भारतीय न्यायपालिका में लंबित मामलों का मुद्दा

पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन व्यवस्था

संदर्भ

  • उच्चतम न्यायालय ने लंबित मामलों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए उच्च न्यायालयों को तदर्थ आधार पर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति की अनुमति दे दी।

परिचय

  • उच्चतम न्यायालय ने प्रथम बार लोक प्रहरी बनाम भारत संघ मामले में 2021 के अपने निर्णय में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति का समर्थन किया था।
    • इन न्यायाधीशों को एक कार्यरत न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के हिस्से के रूप में केवल आपराधिक अपीलों की सुनवाई करने का अधिकार दिया गया था।
  • लंबित मामले: जनवरी 2025 तक उच्च न्यायालयों पर 62 लाख लंबित मामलों का भार था।
भारतीय न्यायपालिका में लंबित मामलों का मुद्दा
  • 2021 में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 224A के तहत तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के केवल तीन उदाहरण दर्ज किए गए हैं, इसे एक “निष्क्रिय प्रावधान” कहा गया है।

संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 224A, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भारत के राष्ट्रपति की अनुमति से, सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीशों से पुनः न्यायाधीश के कर्त्तव्यों का निर्वहन करने का अनुरोध करने की अनुमति देता है।
    • ऐसे नियुक्त व्यक्ति राष्ट्रपति के आदेश द्वारा निर्धारित भत्ते के हकदार होते हैं तथा उन्हें उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सभी अधिकार क्षेत्र, शक्तियाँ और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं।
  • लोक प्रहरी बनाम भारत संघ (2021): उच्चतम न्यायालय ने माना कि तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति केवल तभी की जा सकती है जब सक्रिय न्यायाधीशों की संख्या और न्यायाधीश नियुक्तियों के लिए लंबित प्रस्तावों पर विचार करने के बाद 20% से कम रिक्तियों के लिए सिफारिशें नहीं की गई हों।

भारतीय न्यायपालिका में लंबित मामलों के कारण

  • अपर्याप्त न्यायाधीश: भारत में न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात विश्व में सबसे कम है।
  • मुकदमेबाजी में वृद्धि: मुकदमेबाजी एवं मुकदमों की बढ़ती संख्या, बढ़ती जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक जटिलताओं के कारण मुकदमों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
  • न्याय प्रणाली में विलंब: प्रक्रियागत अकुशलता, स्थगन और साक्ष्य दाखिल करने में देरी के कारण विलंब होता है, जिससे मामले के समाधान में और देरी होती है।
  • बुनियादी ढाँचे का अभाव: कई न्यायालयों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, अपर्याप्त सुविधाओं और कम कर्मचारियों के कारण मामलों की बढ़ती संख्या को कुशलतापूर्वक निपटाना मुश्किल हो रहा है।
  • नौकरशाही और प्रशासनिक चुनौतियाँ: न्यायिक प्रक्रिया कभी-कभी प्रणाली में अकुशलता के कारण धीमी हो जाती है, जिसमें कागजी कार्रवाई, प्रशासनिक देरी और अदालती प्रक्रियाओं में आधुनिकीकरण की कमी शामिल है।

इसका क्या प्रभाव पड़ता है?

  • न्याय में विलंब: लंबित मामलों के कारण मामलों में विलंब होती है, तथा न्याय में प्रायः वर्षों तक देरी होती है।
  • बढ़ी हुई संख्या विचाराधीन कैदियों की संख्या: जेलों में विचाराधीन कैदियों (मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे अभियुक्तों) की संख्या में वृद्धि हुई है, जेलें 114% अधिक क्षमता पर चल रही हैं।
  • बढ़ी हुई लागत: मामलों में देरी से वादियों और सरकार पर वित्तीय दबाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास भी कम हो सकता है।
  • न्यायाधीशों पर प्रायः मुकदमों का अत्यधिक भार रहता है, जिसके कारण वे थक जाते हैं और मामले में अधिक देरी होती है।

समस्या के समाधान हेतु प्रयास

  • न्यायिक सुधार: इसमें न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना, न्यायालय के बुनियादी ढाँचे  का आधुनिकीकरण करना और सुनवाई में तेजी लाने के लिए ई-कोर्ट एवं प्रौद्योगिकी को लागू करना शामिल है।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR): पारंपरिक न्यायालय प्रणाली के बाहर विवादों को सुलझाने के लिए मध्यस्थताऔर सुलह जैसे ADR तंत्रों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • ई-कोर्ट और प्रौद्योगिकी: ई-कोर्ट परियोजना न्यायालयी कार्यवाही को डिजिटल बनाने और ऑनलाइन सुनवाई की अनुमति देने के लिए एक महत्त्वपूर्ण पहल रही है। इससे केस प्रबंधन को सुव्यवस्थित करने और भौतिक बैकलॉग को कम करने में सहायता मिलती है।
  • फास्ट ट्रैक न्यायलय : भ्रष्टाचार, महिलाओं के विरुद्ध अपराध और लंबे समय से लंबित मामलों जैसे विशिष्ट प्रकार के मामलों को निपटाने के लिए प्रक्रिया में तेजी लाने हेतु विशेष न्यायलय या फास्ट-ट्रैक न्यायलय स्थापित की गई हैं।

Source: TH

 

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