चीन की मेगा-बाँध परियोजना के निहितार्थ

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • चीन ने तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो (या जांगबो) नदी पर विश्व की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना के निर्माण को मंजूरी दे दी है।

परिचय

  • 60 गीगावाट क्षमता वाली इस परियोजना को चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना (2020) में सम्मिलित किया गया था और इसे 2024 में सहमति  दी गई थी। बाँध तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के मेडोग काउंटी में ग्रेट बेंड पर बनाया जाएगा, जहाँ नदी यू-टर्न लेती है। 137 बिलियन डॉलर की इस जलविद्युत परियोजना से वार्षिक लगभग 300 बिलियन किलोवाट-घंटे विद्युत उत्पन्न  होने की संभावना है – जो संभवतः थ्री गॉर्जेस डैम से तीन गुना अधिक ऊर्जा है।
    • चीन ने पहले भी थ्री गॉर्जेस डैम (यांग्त्ज़ी) और जांगमु डैम (यारलुंग जांगबो) जैसे महत्त्वपूर्ण बाँधों का निर्माण किया है।
  • इस परियोजना में भारत और भूटान मध्य रिपेरियन (नदी-तटवर्ती) देश हैं, जबकि बांग्लादेश निम्न रिपेरियन देश है।
    • मुख्य नदी भूटान से होकर नहीं प्रवाहित होती है, लेकिन देश का 96% क्षेत्र इस बेसिन के अंतर्गत सम्मिलित है।
चीन की मेगा-बाँध परियोजना

यारलुंग त्सांगपो (ज़ंगबो) नदी

  • इसका उद्गम तिब्बत से होता है और अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है, जहाँ इसे सियांग के नाम से जाना जाता है।
  • असम में यह दिबांग एवं लोहित जैसी सहायक नदियों से मिलती है और इसे ब्रह्मपुत्र कहा जाता है।
  • इसके पश्चात् यह नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है और बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है।

परियोजना का प्रभाव

  • जल विज्ञान संबंधी प्रभाव: जल प्रवाह पैटर्न में परिवर्तन से मानसून के दौरान बाढ़ आने की संभावना बढ़ जाती है तथा शुष्क मौसम में जल की कमी हो जाती है, जिससे भारत और बांग्लादेश जैसे निम्न घाटी क्षेत्र के देश प्रभावित होते हैं।
  • पारिस्थितिक जोखिम: जलीय प्रजातियों एवं आर्द्रभूमि सहित जैव विविधता और नदी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जोखिम ।
  • भूकंपीय और संरचनात्मक जोखिम: ब्रह्मपुत्र बेसिन भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय है, जैसा कि 1950 के असम-तिब्बत भूकंप से प्रमाणित होता है।
    • इस क्षेत्र में एक विशाल बाँध के निर्माण से संरचनात्मक विफलता के कारण बाँध के टूटने एवं बाढ़ जैसी आपदाएँ घटित हो सकती हैं।
  • भू-राजनीतिक तनाव: जल संसाधनों पर नियंत्रण से चीन एवं निचले तटवर्ती देशों (भारत, भूटान, बांग्लादेश) के मध्य तनाव बढ़ सकता है।
  • आपदा सुभेद्यता (Disaster Vulnerability): ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ़्लड (GLOFs) का बढ़ता जोखिम, जैसा कि 2023 सिक्किम बाढ़ में देखा गया था।

सहयोग के लिए समन्वय तंत्र

  • सीमापार से संबंधित नदियों पर सहयोग के लिए एक व्यापक समझौता ज्ञापन तथा ब्रह्मपुत्र एवं सतलुज पर दो अलग-अलग समझौता ज्ञापन हैं।
    • प्रत्येक पाँच वर्ष में नवीकरणीय ब्रह्मपुत्र समझौता ज्ञापन (MoU) 2023 में समाप्त हो गया।
    • इस व्यापक समझौता ज्ञापन (MoU) पर 2013 में हस्ताक्षर किये गये थे और इसकी कोई समाप्ति तिथि नहीं है।
  • चीन और भारत के मध्य जल विज्ञान संबंधी आँकड़ों के आदान-प्रदान के लिए 2006 से विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ELM) विद्यमान है, लेकिन दोनों के बीच व्यापक संधि का अभाव है।
  • किसी भी तटवर्ती देश (चीन, भारत, भूटान, बांग्लादेश) ने अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों के गैर-नौवहन उपयोग के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1997) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

आगे की राह

  • कूटनीतिक संवाद को सुदृढ़ करना: पारदर्शी जल-बँटवारे समझौतों के लिए चीन, भारत, भूटान और बांग्लादेश के मध्य ।
  • संस्थागत तंत्र: जल प्रवाह, बाँध संचालन एवं आपदा पूर्वानुमान पर डेटा साझा करने के लिए एक स्थायी सीमा पार नदी प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना करना।
  • आपदा की तैयारी (Disaster Preparedness): राहत प्रयासों के लिए साझा संसाधनों सहित आपदा प्रबंधन के लिए क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना।

Source: TH