अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट 2024(Adaptation Gap Report 2024)

पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण

सन्दर्भ

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा “अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट 2024: कम हेल एंड हाई वाटर’ (Come Hell and High Water)” जारी की गई।

अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट (AGR) 

  • यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा प्रकाशित एक वार्षिक प्रकाशन है।
  •  इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर वैश्विक प्रगति का आकलन करना है, अर्थात वर्तमान और भविष्य के जलवायु प्रभावों के लिए समायोजन तथा तैयारी के लिए देशों द्वारा किए गए प्रयास। 
  • अनुकूलन अंतराल का तात्पर्य वास्तव में कार्यान्वित किए जा रहे अनुकूलन प्रयासों और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिमों को कम करने के लिए आवश्यक अनुकूलन आवश्यकताओं के बीच के अंतर से है।

मुख्य बातें

  • अनुकूलन वित्त अंतर(Adaptation Finance Gap): यद्यपि विकासशील देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक अनुकूलन वित्त वर्ष 2022 में बढ़कर $28 बिलियन हो गया, लेकिन कुल अंतर अभी भी अत्यंत वृहद है।
    • ग्लासगो जलवायु संधि के तहत 2025 तक लक्ष्य के अनुसार 2019 के स्तर से अनुकूलन वित्त को दोगुना करने से भी वित्त अंतर में केवल 5% की कमी आएगी।
  • अनुकूलन योजना और कार्यान्वयन: 87% देशों के पास अब कम से कम एक राष्ट्रीय अनुकूलन योजना साधन है। इनमें से 51 प्रतिशत के पास दूसरा और 20 प्रतिशत के पास तीसरा साधन है।
    • रणनीतिक कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (NAPs) और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) को संरेखित करना महत्वपूर्ण है।
  • वैश्विक जलवायु लचीलापन के लिए UAE फ्रेमवर्क (FGCR): COP 28 में सहमत UAE FGCR लक्ष्यों की दिशा में प्रगति मिश्रित है, जिसमें गरीबी में कमी और सांस्कृतिक विरासत संरक्षण जैसे विषयगत क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • कई NAPs, UAE FGCR लक्ष्यों का संदर्भ देते हैं, लेकिन सभी क्षेत्रों के लिए व्यापक डेटा और योजना का अभाव है।
  • क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: विकासशील देशों में क्षमता और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण बढ़ाना महत्वपूर्ण है, लेकिन वर्तमान में असमन्वित, अल्पकालिक प्रयासों के कारण इसमें प्रभावशीलता का अभाव है।

वित्तीय अंतर को समाप्त करने में चुनौतियाँ

  • वित्तपोषण साधनों की जटिलता: अनुकूलन वित्त परिदृश्य में लचीलापन बाॅण्ड, अनुकूलन के लिए ऋण विनिमय और प्रदर्शन-आधारित जलवायु अनुदान शामिल हैं। इन साधनों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए मजबूत संस्थागत क्षमता की आवश्यकता होती है, जिसकी विकासशील देशों में कमी है।
  •  नीतिगत बाधाएँ: जलवायु जोखिम प्रकटीकरण ढाँचे और अनुकूलन वर्गीकरण जैसी मजबूत सक्षम नीतियों की अनुपस्थिति निजी क्षेत्र की भागीदारी में बाधा उत्पन्न करती है। 
  • सार्वजनिक वित्त पर उच्च निर्भरता: रिपोर्ट में निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी पर प्रकाश डाला गया है, जो अधिक योगदान दे सकता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ राजस्व-उत्पादन के अवसर हैं।

नीति अनुशंसाएँ(Policy Recommendations)

  • अनुकूलन प्रयासों में निष्पक्षता और समानता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि वर्तमान असमानताओं को न बढ़ाया जा सके, विशेष खास तौर पर लैंगिक और वंचित समुदायों के संबंध में। 
  • जलवायु वित्त चर्चाओं में “साझा लेकिन विभेदित उत्तरदायित्वों(common but differentiated responsibilities)” के सिद्धांत को मजबूत किया जाना चाहिए। 
  • एकीकृत विकास रणनीति के भाग के रूप में अनुकूलन वित्त, क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को कवर करने वाले समग्र दृष्टिकोण को लागू करें।
भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्य
– भारत 2030 तक निम्नलिखित लक्ष्य प्राप्त करना चाहता है;
1. उत्सर्जन में कमी: भारत का लक्ष्य 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करना है।
2. नवीकरणीय ऊर्जा: देश 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना चाहता है, जिसका लक्ष्य 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करना है।
3. कार्बन सिंक(Carbon Sink): भारत वनरोपण और पुनर्वनरोपण प्रयासों के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाने की योजना बना रहा है।

Source: UNEP