अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 86 के सर्वकालिक निम्नतम स्तर पर पहुँचा

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • भारतीय रुपया हाल ही में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86 के स्तर को पार कर गया, जो अब तक का सबसे निम्नतर स्तर है।

परिचय

  • मुद्रा मूल्यह्रास से तात्पर्य एक देश की मुद्रा के मूल्य में दूसरे देश की मुद्रा की तुलना में गिरावट से है।
  • भारतीय रुपए में प्रमुख मुद्राओं, विशेषकर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले समय-समय पर गिरावट देखी गई है।

रुपए के अवमूल्यन के कारण

  • कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें: वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के कारण भारत का आयात बिल बढ़ गया है, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ रहा है।
  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) द्वारा निकासी: वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण FPIs ने भारतीय बाजारों से अपना निवेश हटा लिया है, जिससे भारत में विदेशी मुद्रा की आपूर्ति कम हो गई है, जिससे रुपए में गिरावट आई है।
  • अमेरिकी डॉलर की माँग में वृद्धि: विदेशी बैंकों की ओर से अमेरिकी डॉलर की माँग बढ़ गई है, जिससे रुपये का अवमूल्यन वृद्धि हुई है।
  • कमजोर घरेलू बाजार: घरेलू इक्विटी और बांड बाजारों में समग्र कमजोरी ने रुपये की गिरावट में और योगदान दिया है, जिससे यह विदेशी निवेशकों के लिए कम आकर्षक हो गया है।

रुपए के अवमूल्यन का प्रभाव

  • निर्यात और आयात: कमजोर रुपया विदेशी खरीदारों के लिए भारतीय वस्तुओं को सस्ता बनाकर निर्यात को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन यह आयात की लागत भी बढ़ाता है, विशेष रूप से तेल और मशीनरी जैसी आवश्यक वस्तुओं की।
  • विदेशी ऋण चुकौती: जिन कंपनियों और सरकार पर विदेशी मुद्रा में भारी कर्ज है, उनके लिए रुपये के मूल्य में गिरावट से ऋण चुकौती की लागत बढ़ जाती है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति पर दबाव पड़ता है।
  • मुद्रास्फीति: आयात लागत में वृद्धि से उपभोक्ता कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे क्रय शक्ति प्रभावित होती है और संभवतः अर्थव्यवस्था में समग्र मुद्रास्फीति बढ़ जाती है।
  • निवेशक भावना: गिरती मुद्रा निवेशकों के विश्वास को प्रभावित करती है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में कमी आती है तथा पूँजी का बहिर्गमन होता है।

RBI रुपये का मूल्य कैसे बनाए रखता है?

  • विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप: रुपये के मूल्य को स्थिर करने के लिए RBI डॉलर खरीद या बेचकर विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है। इससे अत्यधिक अस्थिरता को कम करने में सहायता मिलती है।
  • मौद्रिक नीति समायोजन: ब्याज दरों को समायोजित करके, RBI पूँजी प्रवाह को प्रभावित करता है। उच्च ब्याज दरें विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकती हैं, जिससे रुपए के मूल्य को समर्थन मिलेगा।
  • विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन: RBI विदेशी मुद्रा भंडार का एक बफर बनाए रखता है जिसका उपयोग मुद्रा अस्थिरता के समय किया जा सकता है।

आगे की राह

  • दीर्घकालिक निवेश: स्थिर रुपए के लिए स्थिर पूँजी प्रवाह की आवश्यकता होती है। भारत को अस्थिर विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) के बजाय दीर्घकालिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • धन प्रेषण को अधिकतम करना: भारत विश्व स्तर पर धन प्रेषण के सबसे बड़े प्राप्तकर्ताओं में से एक है। ऐसी नीतियाँ जो अनिवासी भारतीयों (NRIs) के लिए धन को अपने घर भेजना आसान बनाती हैं, विदेशी मुद्रा प्रवाह को बढ़ा सकती हैं, जिससे रुपया स्थिर हो सकता है।
  • निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता: प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में निवेश करके भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

Sources: IE