पाठ्यक्रम: GS2/सामुदायिक अधिकार और GS3/वन संरक्षण
सन्दर्भ
- जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने राज्यों को वन संरक्षण अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए एक संस्थागत तंत्र बनाने और वन में रहने वाले समुदायों की शिकायतों के समाधान के लिए एक तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया है।
परिचय
- उद्देश्य: इस बात पर बल देना कि वन संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत वन में निवास करने वाले समुदायों को गैरकानूनी बेदखली से संरक्षण दिया गया है।
- कारण: मंत्रालय को कम से कम तीन राज्यों – मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल – के बाघ अभ्यारण्यों के अंदर स्थित दर्जनों गाँवों से शिकायतें प्राप्त हुई थीं।
- उन्होंने आरोप लगाया कि निवासियों पर FRA और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उनके अधिकारों को उचित मान्यता दिए बिना अपनी पारंपरिक भूमि खाली करने के लिए दबाव डाला जा रहा है।
- मंत्रालय ने राज्य जनजातीय विकास और वन विभागों से निम्नलिखित विवरण माँगे हैं:
- बाघ रिजर्वों में स्थित गाँवों के नाम और संख्या का विवरण देने वाली एक रिपोर्ट;
- ऐसे गाँवों में रहने वाली जनजातियाँ और वनवासी समुदाय;
- और सभी प्राप्त, निहित और अस्वीकृत वन अधिकार दावे।
- इसमें सहमति प्राप्त करने की प्रक्रिया और संभावित मुआवजे के बारे में भी जानना चाहा गया है।
भारत में वन क्षेत्र – भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 (ISFR 2023) के अनुसार, कुल वन एवं वृक्ष आवरण 8,27,357 वर्ग किमी है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 25.17 प्रतिशत है। – क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक वन क्षेत्र वाले शीर्ष तीन राज्य मध्य प्रदेश (77,073 वर्ग किमी) हैं, जिसके पश्चात् अरुणाचल प्रदेश (65,882 वर्ग किमी) और छत्तीसगढ़ (55,812 वर्ग किमी) हैं। – वन एवं वृक्ष आवरण में अधिकतम वृद्धि दर्शाने वाले शीर्ष चार राज्य: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, ओडिशा एवं राजस्थान। |
भारत में वन संरक्षण अधिनियम
- भारत में वन संरक्षण अधिनियम, वनों के संरक्षण, परिरक्षण और सुरक्षा के उद्देश्य से विधायी उपायों की एक शृंखला को संदर्भित करता है।
भारतीय वन अधिनियम, 1927
- इसे काष्ठ और अन्य वन संसाधनों के प्रबंधन के उद्देश्य से तैयार किया गया था।
- इसमें राज्य सरकारों को अपने स्वामित्व वाली किसी भी वन भूमि को आरक्षित या संरक्षित वन के रूप में अधिसूचित करने का प्रावधान है।
- ऐसी भूमि पर सभी भूमि अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अधीन हैं।
वन संरक्षण अधिनियम, 1980
- वन संरक्षण अधिनियम (FCA) वनों की कटाई की समस्या से निपटने तथा गैर-वनीय उद्देश्यों (जैसे औद्योगिक, खनन या अवसंरचनात्मक परियोजनाओं) के लिए वन भूमि के उपयोग को विनियमित करने के लिए लागू किया गया था।
- अधिनियम के अंतर्गत वन भूमि का गैर-वनीय उद्देश्यों के लिए उपयोग करने के लिए केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन लेना आवश्यक है।
- इसका उद्देश्य वनों को क्षरण से बचाना तथा सतत वन प्रबंधन प्रथाओं को सुनिश्चित करने में सहायता करना है।
वन अधिकार अधिनियम
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 (वन अधिकार अधिनियम या FRA) को अनुसूचित जनजातियों सहित वन-निवासी समुदायों के वन संसाधनों पर अधिकारों को मान्यता देने के लिए प्रस्तुत किया गया था, जिसका वे पारंपरिक रूप से उपयोग करते रहे हैं।
प्रमुख विशेषताएँ:
- अधिकारों की मान्यता:
- इसमें व्यक्तिगत एवं सामुदायिक अधिकार जैसे स्व-खेती, निवास, चराई, मछली पकड़ना और जंगलों में जल निकायों तक पहुँच शामिल हैं।
- इसमें PVTGs के लिए आवास अधिकार, खानाबदोश और पशुपालक समुदायों की पारंपरिक मौसमी संसाधनों तक पहुँच, जैव विविधता तक पहुँच, बौद्धिक संपदा एवं पारंपरिक ज्ञान पर सामुदायिक अधिकार भी शामिल हैं।
- वन भूमि का आवंटन: यह समुदाय की बुनियादी ढाँचागत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विकासात्मक उद्देश्यों हेतु वन भूमि के आवंटन का अधिकार भी प्रदान करता है।
- भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और निपटान में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के साथ मिलकर FRA , पुनर्वास तथा निपटान के बिना जनजातीय जनसंख्या को वंचन से बचाता है।
- ग्राम सभा की भूमिका: अधिनियम में ग्राम सभा और अधिकार धारकों को वनों के संरक्षण तथा सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
- अधिनियम के तहत ग्राम सभा भी एक अत्यधिक सशक्त निकाय है, जो जनजातीय जनसंख्या को उन पर प्रभाव डालने वाली स्थानीय नीतियों और योजनाओं के निर्धारण में निर्णायक भूमिका निभाने में सक्षम बनाती है।
FRA के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ
- नौकरशाही प्रतिरोध और विलंब: स्थानीय एवं राज्य स्तर पर धीमी कार्यान्वयन और नौकरशाही बाधाएँ, जिनमें वन विभागों तथा सरकारी निकायों में संसाधनों की कमी भी शामिल है।
- वन अधिकारियों का विरोध: वन अधिकारी प्रायः इस अधिनियम का विरोध करते हैं, क्योंकि उन्हें वन संसाधनों पर नियंत्रण खोने तथा संरक्षण एवं सामुदायिक अधिकारों के मध्य हितों के टकराव का भय रहता है।
- जागरूकता का अभाव: विभिन्न वनवासी समुदाय वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अपने अधिकारों के बारे में अनभिज्ञ हैं, जिससे दावों को दायर करने और मान्यता देने में बाधा उत्पन्न होती है।
- भूमि स्वामित्व संबंधी मुद्दे: गलत भूमि अभिलेख और भूमि स्वामित्व पर विवाद अधिकार प्रदान करने की प्रक्रिया को जटिल बनाते हैं।
- विस्थापन और बेदखली: संरक्षित क्षेत्रों से जबरन बेदखली, जिसमें प्रायः सामुदायिक अधिकारों की अपेक्षा संरक्षण को प्राथमिकता दी जाती है, एक महत्त्वपूर्ण चुनौती उत्पन्न करती है।
- कमजोर वन अधिकार समितियाँ (FRCs): FRCs, जो गाँव स्तर पर अधिकारों को मान्यता देने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, प्रायः प्रशिक्षण की कमी और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण अप्रभावी रूप से कार्य करती हैं।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति: विभिन्न राज्यों में FRA के प्रति असंगत राजनीतिक प्रतिबद्धता के कारण असमान कार्यान्वयन होता है।
आगे की राह
- जागरूकता बढ़ाना: वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत समुदायों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाएँ और प्रभावी दावा प्रबंधन के लिए वन अधिकार समितियों (FRCs) को प्रशिक्षित करना।
- प्रक्रियाओं को सरल बनाना: विलंब को कम करने के लिए दावा सत्यापन, शीर्षक जारीकरण और भूमि सीमांकन को सरल एवं त्वरित बनाना।
- वन अधिकारियों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना: अधिनियम पर वन अधिकारियों को प्रशिक्षित करना तथा संरक्षण और सामुदायिक अधिकारों के मध्य संतुलित दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।
- भूमि अभिलेखों को अद्यतन करना: भूमि अभिलेखों में सटीकता में सुधार करें और भूमि मानचित्रण एवं विवाद समाधान के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
- विस्थापन को रोकना: जबरन बेदखली से बचें, विशेष रूप से संरक्षित क्षेत्रों में, और बेदखली की तुलना में अधिकारों के संरक्षण को प्राथमिकता देना।
- निगरानी और मूल्यांकन: प्रगति पर नज़र रखने एवं समस्याओं को हल करने के लिए पारदर्शी निगरानी तंत्र स्थापित करना और नियमित मूल्यांकन करना।
Source: IE