वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भारत की भागीदारी को सशक्त बनाने संबंधी रिपोर्ट

पाठ्यक्रम: GS3/भारतीय अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  •  नीति आयोग ने आज एक रिपोर्ट जारी की जिसका शीर्षक है “ऑटोमोटिव इंडस्ट्री: ग्लोबल वैल्यू चेन में भारत की भागीदारी को शक्ति देना।”

परिचय

  • यह रिपोर्ट भारत के ऑटोमोटिव सेक्टर का व्यापक विश्लेषण प्रदान करती है। यह अवसरों और चुनौतियों को प्रकट करती है तथा भारत को वैश्विक ऑटोमोटिव बाजारों में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करने के लिए एक मार्ग की रूपरेखा प्रस्तुत करती है।

मुख्य विशेषताएँ

  • वैश्विक संदर्भ और प्रवृति: बैटरी निर्माण केंद्र जैसे यूरोप और अमेरिका में उभर रहे हैं, जो पारंपरिक आपूर्ति शृंखलाओं को बदल रहे हैं और सहयोग के नए अवसर उत्पन्न कर रहे हैं।
  • इंडस्ट्री 4.0 का प्रभाव: यह ऑटोमोटिव निर्माण को बदल रही है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), मशीन लर्निंग (ML), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), और रोबोटिक्स जैसी तकनीकें नए बिजनेस मॉडल को उत्पन्न कर रही हैं, जो स्मार्ट फैक्टरियों और कनेक्टेड वाहनों पर आधारित हैं।
  • सेमीकंडक्टर चिप लागत: प्रति वाहन लागत $600 से $1200 तक बढ़ने की संभावना है।
  • वैश्विक ऑटो घटक बाजार: 2022 में $2 ट्रिलियन का मूल्यांकन; $700 बिलियन का वैश्विक व्यापार।
  • वैश्विक ऑटोमोबाइल उत्पादन: लगभग 94 मिलियन इकाईयों तक पहुँचा।
  • भारत की स्थिति: भारत चीन, अमेरिका और जापान के बाद चौथा सबसे बड़ा वैश्विक निर्माता बनकर उभरा है, वार्षिक उत्पादन लगभग छह मिलियन वाहन।
  • भारतीय ऑटोमोटिव सेक्टर ने छोटे कार और यूटिलिटी वाहन खंडों में मजबूत घरेलू एवं निर्यात बाजार प्राप्त किया है।
  • भारत ‘मेक इन इंडिया’ पहल के साथ ऑटोमोटिव निर्माण और निर्यात केंद्र के रूप में स्वयं को स्थापित कर रहा है।

चुनौतियाँ

  • कम हिस्सेदारी: वैश्विक ऑटोमोटिव घटक व्यापार में भारत का हिस्सा लगभग 3% है, जो लगभग $20 बिलियन के बराबर है।
  • कम हिस्सेदारी उच्च-सटीक खंडों में: इंजन घटक, ड्राइव ट्रांसमिशन, और स्टीयरिंग सिस्टम जैसे क्षेत्रों में भारत की हिस्सेदारी केवल 2-4% है।
  • ऑपरेशनल लागत: संचालन लागत, बुनियादी ढाँचे की कमी, सीमित GVC एकीकरण, अपर्याप्त R&D व्यय जैसी चुनौतियाँ भारत के प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करती हैं।

सिफारिशें

  • ऑपरेशनल व्यय (Opex) समर्थन: विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के लिए टूलिंग, डाइस और बुनियादी ढाँचे पर पूँजीगत व्यय (Capex) पर ध्यान केंद्रित करना।
  • कौशल विकास: वृद्धि को बनाए रखने के लिए एक प्रतिभा पाइपलाइन बनाने की पहल।
  • R&D, IP ट्रांसफर और ब्रांडिंग: उत्पाद भिन्नता में सुधार के लिए अनुसंधान, विकास, अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडिंग को प्रोत्साहन देना और MSMEs को सशक्त करना।
  • क्लस्टर विकास: सप्लाई चेन को मजबूत करने के लिए R&D और टेस्टिंग केंद्र जैसी सामान्य सुविधाओं के माध्यम से कंपनियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
  • इंडस्ट्री 4.0 अपनाना: डिजिटल तकनीकों के एकीकरण और उन्नत विनिर्माण मानकों को प्रोत्साहित करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: संयुक्त उपक्रमों (JVs), विदेशी सहयोग, और मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) को बढ़ावा देना।
  • व्यवसाय सुगमता: नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाना, कार्य घंटे लचीलापन, सप्लायर की खोज और विकास में सुधार।

आगे की राह

  • रिपोर्ट में देश के ऑटोमोटिव घटक उत्पादन को $145 बिलियन तक बढ़ाने की कल्पना की गई है, जिसमें निर्यात $20 बिलियन से $60 बिलियन तक तिगुना होगा। 
  • इस वृद्धि से लगभग $25 बिलियन का व्यापार अधिशेष और वैश्विक ऑटोमोटिव वैल्यू चेन में भारत की हिस्सेदारी 3% से बढ़कर 8% होने की संभावना है। 
  • इसके अतिरिक्त, इस वृद्धि से 2-2.5 मिलियन नई रोजगार अवसर सृजित होने की संभावना है।

निष्कर्ष 

  • भारत के पास ऑटोमोटिव उद्योग में एक वैश्विक नेता बनने की पर्याप्त क्षमता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों और उद्योग के हितधारकों द्वारा केंद्रित प्रयासों की आवश्यकता है। 
  • वर्तमान चुनौतियों को हल करके और प्रस्तावित हस्तक्षेपों का लाभ उठाकर, भारत अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ा सकता है, निवेश आकर्षित कर सकता है तथा एक मजबूत ऑटोमोटिव क्षेत्र का निर्माण कर सकता है जो वैश्विक वैल्यू चेन का नेतृत्व करने में सक्षम हो।

Source: AIR

 

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