तमिलनाडु सरकार राज्य स्वायत्तता पर उपायों की सिफारिश करने के लिए पैनल का गठन

पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन व्यवस्था

संदर्भ

  • तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने राज्य सरकारों के अधिकारों की रक्षा और केंद्र सरकार के साथ कार्य संबंधों को बेहतर बनाने के उद्देश्य से राज्य की स्वायत्तता पर उपाय सुझाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है।

समिति के बारे में

  • यह तीन सदस्यीय समिति है जिसकी अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ करेंगे।
  • समिति द्वारा जनवरी 2026 तक अपनी अंतरिम रिपोर्ट तथा दो वर्षों के अन्दर अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत किये जाने की संभावना है।
  • समिति के कार्यक्षेत्र में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • केंद्र-राज्य संबंधों के संबंध में संवैधानिक प्रावधानों, कानूनों, नियमों और नीतियों की समीक्षा करना;
    • राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित विषयों को पुनः स्थापित करने के तरीकों की सिफारिश करना;
    • राज्यों के लिए प्रशासनिक चुनौतियों पर काबू पाने के उपाय प्रस्तावित करना;
    • राष्ट्र की एकता और अखंडता से समझौता किए बिना राज्यों के लिए अधिकतम स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए सुधार सुझाना;
    • और केंद्र-राज्य संबंधों पर केंद्र सरकार द्वारा गठित राजमन्नार समिति और बाद में गठित आयोगों की सिफारिशों पर विचार करना।

संघवाद और इसकी प्रमुख विशेषताएँ

  • संघवाद एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता एक केंद्रीय प्राधिकरण और देश की विभिन्न घटक इकाइयों के बीच विभाजित होती है।
  • सरकार के दो या अधिक स्तर (या सोपान) होते हैं।
  • सरकार के विभिन्न स्तर एक ही नागरिकों पर शासन करते हैं, लेकिन कानून, कराधान और प्रशासन के विशिष्ट मामलों में प्रत्येक स्तर का अपना अधिकार क्षेत्र होता है।
  • संविधान में सरकार के संबंधित स्तरों या स्तरों के अधिकार क्षेत्र निर्दिष्ट किए गए हैं।
  • संविधान के मूल प्रावधानों को सरकार के एक स्तर द्वारा एकतरफा रूप से नहीं बदला जा सकता। ऐसे परिवर्तनों के लिए सरकार के दोनों स्तरों की सहमति आवश्यक है।
  • न्यायालयों को संविधान और सरकार के विभिन्न स्तरों की शक्तियों की व्याख्या करने का अधिकार है।
  • प्रत्येक स्तर की सरकार के लिए राजस्व के स्रोत स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किए गए हैं ताकि उसकी वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित की जा सके।

भारतीय संघवाद की प्रमुख विशेषताएँ

  • शक्तियों का संवैधानिक विभाजन: संविधान संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची (सातवीं अनुसूची) के माध्यम से संघ और राज्यों के बीच विषयों को विभाजित करता है।
  • सशक्त केंद्र: केंद्र सरकार के पास अधिक शक्तियाँ होती हैं, विशेषकर आपातकाल के समय।
    • संघ सूची में अधिक एवं महत्त्वपूर्ण विषय (जैसे रक्षा, विदेशी मामले) शामिल हैं।
  • एकल संविधान और नागरिकता: संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत भारत में एकल संविधान और एकल नागरिकता है।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका: सर्वोच्च न्यायालय संविधान के संरक्षक और केंद्र-राज्य विवादों में मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है।
  • अंतरराज्यीय परिषदें और वित्त आयोग: अंतरराज्यीय परिषद और वित्त आयोग जैसी संस्थामहत्त्व सहकारी संघवाद को बढ़ावा देती हैं।

भारतीय संघवाद के लिए चुनौतियाँ

  • बढ़ती क्षेत्रीय संवेदनशीलता और उप-राष्ट्रवाद: राज्यों के बीच बढ़ती क्षेत्रीय पहचान और संवेदनशीलता राष्ट्रीय एकता को चुनौती देती है।
    • क्षेत्रीय हितों पर केंद्रित राजनीतिक विचारधारामहत्त्व विशिष्ट क्षेत्रों को लाभ पहुँचा सकती हैं, लेकिन समग्र संघीय भावना को कमजोर कर सकती हैं।
  • राज्यों की वित्तीय निर्भरता: राजकोषीय स्वायत्तता की कमी के कारण राज्य वित्तीय रूप से केंद्र पर निर्भर हैं।
    • इस निर्भरता के परिणामस्वरूप परिचालन संबंधी बाधामहत्त्व उत्पन्न होती हैं और संघीय संकट गहराता है।
  • असमानता और राजनीतिक पूर्वाग्रह: राज्य प्रायः अधूरी क्षेत्रीय मांगों पर शिकायत व्यक्त करते हैं।
    • जनसंख्या और क्षेत्र के आधार पर प्रतिनिधित्व में असमानतामहत्त्व असमानता को जन्म देती हैं।
    • इससे अंतर-राज्यीय असमानता और केंद्र द्वारा उपेक्षा की धारणा पैदा होती है।
  • अविनाशी संघ, अविनाशी राज्य: अमेरिकी मॉडल के विपरीत, भारतीय राज्यों को स्थायी दर्जा प्राप्त नहीं है।
    • संघ एकतरफा रूप से राज्यों में परिवर्तन, विलय या विभाजन कर सकता है।
    • केंद्र की यह शक्ति राज्यों को संरचनात्मक रूप से कमजोर बनाकर संघीय प्रकृति को कमजोर करती है।
  • धार्मिक संघर्ष: धार्मिक तनाव संस्थागत संघर्षों को जन्म देते हैं और एकता को बाधित करते हैं।
    • ये चुनौतियाँ विविधतापूर्ण राष्ट्र में सद्भाव बनाए रखने की कठिनाई को उजागर करती हैं।
  • नये राज्यों की मांग: नये राज्यों की निरंतर बढ़ती मांग संघवाद के सुचारू संचालन के लिए खतरा पैदा करती है।

समितियों द्वारा सिफारिशें

  • सरकारिया आयोग (1983): केंद्र और राज्यों के बीच मौजूदा व्यवस्थाओं की कार्यप्रणाली की जांच और समीक्षा करना।
    • प्रमुख सिफारिशें: एक स्थायी, नियमित निकाय के रूप में अंतर-राज्य परिषद (अनुच्छेद 263) की भूमिका को मजबूत किया जाए।
      • अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) का प्रयोग संयम से और केवल अंतिम उपाय के रूप में करें।
      • राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता; केंद्रीय करों में अधिक हिस्सा।
  • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग – 2000 (अध्यक्षता: न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया)
    • प्रमुख सिफारिशें: राज्यों को अधिक धनराशि हस्तांतरित करके राजकोषीय संघवाद को मजबूत करना।
      • व्यापार विवादों को विनियमित करने के लिए अंतर-राज्य व्यापार आयोग की स्थापना की जाएगी।
      • राज्यों को प्रभावित करने वाले कानून पारित करने से पहले केंद्र-राज्य परामर्श तंत्र में सुधार करें।
  • पुंछी आयोग (2007): सरकारिया आयोग के बाद हुए परिवर्तनों के संदर्भ में केंद्र-राज्य संबंधों पर पुनर्विचार करना।
    • प्रमुख सिफारिशें: अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को सीमित करें; इसका उपयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए।
      • राज्यपाल की भूमिका गैर-पक्षपातपूर्ण होनी चाहिए; हटाने की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होनी चाहिए।
      • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अधिकृत अंतर-राज्यीय व्यापार और वाणिज्य आयोग का गठन।
      • समवर्ती सूची के अंतर्गत सूचीबद्ध विषयों में राज्यों को अधिक स्वायत्तता मिलनी चाहिए।
  • नीति आयोग सुधार (योजना आयोग के बाद):
    • राज्यों के साथ नियमित परामर्श के माध्यम से सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना।
    • आर्थिक नियोजन में राज्यों के लिए अधिक कहना है।
    • राज्य-विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर केन्द्र प्रायोजित योजनाओं को पुनः उन्मुख करना।

Source: TH

 

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