हिंद महासागर: सामरिक महत्त्व और भारत की भूमिका

पाठ्यक्रम: GS2/ अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में स्थिरता और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक “समन्वित फ्लोटिला” की आवश्यकता पर बल दिया।
    • उनकी टिप्पणियों से क्षेत्र में बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और सुरक्षा चुनौतियों पर प्रकाश पड़ता है, जिसके लिए बहुपक्षीय समुद्री सहयोग आवश्यक हो गया है।

हिंद महासागर के बारे में

  • भौगोलिक अवलोकन:
    • तीसरा सबसे बड़ा महासागर: बंगाल की खाड़ी से अंटार्कटिका तक 9,600 किमी. तथा दक्षिण अफ्रीका से पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तक 7,800 किमी. तक फैला है।
    • समुद्र तट: 70,000 किमी., जिसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देश जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं।
    • जनसंख्या एवं तटीय प्रभाव: विश्व की 35% जनसंख्या और वैश्विक समुद्र तट का 40% भाग यहाँ निवास करता है।
  • ऐतिहासिक एवं सभ्यतागत महत्त्व:
    • इसका नाम भारत के नाम पर रखा गया है, जो समुद्री व्यापार पर इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रभाव को दर्शाता है।
    • प्रथम सहस्राब्दी से यह एक प्रमुख व्यापार मार्ग रहा है, जो भारत को अरब देशों, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका से जोड़ता रहा है।
    • रेशम मार्ग और मसाला व्यापार हिंद महासागर के रास्ते पुष्पित-पल्लवित हुआ, तथा यूरोप, एशिया एवं अफ्रीका को जोड़ा।
  • सामरिक महत्त्व:
    • एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक व्यापार मार्ग, जो विश्व के 70% कंटेनर यातायात को सुगम बनाता है।
    • भारत का 80% बाह्य व्यापार और 90% ऊर्जा आयात हिंद महासागर से होकर गुजरता है।
    • पश्चिम एशिया से भारत, चीन, जापान और यूरोप तक प्रमुख तेल आपूर्ति मार्ग इसी क्षेत्र से होकर गुजरते हैं।
  • समुद्री चोकप्वाइंट्स पर नियंत्रण: IOR में भारत की केंद्रीय स्थिति निम्नलिखित पर रणनीतिक लाभ प्रदान करती है:
    • होर्मुज जलडमरूमध्य (ईरान-ओमान) – तेल शिपमेंट के लिए महत्त्वपूर्ण।
    • बाब अल-मन्देब (यमन-जिबूती) – लाल सागर एवं स्वेज नहर में प्रवेश।
    • मलक्का जलडमरूमध्य (इंडोनेशिया-मलेशिया) – पूर्वी एशिया के लिए प्रमुख व्यापार मार्ग।

हिंद महासागर क्षेत्र में चुनौतियाँ (IOR)

  • समुद्री सुरक्षा खतरे: समुद्री डाकुओं के निरंतर हमले और तस्करी, विशेष रूप से सोमालिया एवं अदन की खाड़ी के पास।
  • आर्थिक एवं पर्यावरणीय मुद्दे: अत्यधिक मछली पकड़ने और गहरे समुद्र में खनन से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है।
  • जलवायु परिवर्तन एवं समुद्र का बढ़ता स्तर: छोटे द्वीपीय राष्ट्रों को तटीय क्षरण एवं जलमग्नता के जोखिम का सामना करना पड़ रहा है।
  • मानवीय संकट एवं आपदाएँ: चक्रवात, सुनामी और तेल रिसाव जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए समन्वित आपदा प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: अमेरिका, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस का बढ़ता प्रभाव क्षेत्र में शक्ति संघर्ष को बढ़ावा देता है।

हिंद महासागर में भारत की नीति में बदलाव

  • क्षेत्रीय संबंधों को मजबूत करना:
    • भारत निम्नलिखित माध्यमों से हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ रहा है:
      • हिंद महासागर सम्मेलन (IOC) – भारत द्वारा प्रारंभ किया गया एक प्रमुख कूटनीतिक मंच।
      • हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) – आर्थिक और समुद्री सुरक्षा पर बहुपक्षीय सहयोग।
      • हिंद महासागर नौसैनिक संगोष्ठी (IONS) – नौसैनिक अंतरसंचालनीयता और खुफिया जानकारी साझाकरण को बढ़ाना।
      • कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन – श्रीलंका, मालदीव और मॉरीशस के साथ समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद विरोध पर केंद्रित।

सागर(SAGAR) (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास):

  • प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 2015 में प्रारंभ की गई इस पहल का उद्देश्य है:
    • हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के नेतृत्व को मजबूत करना।
    • सुरक्षित वैश्विक व्यापार के लिए मुक्त एवं खुले समुद्री मार्ग सुनिश्चित करना।
    • सतत समुद्री विकास को बढ़ावा देना।
  • ब्लूवाटर क्षमताओं को बढ़ाना:
    • नौसेना विस्तार: भारत स्वदेशी विमानवाहक पोत और उन्नत पनडुब्बियों को शामिल करके अपनी नौसेना का आधुनिकीकरण कर रहा है।
    • समुद्री निगरानी: P-8I पोसाइडन विमान और उपग्रह आधारित ट्रैकिंग प्रणालियों की तैनाती।
    • क्वाड सहयोग: भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया समुद्री सुरक्षा, पनडुब्बी रोधी युद्ध एवं खुफिया जानकारी साझा करने पर सहयोग करते हैं।

Source: TH

 

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