भारत में अपशिष्ट जल प्रबंधन

पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण एवं संरक्षण

संदर्भ

  • विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) द्वारा संयुक्त रूप से “अपशिष्ट से मूल्य तक: अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग के माध्यम से भारत के शहरी जल संकट का प्रबंधन” रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।

प्रमुख विशेषताएँ

  • भारत में उत्पन्न शहरी अपशिष्ट जल एवं सीवेज का मात्र 28% ही उपचारित किया जाता है, जबकि शेष सीधे नदियों, झीलों और भूमि में प्रवाहित हो जाता है।
  • 20% भूजल ब्लॉक गंभीर स्थिति में हैं या उनका अत्यधिक दोहन हो चुका है; 55% घरों में या तो खुली नालियाँ हैं या फिर हैं ही नहीं तथा 302 नदियों के 91% हिस्से प्रदूषित हैं।
  • अनुशंसाएँ:
    • यदि समस्त अपशिष्ट जल को उपचारित कर पुनः उपयोग में लाया जाए तो भारत का शहरी जल संकट कम हो सकता है।
    • जल शक्ति मंत्रालय ने आदेश दिया है कि शहरों को अपने उपभोग किए गए जल का कम से कम 20% पुनर्चक्रित और पुनः उपयोग करना होगा।

अपशिष्ट जल क्या है?

  • अपशिष्ट जल वह प्रयुक्त जल है जो विभिन्न पदार्थों द्वारा संदूषित हो चुका है तथा सामान्यतः घरेलू, औद्योगिक, वाणिज्यिक और कृषि गतिविधियों से उत्पन्न होता है।
  • इसमें वह जल शामिल है जिसका उपयोग स्नान करने, खाना पकाने, कपड़े धोने और औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसी गतिविधियों के लिए किया गया है।
  • अपशिष्ट जल में विभिन्न प्रकार के प्रदूषक हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • कार्बनिक पदार्थ: जैसे खाद्य अवशेष, साबुन, डिटर्जेंट और मानव अपशिष्ट।
    • रसायन: सफाई उत्पादों, औद्योगिक प्रक्रियाओं, या कृषि अपवाह से।
    • जैविक संदूषक: बैक्टीरिया, वायरस और अन्य रोगजनक।
    • पोषक तत्त्व: जैसे मानव अपशिष्ट, उर्वरक या डिटर्जेंट से प्राप्त नाइट्रोजन और फास्फोरस।

अपशिष्ट जल प्रबंधन की चुनौतियाँ:

  • प्रदूषण: अनुपचारित या अपर्याप्त रूप से उपचारित अपशिष्ट जल प्रायः नदियों, झीलों और भूजल को दूषित कर देता है, जिससे गंभीर जल प्रदूषण होता है।
  • स्वास्थ्य जोखिम: प्रदूषित जल हैजा, पेचिश और टाइफाइड जैसी बीमारियों को फैलाता है, जिससे लाखों लोग प्रभावित होते हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों एवं अनौपचारिक बस्तियों में।
  • अतिभारित बुनियादी ढाँचा: विभिन्न शहरों में पर्याप्त अपशिष्ट जल उपचार सुविधाओं का अभाव है, जिसके कारण बड़ी मात्रा में अनुपचारित सीवेज को जल निकायों में डाल दिया जाता है।
  • जल की कमी: जल की कमी वाले क्षेत्रों में अपशिष्ट जल प्रायः अनुपचारित रह जाता है, जिससे पहले से ही सीमित स्वच्छ जल संसाधन और भी अधिक कम हो जाते हैं।
  • औद्योगिक उत्सर्जन: औद्योगिक अपशिष्ट, जो प्रायः विषाक्त होते हैं, कभी-कभी बिना उचित उपचार के सीधे जल स्रोतों में छोड़ दिए जाते हैं, जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।

उपचार के पश्चात् अपशिष्ट जल का उपयोग

  • कृषि: उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सकता है, जिससे कृषि के लिए स्वच्छ जल के स्रोतों पर निर्भरता कम हो जाएगी, विशेष रूप से जल की कमी वाले क्षेत्रों में।
  • औद्योगिक उपयोग: इसका उपयोग औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसे शीतलन, धुलाई और सफाई में किया जा सकता है, जिससे उद्योगों में पीने योग्य जल की माँग कम हो जाती है।
  • शहरी भू-दृश्य: इससे पार्कों, उद्यानों और सार्वजनिक हरित स्थानों की सिंचाई की जा सकती है, जिससे बेहतर शहरी नियोजन में योगदान मिलेगा और जल की खपत कम होगी।
  • भूजल पुनर्भरण: इसका उपयोग कृत्रिम भूजल पुनर्भरण के लिए किया जा सकता है, जिससे घटते जलभृतों को पुनर्स्थापित करने में सहायता मिलेगी।
  • गैर-पेय घरेलू उपयोग: इसका उपयोग गैर-पेय प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है, जिससे नगरपालिका जल आपूर्ति पर दबाव कम करने में सहायता मिलती है।

सरकारी पहल

  • नमामि गंगे कार्यक्रम: गंगा को स्वच्छ और पुनर्जीवित करने के लिए प्रारंभ की गई यह पहल प्रदूषण को कम करने और जल की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए अपशिष्ट जल उपचार, सीवरेज बुनियादी ढाँचे एवं रिवरफ्रंट विकास पर केंद्रित है।
  • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (AMRUT): शहरी बुनियादी ढाँचे में सुधार लाने के उद्देश्य से, यह मिशन शहरों में सीवेज नेटवर्क, अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र प्रदान करने और जल निकासी प्रणालियों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • स्वच्छ भारत मिशन (शहरी): इस पहल में स्वच्छता में सुधार और जल प्रदूषण को कम करने के लिए व्यक्तिगत एवं सामुदायिक शौचालयों का निर्माण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन तथा अपशिष्ट जल उपचार सुविधाएँ शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP): नदियों में प्रवेश करने वाले अपशिष्ट जल के उपचार और सीवेज उपचार संयंत्रों की स्थापना तथा नालियों को रोककर जल की गुणवत्ता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करती है।
  • राज्यों के लिए उपचारित जल के सुरक्षित पुनः उपयोग हेतु राष्ट्रीय रूपरेखा: यह रूपरेखा राज्य पुनः उपयोग नीति के निर्माण के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करती है तथा इसका उद्देश्य उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग के लिए उपयुक्त बाजार एवं आर्थिक मॉडल का निर्माण करना है।
  • राज्य-विशिष्ट कार्यक्रम: विभिन्न राज्यों के पास अपशिष्ट जल उपचार के लिए अपनी स्वयं की योजनाएँ हैं, जैसे यमुना कार्य योजना और औद्योगिक अपशिष्टों के उपचार के लिए परियोजनाएँ।

निष्कर्ष

  • भारत में 80% अपशिष्ट जल को उपचारित कर पुनः उपयोग करने की क्षमता है, जिससे जल सुरक्षा में सुधार होगा तथा कई क्षेत्रों में राजस्व में स्थायी वृद्धि होगी।
  • कर्नाटक के कोलार जिले में बेंगलुरू से लाए गए उपचारित अपशिष्ट जल से बड़े पैमाने पर भूजल पुनर्भरण से भूजल की गुणवत्ता और कृषि उत्पादन में सुधार हुआ है तथा यह अन्य राज्यों एवं जिलों के लिए एक आदर्श बन सकता है।

Source: BS