भारत में जैविक खेती में वृद्धि 

पाठ्यक्रम: GS3/कृषि और अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने घोषणा की कि आगामी तीन वर्षों में भारत का जैविक निर्यात 20,000 करोड़ रुपये तक पहुँचने की संभावना है।

परिचय 

  • अग्रणी निर्यातक: जैविक खेती क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में सुदृढ़ वृद्धि देखी गई है, तथा भारत जैविक उत्पादों के विश्व के अग्रणी निर्यातकों में से एक के रूप में उभरा है।
  • जैविक निर्यात बाजार: वर्तमान में भारत का जैविक उत्पाद निर्यात 5,000-6,000 करोड़ रुपये है।
    • 2028 तक भारत 20,000 करोड़ रुपये का निर्यात का लक्ष्य प्राप्त कर सकता है, जो वर्तमान स्तर से लगभग 3-3.5 गुना अधिक है। 
    • प्रमुख निर्यात वस्तुओं में जैविक अनाज, दालें, तिलहन, मसाले, चाय, कॉफी एवं ताजा उपज सम्मिलित हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान जैसे देशों में इनकी बहुत माँग है।

जैविक खेती (Organic Farming)

  • जैविक खेती, कृषि की एक ऐसी विधि है जिसमें सिंथेटिक रसायनों, कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग से बचा जाता है।
  • यह मृदा के स्वास्थ्य एवं जैव विविधता को बनाए रखने के लिए खाद, फसल चक्र और जैविक कीट नियंत्रण जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं तथा इनपुट का उपयोग करने पर केंद्रित है।
  • इसका लक्ष्य पर्यावरण की दृष्टि से सतत तरीके से भोजन का उत्पादन करना, स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करना है।

भारत में जैविक खेती 

  • मार्च 2024 तक, भारत में 1,764,677.15 हेक्टेयर जैविक खेती की भूमि है, जिसमें से 3,627,115.82 हेक्टेयर भूमि को जैविक खेती में परिवर्तित किया जा रहा है।
  • इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर मूवमेंट्स (IFOAM) सांख्यिकी 2022 द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, प्रमाणित क्षेत्र के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है।
    • मध्य प्रदेश में जैविक प्रमाणीकरण के अंतर्गत सबसे बड़ा क्षेत्र है, इसके पश्चात् महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक का स्थान है।
  • सिक्किम भारत का पहला पूर्ण जैविक राज्य है, जिसने लगभग 75,000 हेक्टेयर कृषि भूमि पर जैविक पद्धतियों को लागू किया है।
  • जैविक खेती करने वाले किसानों की संख्या के मामले में भारत विश्व स्तर पर प्रथम स्थान पर है।

भारत में जैविक खेती के विकास को समर्थन देने वाले कारक

  • स्वास्थ्य जागरूकता: स्वास्थ्य संबंधी बढ़ती चिंताओं के कारण उपभोक्ता स्वास्थ्यवर्धक, रसायन मुक्त भोजन की माँग में वृद्धि कर रहे हैं।
  • पर्यावरणीय लाभ: जैविक खेती मृदा के स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है, प्रदूषण को कम करती है और जल का संरक्षण करती है, जो सतत कृषि पद्धतियों के साथ संरेखित है।
  • सरकारी सहायता: सब्सिडी, प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं जैविक प्रमाणन योजनाओं जैसी विभिन्न पहल किसानों को जैविक पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
  • वैश्विक बाजार की माँग: जैविक उत्पादों की बढ़ती वैश्विक माँग भारतीय किसानों के लिए निर्यात के अवसर उत्पन्न  करती है।
  • सांस्कृतिक और पारंपरिक प्रथाएँ: भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सतत्  खेती की परंपरा है, जो स्वाभाविक रूप से जैविक तरीकों का समर्थन करती है।
  • जलवायु परिवर्तन लचीलापन: जैविक खेती को पारंपरिक कृषि के लिए अधिक लचीले विकल्प के रूप में देखा जाता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील है।

चुनौतियाँ

  • उच्च प्रारंभिक लागत: जैविक खेती में परिवर्तन के लिए प्रशिक्षण, प्रमाणन एवं जैविक बीज और उर्वरक जैसे इनपुट में निवेश की आवश्यकता होती है, जो महंगा हो सकता है।
  • ज्ञान और कौशल अंतराल: कई किसानों के पास जैविक खेती तकनीकों में पर्याप्त ज्ञान और विशेषज्ञता की कमी है, जो अपनाने में बाधा उत्पन्न करती  है।
  • इनपुट तक सीमित पहुँच: जैविक इनपुट जैसे जैव-कीटनाशक एवं  उर्वरक सामान्यतः  दुर्लभ या महंगे होते हैं।
  • प्रमाणन संबंधी मुद्दे: जैविक प्रमाणन प्राप्त करना एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया हो सकती है, जिससे छोटे पैमाने के किसानों के लिए बाजार तक पहुँच सीमित हो जाती है।
  • कम पैदावार: जैविक खेती के परिणामस्वरूप सामान्यतः शुरुआत में फसल की उपज कम होती है, जो किसानों की आय को प्रभावित कर सकती है।
  • बाजार की माँग और बुनियादी ढांचा: जैविक उत्पादों के लिए सीमित बुनियादी ढांचा एवं बाजार चैनल किसानों के लिए लाभप्रदता और पहुँच को कम करते हैं।
  • कीट और रोग प्रबंधन: रसायनों के बिना कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, विशेषकर प्रतिकूल मौसम की स्थिति के दौरान।

भारत में जैविक प्रमाणीकरण प्रणालियाँ

  • राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (NPOP): यह निर्यात बाजार के विकास के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन है।
    • यह एक तृतीय पक्ष प्रमाणन कार्यक्रम है, जिसमें जैविक उत्पादों के लिए उत्पादन, प्रसंस्करण, व्यापार एवं निर्यात आवश्यकताओं जैसे सभी चरणों में उत्पादन और संचालन गतिविधियों को सम्मिलित किया जाता है।
  • सहभागी गारंटी प्रणाली (PGS-India): संचालन में हितधारक (किसान/उत्पादक सहित) एक-दूसरे के उत्पादन प्रथाओं का आकलन, निरीक्षण एवं  सत्यापन करके और सामूहिक रूप से उत्पाद को जैविक घोषित करके PGS-India प्रमाणन के संचालन के सम्बन्ध  में निर्णय लेने तथा आवश्यक निर्णय लेने में सम्मिलित  होते हैं।
    • यह घरेलू बाजार की माँग को पूरा करने के लिए कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन है।
  • खाद्य सुरक्षा विनियमन ने जैविक भारत लोगो के अंतर्गत घरेलू बाजार में विक्रय किए जाने के लिए जैविक उत्पादों के लिए NPOP or PGS के अंतर्गत प्रमाणित होना अनिवार्य कर दिया है।

जैविक खेती के लिए सरकार की पहल

  • परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY): इस योजना में जैविक खेती में लगे किसानों को उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण, प्रमाणन और विपणन तथा कटाई के बाद के प्रबंधन तक सभी प्रकार की सहायता देने पर बल दिया गया है।
    • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण इस योजना के अभिन्न अंग हैं।
  • उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन (MOVCDNER): इस योजना को विशेष रूप से जैविक खेती में लगे किसानों को सहायता देने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों में लागू किया जा रहा है।
  • राष्ट्रीय जैविक खेती मिशन (NMOF): इसका उद्देश्य जैविक खेती के तरीकों को बढ़ावा देना, वित्तीय सहायता प्रदान करना और प्रमाणन प्रक्रियाओं का समर्थन करना है।
  • मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन: ऐसे कार्यक्रम जो मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिए जैविक खाद, कम्पोस्ट और अन्य स्थायी माध्यमों  के उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं।
  • बाजार संपर्कों के लिए समर्थन: जैविक खेती निर्यात संवर्धन कार्यक्रम (OFEP) जैसी पहल किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़कर जैविक उत्पादों के निर्यात को सुविधाजनक बनाती है।

आगे की राह

  • ब्रांडिंग: सरकार वैश्विक बाजारों में दृश्यता और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए एकीकृत ब्रांड के अंतर्गत भारत के जैविक उत्पादों को बढ़ावा दे सकती है।
  • घरेलू खपत में वृद्धि: जैविक उत्पादों की घरेलू खपत को प्रोत्साहित करने से किसानों को विविधता लाने और सतत् खेती के माध्यमों  को अपनाने में सहायता  मिलेगी।
  • इस क्षेत्र के विकास से किसानों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने, रोजगार उत्पन्न होने और अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देने की संभावना है, जबकि जैविक कृषि के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में देश की प्रतिष्ठा सुदृढ़  होगी।

Source: ET

 

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