् उसी स्थान पर घटित होते हैं।
भूकंपों का मापन
- भूकंप की घटनाओं को कंपन की तीव्रता या परिमाण के अनुसार मापा जाता है।
- रिक्टर स्केल: भूकंपीय तरंग आयाम के आधार पर छोटे से मध्यम भूकंपों को मापता है।
- मरकली के नाम पर रखा गया तीव्रता पैमाना, घटना से होने वाली दृश्यमान क्षति पर विचार करता है।
भूकंपीय तरंगे
- भूकंपीय तरंगें भूकंप से उत्पन्न ऊर्जा तरंगें होती हैं जो पृथ्वी की परतों से होकर गुजरती हैं, जिससे भूमि कम्पन करती है।
- इन्हें मुख्यतः दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है: बॉडी वेव और सतही तरंगें।
- बॉडी वेव: ये तरंगें पृथ्वी के आंतरिक भाग से होकर गुजरती हैं। वे अधिक तेज़ होते हैं और भूकंप के दौरान सतही तरंगों से पहले पहुँचते हैं।
- सतही तरंगें पृथ्वी की सतह पर चलती हैं और बॉडी वेव की तुलना में धीमी होती हैं, लेकिन अपने बड़े आयाम के कारण सबसे अधिक हानि पहुँचाती हैं।
बॉडी वेव के प्रकार
- P-तरंगें (प्राथमिक तरंगें): ये सबसे तेज़ भूकंपीय तरंगें हैं और सीस्मोग्राफ द्वारा दर्ज की जाने वाली प्रथम तरंगें हैं। वे संपीडनात्मक या अनुदैर्घ्य तरीके से चलते हैं।
- P-तरंगें ठोस, तरल और गैसों के माध्यम से यात्रा कर सकती हैं।
- S-तरंगें (द्वितीयक तरंगें): ये अनुप्रस्थ स्वरूप में गमन करती हैं, जहाँ कण तरंग के संचरण की दिशा के लंबवत गमन करते हैं।
- S-तरंगें केवल ठोस पदार्थों के माध्यम से ही यात्रा कर सकती हैं, क्योंकि तरल पदार्थ और गैसें कर्तन तनाव का समर्थन नहीं करती हैं।
हिमालय में भूकंप का कारण
- लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व, भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकराई, जिसके परिणामस्वरूप चट्टानें मुड़ गईं और ऊपर उठ गईं, जिससे हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ।
- दोनों प्लेटों के मध्य तनाव बढ़ता जा रहा है, क्योंकि भारतीय प्लेट अभी भी लगभग 60 मिमी/वर्ष की गति से आगे बढ़ रही है।
- भूकंप और कंपन तब उत्पन्न होते हैं हैं जब क्षेत्र में चट्टान की संरचनाएँ तनाव के अनुसार समायोजित होने के लिए थोड़ा सा स्थानांतरित होती हैं।
हिमालय में भूकंप का प्रभाव
- टेक्टोनिक गतिविधि: यह क्षेत्र भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के अभिसरण क्षेत्र पर स्थित है।
- यह क्षेत्र निरंतर प्लेटों की गति के कारण भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय रहता है, जिसके कारण यहां बार-बार भूकंप आते रहते हैं।
- जलवैज्ञानिक महत्त्व: विस्तृत हिमालयी क्षेत्र को ग्लेशियरों, झीलों और नदियों में संग्रहित जल के विशाल भंडार के कारण ‘तीसरे ध्रुव’ के रूप में जाना जाता है।
- भूकंप से ग्लेशियर अस्थिर हो सकते हैं, नदियों के मार्ग बदल सकते हैं, बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है, जिससे हिमालय के जल स्रोतों पर निर्भर लाखों लोगों के लिए जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
- सामरिक और अवसंरचनात्मक महत्त्व: ऐसे क्षेत्रों में भूकंप प्रमुख ऊर्जा उत्पादन परियोजनाओं को प्रभावित कर सकता है और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न कर सकता है।
भूकंप के प्रति भारत की संवेदनशीलता – भारत भूकंप के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, तथा इसका 58.6% भूभाग मध्यम से लेकर बहुत उच्च तीव्रता वाले भूकंपों के प्रति संवेदनशील है। – भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा निर्धारित भूकंपीय खतरे के स्तर के आधार पर भारत को चार भूकंपीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। 1. भूकंपीय क्षेत्र II (न्यून भूकंपीय जोखिम): यह क्षेत्र भूकंपीय दृष्टि से सबसे कम सक्रिय है, तथा इसमें भूकंप की तीव्रता कम होती है। इसमें दक्षिणी प्रायद्वीप के कुछ हिस्से, जैसे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ भाग सम्मिलित हैं। 2. भूकंपीय क्षेत्र III (मध्यम भूकंपीय जोखिम): इस क्षेत्र में मध्यम भूकंपीय गतिविधि होती है। इसमें दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ भाग शामिल हैं। 3. भूकंपीय क्षेत्र IV (उच्च भूकंपीय जोखिम): इस क्षेत्र में उच्च तीव्रता वाले भूकंपों की उच्च आवृत्ति होती है। भारत के उत्तरी एवं पूर्वोत्तर भाग के क्षेत्र, जिनमें जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के कुछ हिस्से, तथा असम, नागालैंड और मणिपुर के कुछ हिस्से शामिल हैं। 4. भूकंपीय क्षेत्र V (अत्यंत उच्च भूकंपीय जोखिम): यह क्षेत्र भूकंपीय दृष्टि से सर्वाधिक सक्रिय है, जहाँ निरंतर और तीव्र भूकंप आते रहते हैं। इसमें मुख्य रूप से हिमालयी क्षेत्र, पूर्वोत्तर राज्य और गुजरात शामिल हैं। |
Source: TH