भारत को प्रामाणिक और प्रभावशाली शोध की आवश्यकता

पाठ्यक्रम: GS3/ विज्ञान और प्रौद्योगिकी

संदर्भ

  • हाल ही में उपराष्ट्रपति ने प्रामाणिक और व्यावहारिक अनुसंधान की आवश्यकता पर बल दिया था, जिससे समाज में सार्थक परिवर्तन आ सके।
    • भारत को वैश्विक नेता के रूप में उभरने और आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए सभी क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास (R&D) को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

भारत को अधिक प्रामाणिक एवं प्रभावशाली अनुसंधान की आवश्यकता क्यों है?

  • कम पेटेंट योगदान: भारत अनुसंधान एवं विकास पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.65% व्यय करता है, जो अमेरिका (2.8%) या दक्षिण कोरिया (4.5%) जैसे विकसित देशों से काफी कम है।
  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देना: अनुसंधान-संचालित उद्योग अर्थव्यवस्था में अरबों डॉलर जोड़ सकते हैं।
  • आयात निर्भरता में कमी: भारत सेमीकंडक्टर आयात पर प्रतिवर्ष 1 बिलियन डॉलर व्यय करता है। प्रामाणिक अनुसंधान से स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास हो सकता है, जिससे विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम हो सकती है।
  • आत्मनिर्भर भारत: AI, रक्षा एवं नवीकरणीय ऊर्जा जैसी प्रमुख प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता: वैश्विक नवाचार सूचकांक (2023) में भारत 40वें स्थान पर है। केंद्रित अनुसंधान इस रैंकिंग को बेहतर बना सकता है और भारत को वैश्विक नवाचार नेता के रूप में स्थापित कर सकता है।
  • घरेलू चुनौतियों का समाधान: भारत के पास वैश्विक भूमि क्षेत्र का 2.4% तथा विश्व की जनसंख्या का 16% भाग है, जिसके कारण संसाधन प्रबंधन में चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
    • अनुसंधान कृषि, स्वच्छ जल और शहरी नियोजन के लिए समाधान प्रदान कर सकता है।

भारत में अनुसंधान में बाधा उत्पन्न करने वाली चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त वित्तपोषण: भारत का अनुसंधान एवं विकास निवेश वैश्विक औसत से काफी कम है, जिससे महत्त्वाकांक्षी अनुसंधान परियोजनाओं का दायरा सीमित हो रहा है।
  • प्रतिभा पलायन: प्रतिभावान शोधकर्ता प्रायः बेहतर वित्त पोषण, बुनियादी ढाँचे और अवसरों के कारण विदेश प्रवासित हो जाते हैं।
  • कमजोर उद्योग-अकादमिक सहयोग: अकादमिक और उद्योगों के मध्य समन्वय की कमी अनुसंधान परिणामों के व्यावसायीकरण को रोकती है।
  • सैद्धांतिक अनुसंधान पर अत्यधिक बल : भारत में अधिकांश अनुसंधान अकादमिक ही रहता है, जिसका व्यावहारिक अनुप्रयोग या सामाजिक प्रभाव सीमित होता है।
  • नौकरशाही बाधाएँ: लंबी स्वीकृति प्रक्रिया और अनुसंधान संस्थानों में स्वायत्तता की कमी नवाचार में बाधा उत्पन्न करती है।

भारत में अनुसंधान को प्रोत्साहन देने के लिए उठाए गए कदम

  • अटल इनोवेशन मिशन (AIM): यह स्टार्टअप्स, इनक्यूबेटर्स और मेंटरशिप कार्यक्रमों के माध्यम से नवाचार को प्रोत्साहित करता है।
  • राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF): इसकी स्थापना अनुसंधान बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ करने और सहयोगात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए की गई थी।
  • PLI योजना (उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन): इलेक्ट्रॉनिक्स, अर्धचालक और फार्मास्यूटिकल्स जैसे प्रमुख क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विनिर्माण को बढ़ावा देती है।
  • उत्कृष्ट संस्थान (IoE): चुनिंदा विश्वविद्यालयों को उच्च प्रभाव वाले अनुसंधान के केंद्र के रूप में नामित करता है।
  • IMPRINT और SPARC कार्यक्रम: IMPRINT अनुसंधान के माध्यम से राष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान करने पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि SPARC भारतीय और वैश्विक संस्थानों के बीच संयुक्त अनुसंधान को बढ़ावा देता है।
  • DRDO युवा वैज्ञानिक प्रयोगशालाएँ: युवा शोधकर्ताओं को सम्मिलित करते हुए रक्षा प्रौद्योगिकियों में अत्याधुनिक अनुसंधान पर केंद्रित।

आगे की राह

  • अनुसंधान एवं विकास वित्तपोषण में वृद्धि: वैश्विक मानकों के अनुरूप अनुसंधान एवं विकास के लिए सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 2% आवंटित करना।
  • उद्योग-अकादमिक सहयोग को सुदृढ़ करना: नवाचार केन्द्रों की स्थापना करना जो अनुप्रयुक्त अनुसंधान के लिए विश्वविद्यालयों को उद्योगों से जोड़ते हैं।
  • प्रतिभा को बनाए रखना: प्रतिभा पलायन को रोकने और वैश्विक प्रतिभा को आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धी वेतन, अनुदान एवं बुनियादी ढाँचे की पेशकश करना।
  • प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना: AI, नवीकरणीय ऊर्जा, जैव प्रौद्योगिकी और रक्षा प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान को प्राथमिकता देना।
  • नौकरशाही को सरल बनाना: उच्च प्रभाव वाले अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तपोषण और अनुमोदन प्रक्रियाओं को सरल बनाना।

Source: ET