पाठ्यक्रम: GS3/ अन्तरिक्ष
समाचार में
- सूचना प्रौद्योगिकी (IT) प्रमुख इंफोसिस भारत के अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अवसरों पर नजर टिकाए हुए है और उसने उपग्रहों के निर्माण एवं प्रक्षेपण के लिए एक दावेदार के रूप में अपना नाम आगे किया है।
परिचय
- भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र पर पारंपरिक रूप से इसरो का दबदबा रहा है, लेकिन हाल के नीतिगत बदलावों से यह क्षेत्र निजी उद्यमों और स्टार्टअप के लिए खुल रहा है।
- भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था आगामी पाँच वर्षों में 48% CAGR से बढ़कर $50 बिलियन तक पहुँचने की संभावना है।
- भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण का उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देना, निजी निवेश को आकर्षित करना, आयात पर निर्भरता कम करना और वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को मज़बूत करना है।
- IN-SPACe (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र) की स्थापना एक ऐतिहासिक कदम है, जो निजी उद्यमों को उपग्रह प्रक्षेपण, अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं और यहाँ तक कि गहरे अंतरिक्ष मिशनों में भाग लेने में सक्षम बनाता है।
भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र का निजीकरण क्यों आवश्यक है?
- अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं की बढ़ती मांग: भारत का अंतरिक्ष उद्योग तीव्रता से बढ़ रहा है, उपग्रह-आधारित सेवाओं की मांग इसरो की क्षमता से अधिक है।
- उपग्रह संचार, रिमोट सेंसिंग और भू-स्थानिक खुफिया जानकारी की माँग को पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है।
- आयात निर्भरता कम करना: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की आयात लागत उसके निर्यात (2022-23) से 12 गुना अधिक है। प्रमुख आयातित वस्तुओं में उच्च शक्ति वाले कार्बन फाइबर, अंतरिक्ष-योग्य सौर सेल और इलेक्ट्रॉनिक घटक शामिल हैं।
- निजी विनिर्माण को प्रोत्साहित करने से स्वदेशी अंतरिक्ष-ग्रेड सामग्री विकसित करने में मदद मिल सकती है।
- इसरो को मुख्य मिशनों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए स्वतंत्र करना: निजीकरण इसरो को अंतरग्रहीय मिशनों, अंतरिक्ष अनुसंधान और राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है।
- निजी खिलाड़ी वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के परिचालन पहलुओं को अपने हाथ में ले सकते हैं।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना: संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों ने लागत कम करने और दक्षता बढ़ाने के लिए निजी उद्यमों का सफलतापूर्वक लाभ उठाया है।
- स्पेसएक्स, ब्लू ओरिजिन और एरियनस्पेस जैसी कंपनियों ने अंतरिक्ष व्यावसायीकरण को बदल दिया है।
- भारत की निजी अंतरिक्ष फर्मों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने और 450 बिलियन डॉलर की वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए विकसित होना चाहिए।
- भारत की मानव पूँजी का उपयोग: भारत प्रत्येक वर्ष 1.5 मिलियन से अधिक इंजीनियर तैयार करता है।
- भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 48% CAGR से बढ़ने और 2028 तक 50 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की संभावना है।
- जोखिम साझा करना: अंतरिक्ष अन्वेषण में उच्च लागत और जोखिम शामिल हैं। सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) लागत वितरित कर सकती है, जिससे सरकार पर वित्तीय दबाव कम हो सकता है।
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण में प्रमुख सुधार
- भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023: निजी फर्मों को उपग्रह प्रक्षेपण, अनुसंधान एवं विकास तथा अन्वेषण में संलग्न होने की अनुमति देती है।
- IN-SPACe की स्थापना: निजी क्षेत्र की भागीदारी को विनियमित करने और उसे सुविधाजनक बनाने के लिए एकल-खिड़की एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
- निजी खिलाड़ियों को इसरो की प्रक्षेपण सुविधाओं, अनुसंधान एवं विकास केंद्रों तथा उपग्रह डेटा तक पहुँच प्रदान करती है।
- न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) का निर्माण: यह इसरो के वाणिज्यिक संचालन, जैसे उपग्रह प्रक्षेपण और ट्रांसपोंडर लीजिंग को संभालता है।
- निजी कंपनियों के साथ साझेदारी के माध्यम से इसरो की प्रौद्योगिकियों के मुद्रीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है।
- FDI नीति सुधार: उपग्रह निर्माण और संचालन में 74% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है।
- लॉन्च वाहनों, स्पेसपोर्ट और संबंधित प्रणालियों में 49% FDI की अनुमति है।
- अंतरिक्ष स्टार्टअप को समर्थन: भारत में 200 से अधिक अंतरिक्ष स्टार्टअप कार्य कर रहे हैं, जो प्रक्षेपण वाहन, उपग्रह सेवाएं और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों का विकास कर रहे हैं।
- विक्रम-एस रॉकेट: भारत का प्रथम निजी रॉकेट, जिसे स्काईरूट एयरोस्पेस द्वारा लॉन्च किया गया।
- अग्निकुल कॉसमॉस: विश्व का प्रथम 3डी-प्रिंटेड रॉकेट इंजन विकसित किया।
- वनवेब इंडिया: सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए IN-SPACe द्वारा स्वीकृत पहली कंपनी।
- वैश्विक सहयोग को प्रोत्साहित करना: भारतीय कंपनियाँ ज्ञान साझा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों और निगमों के साथ साझेदारी कर सकती हैं।
- उदाहरण: संयुक्त चंद्र और मंगल मिशन के लिए नासा और JAXA के साथ इसरो का सहयोग।
- अटल टिंकरिंग लैब (ATL) स्पेस चैलेंज: अंतरिक्ष नवाचार में स्कूली छात्रों को प्रोत्साहित करता है।
निजी क्षेत्र की भागीदारी में चुनौतियाँ और चिंताएं
- विनियामक और कानूनी खामियाँ: निजी क्षेत्र के संचालन को नियंत्रित करने के लिए कोई समर्पित अंतरिक्ष कानून नहीं है।
- विनियमों की बहुलता (इसरो, DoS, NSIL, एंट्रिक्स, IN-SPACe) नौकरशाही बाधाओं का कारण बनती है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिम: निजी भागीदारी में वृद्धि के कारण संवेदनशील प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जोखिम।
- उपग्रह डेटा की सुरक्षा के लिए सख्त साइबर सुरक्षा नीतियों की आवश्यकता है।
- बौद्धिक संपदा (IP) मुद्दे: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के लिए स्पष्ट IP कानूनों की कमी निजी अनुसंधान और विकास को हतोत्साहित कर सकती है।
- निजी फर्मों को प्रौद्योगिकी रिसाव या इसरो के अनुसंधान के दुरुपयोग का भय है।
- वित्त पोषण और निवेश बाधाएँ: अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिए उच्च पूँजी निवेश और लंबी ऊष्मायन अवधि की आवश्यकता होती है।
- निजी निवेशक 5G और फिनटेक जैसे क्षेत्रों में अल्पकालिक लाभ पसंद करते हैं।
- सरकारी बुनियादी ढाँचे पर निर्भरता: निजी फर्म इसरो की लॉन्च सुविधाओं, प्रयोगशालाओं और ग्राउंड स्टेशनों पर निर्भर हैं।
- निजी बुनियादी ढाँचे को विकसित करने की उच्च लागत स्वतंत्र विकास में बाधा डालती है।
- बाजार संतृप्ति और प्रतिस्पर्धा: क्षेत्र में बहुत अधिक खिलाड़ियों के प्रवेश से अस्थिरता हो सकती है।
- छोटे स्टार्टअप को बड़ी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में संघर्ष करना पड़ सकता है।
- पर्यावरण और अंतरिक्ष मलबे के मुद्दे: उपग्रह प्रक्षेपणों में वृद्धि से अंतरिक्ष मलबे की समस्याएँ और भी बदतर हो सकती हैं।
- उपग्रहों की डीऑर्बिटिंग और रीसाइकिलिंग को प्रबंधित करने के लिए स्थायी अंतरिक्ष नीतियों की आवश्यकता है।
आगे की राह
- अंतरिक्ष गतिविधियाँ अधिनियम का अधिनियमन: निजी क्षेत्र की भूमिकाएँ, दायित्व ढाँचे और निवेश नीतियाँ परिभाषित करना।
- स्वदेशी क्षमताओं का विकास: प्रणोदन प्रणाली, AI-संचालित उपग्रह तकनीक और 3D-मुद्रित घटकों के घरेलू विनिर्माण में निवेश करना।
- निजी प्रक्षेपण अवसंरचना का निर्माण: इसरो पर निर्भरता कम करने के लिए निजी लॉन्चपैड और परीक्षण केंद्रों को प्रोत्साहित करना।
Source: BL
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