दक्कन ज्वालामुखी विस्फ़ोट एवं उष्णकटिबंधीय वनस्पति पर इसका प्रभाव

पाठ्यक्रम: GS1/भूगोल

संदर्भ

  • एक हालिया अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि दक्कन ज्वालामुखी विस्फोट ने स्थलीय जीवों पर विनाशकारी प्रभाव (जैसे डायनासोर का विलुप्त होना) के बावजूद, उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों पर केवल क्षेत्रीय एवं अल्पकालिक प्रभाव उत्पन्न किया।

मुख्य निष्कर्ष

  • ज्वालामुखीय गतिविधि के कारण मुख्य रूप से अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) के अंदर भारतीय प्लेट का अक्षांशीय विस्थापन हुआ।
  • दक्कन ज्वालामुखी के प्रसुप्त चरणों में आर्द्र जलवायु देखी गई, जिससे उष्णकटिबंधीय वर्षावन पारिस्थितिकी तंत्रों के विलुप्त होने के बजाय उनमें तेजी से विकास और विविधीकरण को बढ़ावा मिला।
  • इन निष्कर्षों से यह संभावना उत्पन्न होता है कि यदि उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को बिना संशोधित किए छोड़ दिया जाए तो वे अनुकूल जलवायु परिस्थितियों में शीघ्र ही पुनर्जीवित हो सकते हैं।
अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ)
– ITCZ पृथ्वी के चारों ओर कम दाब की एक पट्टी है, जो सामान्यतः भूमध्य रेखा के पास स्थित होती है, जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध से आने वाली व्यापारिक पवनें अभिसरित होती हैं।
अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र
– सूर्य की स्थिति के आधार पर, मौसम के साथ इसकी स्थिति में थोड़ा परिवर्तन होता रहता है।
मौसम की विशेषताएँ: ITCZ भारी वर्षा, आँधी और उच्च आर्द्रता के लिए जाना जाता है, क्योंकि उष्ण वायु ऊपर उठती है, जिससे संघनन एवं बादल बनते हैं।
महत्त्व: यह वैश्विक मौसम पैटर्न में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, वर्षा, मानसून और मौसमी मौसम परिवर्तनों को प्रभावित करता है।

दक्कन ज्वालामुखी विस्फ़ोट क्या है?

  • दक्कन ज्वालामुखीय गतिविधि भारत के दक्कन पठार में हुई व्यापक ज्वालामुखी गतिविधि को संदर्भित करती है, जो मुख्य रूप से क्रेटेशियस-पेलियोजीन संक्रमण के दौरान, लगभग 66 मिलियन वर्ष पूर्व हुई थी।
  • ऐसा माना जाता है कि इस ज्वालामुखीय घटना ने सामूहिक विलुप्ति की घटना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसने डायनासोरों को समाप्त कर दिया, हालाँकि अन्य कारकों, जैसे कि क्षुद्रग्रह प्रभाव, ने भी इसमें योगदान दिया हो सकता है।
दक्कन ज्वालामुखी विस्फ़ोट

दक्कन ज्वालामुखी की मुख्य विशेषताएँ:

  • दक्कन ट्रैप का निर्माण: दक्कन ट्रैप प्रवाहित बेसाल्ट (ठोस लावा प्रवाह) से निर्मित एक विशाल, स्तरित क्षेत्र है जो मध्य और पश्चिमी भारत के बड़े क्षेत्रों को आच्छादित करता है। इन ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण दक्कन पठार का निर्माण हुआ।
    • ज्वालामुखीय चट्टान संरचनाओं की विशेषता बेसाल्ट की क्षैतिज परतें हैं और ये पृथ्वी पर सबसे बड़े ज्वालामुखी क्षेत्रों में से हैं।
  • दक्कन ज्वालामुखी का कारण: ऐसा माना जाता है कि दक्कन ज्वालामुखी की शुरुआत मेंटल प्लूम (पृथ्वी के मेंटल के अंदर से उठने वाला तप्त मैग्मा का एक स्तंभनुमा उपरी प्रवाह) के कारण हुई थी, जिसके कारण लंबे समय तक व्यापक विस्फोट हुए।
  • जलवायु पर प्रभाव: बड़े पैमाने पर विस्फोटों से भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड) और सल्फर एरोसोल निकले, जिसके कारण संभवतः वैश्विक जलवायु परिवर्तन हुए, जिसमें वैश्विक तपन एवं अम्लीय वर्षा शामिल है।
    • ऐसा माना जाता है कि इन परिवर्तनों के कारण अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं, जिनमें गैर-पक्षी डायनासोर भी शामिल हैं।
  • डेक्कन ट्रैप का विस्तार: डेक्कन ट्रैप भारत में लगभग 500,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, तथा कुछ स्थानों पर लावा प्रवाह की मोटाई 2,000 मीटर तक पहुँच जाती है।
    • पृथ्वी पर सबसे व्यापक लावा प्रवाह दक्कन ट्रैप में पाया जाता है; ऐसा अनुमान है कि यह भारतीय क्षेत्रों से होते हुए 1500 किलोमीटर प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी तक गमन करते थे।
दक्कन ज्वालामुखी की मुख्य विशेषताएँ
 

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