पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था/शिक्षा
सन्दर्भ
- प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 छोटे बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने के दृष्टिकोण का समर्थन करती है।
परिचय
- मातृभाषा में शिक्षा पर जोर देने के साथ, NEP 2020 से भारतीय शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन आने की संभावना है।
- इसका उद्देश्य ऐसा वातावरण बनाना है जहाँ बच्चे अपनी मूल भाषा में सीख सकें और आगे बढ़ सकें, जिससे उनकी सांस्कृतिक जड़ों की गहरी समझ विकसित हो सके।
मातृभाषा
- मातृभाषा, जिसे मूल भाषा के रूप में भी जाना जाता है, वह पहली भाषा है जिसे कोई व्यक्ति जन्म से सीखता है।
- यह एक बच्चे के शुरुआती विकास के दौरान परिवार या समुदाय में बोली जाने वाली भाषा है, और यह प्रायः उस समुदाय की संस्कृति, परंपराओं एवं सामाजिक वातावरण को दर्शाती है।
मातृभाषा में शिक्षा का महत्व
- बेहतर समझ और सीखना: जब बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाता है, तो वे जानकारी को अधिक प्रभावी ढंग से समझ और याद रख सकते हैं।
- संज्ञानात्मक विकास: परिचित भाषा में सीखने से संज्ञानात्मक कौशल का विकास होता है, जिसमें समस्या-समाधान, आलोचनात्मक सोच और रचनात्मकता शामिल है।
- मजबूत संचार कौशल: मातृभाषा शिक्षा बच्चों को मजबूत भाषा कौशल विकसित करने में सहायता करती है, जो मौखिक और लिखित संचार दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
- सांस्कृतिक पहचान और संरक्षण: यह बच्चों के अपने समुदाय और पहचान से जुड़ाव को मजबूत करता है, गर्व एवं अपनेपन की भावना को बढ़ावा देता है।
- भावनात्मक कल्याण: यह बच्चों को स्वयं को अधिक स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने और सामाजिक एवं शैक्षणिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति देता है।
- सामाजिक समावेशिता: यह सुनिश्चित करके समानता को बढ़ावा देता है कि सभी बच्चे, उनकी पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, प्रभावी रूप से शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
भारत में मातृभाषा को बढ़ावा देने से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 29 (1) – अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण: यह सुनिश्चित करता है कि भाषाई अल्पसंख्यकों सहित नागरिकों के किसी भी वर्ग को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत अध्याय V की धारा 29 (f) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, जहां तक संभव हो, शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृभाषा में होना चाहिए।
- अनुच्छेद 30 (1) – अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार: यह अल्पसंख्यकों को, चाहे वे धर्म या भाषा के आधार पर हों, अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 350A – प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा के लिए सुविधाएं: यह अनुच्छेद निर्देश देता है कि राज्य शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा के लिए सुविधाएं प्रदान करेगा।
- यह इस बात पर बल देता है कि, जहां तक संभव हो, बच्चों को शिक्षा के शुरुआती चरणों में उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जाना चाहिए।
- अनुच्छेद 350B – भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी: भाषाई अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा और संवर्धन करना, जिसमें उनकी भाषा एवं संस्कृति का संरक्षण तथा विकास भी शामिल है।
मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल:
- यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) 2020-21 के अनुसार, 28 भाषाएँ हैं जिनमें कक्षा 1-5 में शिक्षण कार्य चल रहा है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: यह जहाँ भी संभव हो, कम से कम कक्षा 5 तक और अधिमानतः कक्षा 8 तक शिक्षण का माध्यम घरेलू भाषा/मातृभाषा/स्थानीय भाषा में रखने का प्रावधान करती है।
- यह घरेलू भाषा/मातृभाषा में उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराने और शिक्षकों को पढ़ाते समय द्विभाषी दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने का भी प्रावधान करती है।
- हिंदी, उर्दू, सिंधी और संस्कृत भाषाओं के विकास एवं प्रचार-प्रसार के लिए अलग-अलग संगठन हैं।
- अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) ने तकनीकी शिक्षा संस्थानों को स्थानीय भाषाओं में भी अपने पाठ्यक्रम प्रस्तुत करने की अनुमति देते हुए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। अब तक 10 राज्यों के 19 संस्थानों ने ऐसे पाठ्यक्रम पेश करना शुरू कर दिया है।
- AICTE ने अंग्रेजी भाषा के ऑनलाइन पाठ्यक्रमों को 11 भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिए AICTE ऑटोमेशन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल नामक एक टूल विकसित किया है।
- दीक्षा पोर्टल: कक्षा 1-12 के लिए पाठ्य पुस्तकें और शिक्षण संसाधन सहित पाठ्यक्रम सामग्री सरकार के दीक्षा पोर्टल पर 33 भारतीय भाषाओं एवं भारतीय सांकेतिक भाषा में उपलब्ध है। JEE और NEET परीक्षाएं 13 भारतीय भाषाओं में आयोजित की जाती हैं।
निष्कर्ष
- मातृभाषा में शिक्षा पर बल देना कोई नई अवधारणा नहीं है। ऐतिहासिक रूप से, कई देशों ने छोटे बच्चों के सीखने के अनुभव को बढ़ाने के लिए इस दृष्टिकोण को अपनाया है।
- उदाहरण के लिए, 20वीं सदी की शुरुआत में, सोवियत संघ ने मूलनिवासीकरण की नीति लागू की, जिसने विभिन्न जातीय समूहों की मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा दिया।
- इसी तरह, 1950 के दशक में, चीन ने अपने जातीय अल्पसंख्यकों के बीच मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक नीति शुरू की।
- बहुभाषावाद को अपनाना केवल एक शैक्षिक प्रयास नहीं है; यह समावेशिता और विविधता के लिए प्रतिबद्धता है।
- भारत की शिक्षा प्रणाली ऐसे व्यक्तियों की पीढ़ी को बढ़ावा दे सकती है जो न केवल अकादमिक रूप से कुशल हैं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और वैश्विक रूप से सक्षम भी हैं।
Source: PIB
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