पवन ऊर्जा उत्पादन में सुधार

पाठ्यक्रम: GS3/ऊर्जा

सन्दर्भ

  • तमिलनाडु सरकार ने पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए तमिलनाडु पुनर्शक्तिकरण, नवीनीकरण और जीवन विस्तार नीति – 2024 प्रस्तुत की, जिसका उद्देश्य छोटे पवन टर्बाइनों को पुनःशक्तिकरण या नवीनीकरण करके पवन ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाना है।
    • हालांकि हितधारकों ने इसकी प्रभावशीलता के बारे में चिंताओं का उदहारण देते हुए नीति पर आपत्ति व्यक्त की है।

भारत में पवन ऊर्जा की संभावनाएं

  • भारत में ज़मीन से 150 मीटर ऊपर 1,163.86 गीगावाट की पवन ऊर्जा क्षमता है और स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता के मामले में यह विश्व में चौथे स्थान पर है।
  • इस पवन क्षमता का केवल 6.5% ही राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग किया जाता है।
  • गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान और आंध्र प्रदेश स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता के मामले में अग्रणी राज्य हैं, जो सामूहिक रूप से देश की पवन ऊर्जा क्षमता स्थापना में 93.37% का योगदान करते हैं।
  • 2024 तक, अक्षय ऊर्जा आधारित बिजली उत्पादन क्षमता 201.45 गीगावाट है, जो देश की कुल स्थापित क्षमता का 46.3 प्रतिशत है।
    • सौर ऊर्जा 90.76 गीगावाट का योगदान देती है, पवन ऊर्जा 47.36 गीगावाट के साथ दूसरे स्थान पर है, पनबिजली 46.92 गीगावाट तथा छोटी पनबिजली 5.07 गीगावाट जोड़ती है, और बायोमास एवं बायोगैस ऊर्जा सहित बायोपावर 11.32 गीगावाट जोड़ती है।

भारत के लक्ष्य

  • भारत का विज़न 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करना है, इसके अतिरिक्त अल्पकालिक लक्ष्य भी प्राप्त करने हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाना, जिसमें से 140 गीगावाट पवन ऊर्जा से आएगा। 
    • नवीकरणीय ऊर्जा से 50% ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना।
    •  2030 तक संचयी उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी लाना, और 2005 के स्तर से 2030 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करना।

चुनौतियां

  • प्राकृतिक कारकों पर निर्भरता: सौर और पवन जैसे ऊर्जा स्रोत परिवर्तनशील हैं क्योंकि वे सूर्य के प्रकाश, पवन और पानी की उपलब्धता जैसे प्राकृतिक कारकों पर निर्भर करते हैं। 
  • सीमित पवन संसाधन क्षेत्र: भारत की पवन संसाधन क्षमता मुख्य रूप से तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में केंद्रित है।
    • जैसे-जैसे पवन ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार हो रहा है, इन क्षेत्रों में भूमि की कमी होती जा रही है। 
  • वन्यजीव प्रभाव: पवन टर्बाइन पक्षियों और चमगादड़ों की जनसँख्या के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं, जो ब्लेड से टकरा सकते हैं।
  •  उच्च लागत: टर्बाइन, स्थापना और ग्रिड कनेक्शन की लागत निषेधात्मक हो सकती है, हालांकि हाल के वर्षों में लागत में कमी आई है। 
  • टर्बाइन जीवनचक्र: पवन टर्बाइनों का जीवनकाल सामान्यतः  लगभग 20-25 वर्ष होता है। मिश्रित सामग्रियों से बने टर्बाइन ब्लेड को बंद करना और उनका पुनर्चक्रण करना, उनके पुनर्चक्रण में कठिनाई के कारण एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन गया है।
    •  विशेष जहाजों, उपकरणों और स्थापना तकनीकों की आवश्यकता के कारण अपतटीय पवन फार्मों का निर्माण तटवर्ती पवन फार्मों की तुलना में अधिक कठिन और महंगा है। 
    • ये परियोजनाएं प्रायः गहरे पानी में स्थित होती हैं, जिसके लिए तैरते टर्बाइनों की आवश्यकता होती है, जो अभी भी प्रायोगिक अवस्था में हैं।

सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति (2015): यह नीति भारत में अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता को विकसित करने के लिए शुरू की गई थी, विशेष रूप से गुजरात, तमिलनाडु और अन्य समुद्री क्षेत्रों के तटीय क्षेत्रों में।
  • राष्ट्रीय पवन ऊर्जा मिशन: भारत में पवन ऊर्जा के विकास और विस्तार पर ध्यान केंद्रित करता है। पवन ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य 2030 तक 140 गीगावाट निर्धारित किया गया है।
  • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति (2018): नीति का मुख्य उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों के इष्टतम एवं कुशल उपयोग के लिए बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर पीवी हाइब्रिड सिस्टम को प्रोत्साहन देने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करना है।
  • पवन संसाधन मूल्यांकन: नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के तहत राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (NIWE), देश भर में पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए संभावित स्थलों की पहचान करने के लिए पवन संसाधन मूल्यांकन करता है।
  • पवन फार्म विकास: कार्यक्रम पहचाने गए क्षेत्रों में पवन ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना के लिए सब्सिडी सहित वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके पवन ऊर्जा संयंत्रों के विकास को प्रोत्साहन देता है।
  • पवन ऊर्जा नीलामी (प्रतिस्पर्धी बोली): सरकार प्रतियोगी नीलामी का आयोजन करती है, जहां डेवलपर्स पवन ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित करने के लिए निविदाएं दाखिल करते हैं।
  • नवीकरणीय खरीद दायित्व (RPO): इसके लिए बिजली वितरण कंपनियों और बड़े बिजली उपभोक्ताओं को अपनी बिजली का एक निश्चित प्रतिशत नवीकरणीय स्रोतों से क्रय करना पड़ता है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा की मांग को प्रोत्साहन मिलता है।

Source: TH