पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन व्यवस्था
संदर्भ
- गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के लिए विकास एवं कल्याण बोर्ड (DWBDNC) इन समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए इदाते आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए नए तरह से प्रयास कर रहा है।
खानाबदोश, अर्ध खानाबदोश और गैर-अधिसूचित जनजातियाँ (NTs, SNTs और DNTs)
- खानाबदोश समुदाय: ऐसे समुदाय जो एक स्थान पर निवास के बजाय बार-बार स्थान बदलते रहते हैं। वे प्रायः पशुपालन, व्यापार या शिल्प जैसे पारंपरिक व्यवसायों में लगे रहते हैं।
- अर्द्ध-खानाबदोश जनजातियाँ: ये जनजातियाँ आंशिक रूप से खानाबदोश तथा आंशिक रूप से स्थायी होती हैं, जो मौसमी रूप से प्रवास करती हैं, लेकिन अस्थायी बस्तियाँ भी स्थापित करती हैं।
- गैर-अधिसूचित जनजातियाँ (DNTs): ब्रिटिश शासन के दौरान आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 के अंतर्गत इन्हें “आपराधिक जनजातियों” के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इस अधिनियम को 1952 में निरस्त कर दिया गया और इन समुदायों को ” गैर-अधिसूचित” कर दिया गया।
- यद्यपि अधिकांश DNTs अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों में फैले हुए हैं, कुछ DNTs किसी भी SC, ST या OBC श्रेणी में सम्मिलित नहीं हैं।
- स्थिति: इदाते आयोग ने निष्कर्ष निकाला था कि देश भर में कुल 1,526 DNTs , NT और SNT समुदाय हैं, जिनमें से 269 को अभी तक SC, ST या OBC के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।
- भारत में कुल 425 गैर-अधिसूचित जनजातियाँ, 810 घुमंतू जनजातियाँ और 27 अर्ध घुमंतू जनजातियाँ हैं।
- DNT समुदायों में, लम्बाडा (STs) सबसे मुखर और दृश्यमान हैं, इसके पश्चात् सरकारी क्षेत्र और राजनीतिक क्षेत्रों में वड्डेरा (BCs) का स्थान है।
NTs, SNTs और DNTs के सामने आने वाली चुनौतियाँ
- मान्यता और दस्तावेज़ीकरण का अभाव: गैर-अधिसूचित समुदायों के पास नागरिकता संबंधी दस्तावेज़ों का अभाव है, जिससे उनकी पहचान अदृश्य हो जाती है और सरकारी लाभ, संवैधानिक एवं नागरिकता अधिकार प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न होती है।
- सीमित राजनीतिक प्रतिनिधित्व: इन समुदायों का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व उनकी चिंताओं को व्यक्त करना और उनके अधिकारों का समर्थन करना चुनौतीपूर्ण बना देता है।
- सामाजिक आक्षेप और भेदभाव: NTs, SNTs और DNTs को प्रायः भेदभाव और सामाजिक आक्षेप का सामना करना पड़ता है, जो उनकी ऐतिहासिक गैर-अधिसूचित स्थिति और उनकी विशिष्ट जीवन शैली के कारण होता है।
- आर्थिक वंचना: संसाधनों, बाजारों और रोजगार के अवसरों तक पहुँच की कमी के परिणामस्वरूप ये समुदाय आर्थिक रूप से हाशिए पर चले जाते हैं।
- शैक्षिक वंचना: इन जनजातियों के लिए शिक्षा के अवसर सीमित हैं, जिसके कारण निरक्षरता दर उच्च है।
इदाते आयोग की सिफारिशें
- वर्ष 2014 में भीकू रामजी इदाते की अध्यक्षता में तीन वर्ष की अवधि के लिए गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्ध घुमंतू जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया था।
- आयोग ने निम्नलिखित सिफारिशें दी हैं;
- आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 के लागू होने से उत्पन्न आक्षेप के कारण NTs, SNTs और DNTs के समक्ष आने वाली चुनौतियों की पहचान करने की आवश्यकता है।
- इसने कई अन्य बातों के अतिरिक्त, DNTs/NTs/SNTs को SC/ST/OBC के अंतर्गत शामिल न करने तथा इनके लिए विशिष्ट नीतियाँ बनाने का भी सुझाव दिया।
- भारत में खानाबदोश, अर्ध खानाबदोश और गैर-अधिसूचित जनजातियों (NTs, SNTs, और DNTs) के लिए एक स्थायी आयोग की स्थापना करना।
- इसमें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल और कानूनी दस्तावेजों जैसी बुनियादी सुविधाओं का लाभ उठाने में समुदायों के सामने आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए कदम उठाने पर बल दिया गया।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- DNTs, SNTs और NTs के लिए विकास और कल्याण बोर्ड (DWBDNC): कल्याण संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए 2019 में गठित किया गया।
- नीति आयोग पहचान प्रयास: इन समुदायों की पहचान को अंतिम रूप देने के लिए एक समिति की स्थापना की गई।
- DNTs के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए योजना (SEED): पाँच वर्षों (2021-26) के लिए ₹200 करोड़ के बजट के साथ 2022 में प्रारंभ की जाएगी।
- DNTs के आर्थिक सशक्तिकरण योजना के चार घटक हैं:
- प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग।
- स्वास्थ्य बीमा।
- सामुदायिक स्तर पर आजीविका संबंधी पहल।
- आवास निर्माण के लिए वित्तीय सहायता।
आगे की राह
- गैर-अधिसूचित जनजातियों के बारे में औपनिवेशिक मानसिकता कि उनमें “आपराधिक प्रवृत्ति” है, को परिवर्तित करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो।
- उनकी पहचान के समुचित दस्तावेजीकरण में तीव्रता लाने की आवश्यकता है ताकि उन्हें कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके और उनकी बुनियादी आवश्यकताएँ पूरी की जा सकें।
- NHRC ने सुझाव दिया है कि गैर-अधिसूचित जनजातियों के सामने आने वाली चुनौतियों को कम करने के लिए संसद, सरकारी संस्थानों और उच्च शिक्षा में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
Source: TH
Previous article
संक्षिप्त समाचार 11-01-2025
Next article
क्या मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ा जाना चाहिए?