भारत की खनिज कूटनीति

पाठ्यक्रम: GS2/ अंतरराष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • महत्त्वपूर्ण खनिजों के प्रमुख आयातक के रूप में भारत, चीन जैसे देशों पर अपनी निर्भरता कम करते हुए, अपने विनिर्माण और तकनीकी विकास को समर्थन देने के लिए अपनी खनिज सुरक्षा को सुदृढ़ करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

परिचय

  • संसद में एक प्रश्न के उत्तर में, भारत सरकार ने कहा कि देश अपनी लिथियम आवश्यकताओं के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर है, अकेले चीन भारत के लिथियम और लिथियम-आयन आयात का 70 से 80 प्रतिशत भाग है। 
  • भारत अपने प्राकृतिक ग्रेफाइट आयात के 60 प्रतिशत को पूरा करने के लिए भी चीन पर निर्भर है। दोनों ही बैटरी और इलेक्ट्रिक वाहन (EV) उद्योग के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • इसके अतिरिक्त, कोबाल्ट, निकल और तांबे के लिए आयात पर भारत की निर्भरता 93 से 100 प्रतिशत के बीच है। 
  • वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत ने इन चार खनिजों के आयात पर 34,000 करोड़ रुपये से अधिक व्यय किए।

भारत की खनिज कूटनीति के स्तंभ

  • अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव और रणनीतिक साझेदारी: लिथियम, कोबाल्ट और अन्य महत्त्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, रूस, कजाकिस्तान और अमेरिका जैसे संसाधन संपन्न देशों के साथ साझेदारी करना। KABIL (खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड) की स्थापना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • प्रमुख घटनाक्रम: 
      • ऑस्ट्रेलिया: दो लिथियम और तीन कोबाल्ट परियोजनाओं के लिए समझौता। 
      • अर्जेंटीना: 2024 में लिथियम अन्वेषण के लिए $24 मिलियन का समझौता।
      •  कजाकिस्तान: टाइटेनियम स्लैग उत्पादन के लिए संयुक्त उद्यम।
    • जून 2022 में स्थापित अमेरिका के नेतृत्व वाली खनिज सुरक्षा साझेदारी (MSP) चार प्रमुख महत्त्वपूर्ण खनिज चुनौतियों का समाधान करती है,
      • पहला, “वैश्विक आपूर्ति शृंखला ओं में विविधता लाना और उन्हें स्थिर बनाना; 
      • दूसरा, उन आपूर्ति शृंखला ओं में निवेश करना;
      • तीसरा, खनन, प्रसंस्करण एवं पुनर्चक्रण क्षेत्रों में उच्च पर्यावरणीय, सामाजिक तथा शासन मानकों को बढ़ावा देना; और 
      • चौथा, महत्त्वपूर्ण खनिजों के पुनर्चक्रण को बढ़ाना”।
  • बहुपक्षीय पहल: भारत सतत् महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला ओं के लिए क्वाड, इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF), मिनरल सिक्योरिटी पार्टनरशिप (MSP) और G7 जैसे बहुपक्षीय मंचों के साथ भी जुड़ रहा है। 
  • ज्ञान साझा करना और क्षमता निर्माण: आपूर्ति शृंखला के अपस्ट्रीम, मिडस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम खंडों में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के लिए यूरोपीय संघ, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे वैश्विक भागीदारों के साथ जुड़ाव।

खनिज कूटनीति में चुनौतियाँ

  • निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी: निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए स्पष्ट नीति और रोडमैप का अभाव। नवंबर 2023 से खान मंत्रालय ने कुल 49 महत्त्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों की नीलामी के चार चरण आयोजित किए हैं। लेकिन अधिकांश खनिज ब्लॉक की बिक्री अपर्याप्त प्रस्तावों के कारण नहीं हो पाई हैं।
    • निवेशों को जोखिम मुक्त करने के लिए आपूर्ति शृंखला रणनीति का अभाव।
  • प्रक्रिया प्रौद्योगिकी का अभाव: घरेलू खनन उद्योग की ओर से प्रतिक्रिया की कमी के विभिन्न कारण हो सकते हैं, उनमें से प्रमुख कारण भारत में निष्कर्षण और प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों की अनुपलब्धता है, जिसके कारण भारत पूरी तरह से चीन से आयात पर निर्भर है।
    • महत्त्वपूर्ण खनिज जो भूमि के अंदर गहराई में उपलब्ध हैं, जैसे कोबाल्ट, लिथियम, निकल और तांबा, उनका अन्वेषण एवं खनन करना सतह के निकट उपलब्ध खनिजों की तुलना में कठिन है।
  • कमजोर कूटनीतिक क्षमता: विदेश मंत्रालय के अंदर एक समर्पित खनिज कूटनीति प्रभाग की आवश्यकता।
    • राजनयिक मिशनों में खनिज कूटनीति के लिए विशेष पदों का अभाव।
  • अपर्याप्त स्थायी साझेदारियाँ: यूरोपीय संघ, दक्षिण कोरिया और क्वाड सदस्यों जैसे रणनीतिक सहयोगियों के साथ विश्वसनीय, दीर्घकालिक साझेदारी बनाने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • निजी क्षेत्र की बढ़ी हुई भूमिका: खनिज अन्वेषण, प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी विकास में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए एक स्पष्ट रणनीति एवं प्रोत्साहन विकसित करना।
  • सुदृढ़ कूटनीतिक भागीदारी: खनिज सौदों पर प्रभावी ढंग से बातचीत करने और सशक्त साझेदारी बनाने के लिए विशेष कूटनीतिक क्षमता और विशेषज्ञता में निवेश करना।
  • व्यापक रणनीति: एक राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज रणनीति तैयार करना जो स्पष्ट लक्ष्यों, प्राथमिकताओं और खनिज सुरक्षा प्राप्त करने के लिए एक रोडमैप को रेखांकित करती हो।
  • सतत् प्रथाएँ: पर्यावरणीय और सामाजिक मानकों का पालन करते हुए महत्त्वपूर्ण खनिजों के सतत् और उत्तरदायी स्रोत को प्राथमिकता देना।

Source: TH