पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन व्यवस्था
संदर्भ
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने के अपने समर्थन को दोहराया तथा इस मामले पर डॉ. बी.आर. अंबेडकर और के.एम. मुंशी के विचारों का स्मरण किया।
समान नागरिक संहिता
- परिभाषा: इसे कानूनों के एक समूह के रूप में परिभाषित किया गया है जो सभी नागरिकों के लिए, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह, तलाक, गोद लेना, विरासत और उत्तराधिकार को नियंत्रित करता है।
- उद्देश्य: धार्मिक संबद्धता के आधार पर विभिन्न वर्तमान व्यक्तिगत कानूनों को प्रतिस्थापित करना।
- अनुच्छेद 44: यह संहिता संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत वर्णित है, जिसमें कहा गया है कि राज्य भारत के संपूर्ण क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
क्या आप जानते हैं ? – स्वतंत्रता के पश्चात्, गोवा ने एक समान पारिवारिक कानून को बनाये रखा, जिसे गोवा नागरिक संहिता के रूप में जाना जाता है और इस प्रकार यह 2024 से पहले समान नागरिक संहिता वाला भारत का एकमात्र राज्य था। – 2024 में, उत्तराखंड विधानसभा ने उत्तराखंड समान नागरिक संहिता अधिनियम, 2024 पारित किया, जिससे वह स्वतंत्रता के पश्चात् समान नागरिक संहिता अपनाने वाला पहला भारतीय राज्य बन गया। |
अनुच्छेद 44 की पृष्ठभूमि
- डॉ. बी आर अंबेडकर ने संविधान तैयार करते समय कहा था कि समान नागरिक संहिता वांछनीय है लेकिन फिलहाल इसे स्वैच्छिक रहना चाहिए और इस प्रकार मसौदा संविधान के अनुच्छेद 35 को अनुच्छेद 44 के रूप में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के एक भाग के रूप में जोड़ा गया। .
- इसे संविधान में एक ऐसे पहलू के रूप में शामिल किया गया था जो तब पूरा होगा जब राष्ट्र इसे स्वीकार करने के लिए तैयार होगा और समान नागरिक संहिता को सामाजिक स्वीकृति दी जा सकेगी।
UCC के पक्ष में तर्क
- कानून के समक्ष समानता: समान नागरिक संहिता यह सुनिश्चित करेगी कि सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, समान कानून के अधीन हों, जिससे समानता और न्याय को बढ़ावा मिले।
- राष्ट्रीय एकता: कानूनों का एक समान समुच्चय धार्मिक और सांस्कृतिक विभाजन को समाप्त करके राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में सहायता करता है।
- लैंगिक न्याय: व्यक्तिगत कानूनों में प्रायः ऐसे प्रावधान होते हैं जो महिलाओं के लिए हानिकारक होते हैं, विशेष रूप से विवाह, तलाक और उत्तराधिकार के मामलों में, एक समान संहिता भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त कर देगी।
- धर्मनिरपेक्षता: भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, और समान नागरिक संहिता धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को कायम रखेगी, यह सुनिश्चित करके कि धर्म कानूनी मामलों को प्रभावित नहीं करता है।
- आधुनिकीकरण: समान नागरिक संहिता समकालीन मूल्यों को प्रतिबिंबित करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि कानून मानव अधिकार, समानता एवं न्याय की आधुनिक अवधारणाओं के अनुरूप हों।
- दक्षता और स्पष्टता: इससे कानूनी प्रणाली सरल होगी और अधिक सुव्यवस्थित न्यायिक प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा।
UCC के विरुद्ध तर्क
- सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता: समान नागरिक संहिता लागू करना विभिन्न समुदायों के व्यक्तिगत कानूनों और प्रथाओं पर उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान एवं धार्मिक स्वतंत्रता को खतरा हो सकता है।
- धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन: समान नागरिक संहिता को किसी के अपने धर्म का पालन करने के अधिकार में हस्तक्षेप करने तथा भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने के रूप में देखा जा सकता है।
- आम सहमति का अभाव: विविध विश्वासों और प्रथाओं के कारण सभी के लिए स्वीकार्य एकल संहिता बनाना कठिन हो जाता है, जिससे सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है।
- राजनीतिक और सामाजिक संवेदनशीलताएँ: UCC एक राजनीतिक मुद्दा है और इसमें समुदायों को ध्रुवीकृत करने की क्षमता है।
- क्रमिक सुधार: आलोचकों का तर्क है कि सामुदायिक सहमति से धीरे-धीरे व्यक्तिगत कानूनों में सुधार करना, एक समान संहिता लागू करने की तुलना में अधिक प्रभावी होगा।
- भेदभाव की संभावना: कुछ लोगों को भय है कि इससे “बहुसंख्यक” या “मुख्यधारा” संस्कृति लागू हो सकती है, जिससे अल्पसंख्यक समुदाय हाशिए पर चले जाएँगे।
विभिन्न समितियों की सिफारिशें
- बी.एन. राव समिति (1947): भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए गठित समिति ने एक समान नागरिक संहिता की सिफारिश की, लेकिन इसके कार्यान्वयन को स्थगित कर दिया, जिसमें कहा गया कि इसे देश में एकता और सामान्य सहमति बनने के पश्चात् ही लागू किया जाना चाहिए।
- सच्चर समिति (1986): इसने समान नागरिक संहिता के महत्त्व पर बल दिया तथा तर्क दिया कि यह समानता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देगा। हालाँकि, सामाजिक तत्परता की आवश्यकता का उदहारण देते हुए, इसने तत्काल कार्यान्वयन पर बल नहीं दिया।
- विधि आयोग की रिपोर्ट (1986, 2018):
- 1986 की रिपोर्ट: भारत में धार्मिक विविधता को देखते हुए समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन को सावधानीपूर्वक और प्रगतिशील तरीके से किया जाना चाहिए। इसमें एक समान संहिता की ओर बढ़ने से पहले व्यक्तिगत कानूनों में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
- 2018 रिपोर्ट: UCC तभी लागू किया जाएगा जब इस पर अधिक सामाजिक सहमति होगी। इसने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की जल्दबाजी के बजाय वर्तमान व्यक्तिगत कानूनों में सुधार कर उन्हें आधुनिक मूल्यों और मानवाधिकारों के अनुरूप बनाने का सुझाव दिया।
पर्सनल लॉ(Personal Law) से संबंधित उच्चतम न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णय
- शाहबानो केस (1985): उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि मुस्लिम महिलाओं को अपने पर्सनल लॉ के बावजूद दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत अपने पति से गुजारा भत्ता माँगने का अधिकार है।
- इस निर्णय में लैंगिक समानता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया, यद्यपि अप्रत्यक्ष रूप से समान नागरिक संहिता (UCC) पर बल देने के लिए इसकी आलोचना भी की गई।
- सरला मुद्गल केस (1995): उच्चतम न्यायालय ने सरकार से कानूनी विसंगतियों को दूर करने तथा विवाह एवं तलाक कानूनों में एकरूपता लाने के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने पर विचार करने का आग्रह किया।
- ट्रिपल तलाक़ निर्णय (2017): उच्चतम न्यायालय ने मुसलमानों में प्रचलित ट्रिपल तलाक़ (तत्काल तलाक़) की प्रथा को असंवैधानिक घोषित करते हुए उसे रद्द कर दिया। इस निर्णय को लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत कानूनों में सुधार की दिशा में एक कदम के रूप में देखा गया, एक सिद्धांत जो संभावित समान नागरिक संहिता के साथ संरेखित होगा।
- इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम. केरल राज्य (2018) (सबरीमाला मामला): यद्यपि यह मामला प्रत्यक्षतः समान नागरिक संहिता को संबोधित नहीं करता था, लेकिन इसने धार्मिक प्रथाओं में लैंगिक समानता के मुद्दे को स्पर्श किया था। निर्णय में इस बात पर बल दिया गया कि व्यक्तिगत कानूनों का उपयोग लिंग के आधार पर भेदभाव करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, जिससे व्यक्तिगत कानूनों के अंदर भेदभावपूर्ण प्रथाओं में सुधार के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
आगे की राह
- भारत में समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन में एक संतुलित दृष्टिकोण शामिल है, जिसमें क्रमिक सुधार, समावेशिता और लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- ऐसा भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा।
Source: IE
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