पाठ्यक्रम: GS2/मौलिक अधिकार; सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप
संदर्भ
- पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए 19वें रामनाथ गोयनका पुरस्कार समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लोकतंत्र को बनाए रखने में पत्रकारिता की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया।
लोकतंत्र में पत्रकारिता
- पत्रकारिता को प्रायः ‘चौथा स्तंभ’ कहा जाता है, क्योंकि यह एक निगरानीकर्त्ता के रूप में कार्य करता है, पारदर्शिता सुनिश्चित करता है, सत्ता को जवाबदेह बनाता है, और नागरिकों को सूचित निर्णय लेने के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करता है।
- लोकतंत्र में, विश्वसनीय जानकारी का मुक्त प्रवाह सार्वजनिक विमर्श को मजबूत करता है, जिससे सक्रिय नागरिक भागीदारी संभव होती है।
पत्रकारिता का ऐतिहासिक महत्त्व
- औपनिवेशिक युग और प्रारंभिक प्रतिबंध: ब्रिटिश सरकार ने राष्ट्रवादी भावनाओं को दबाने के लिए वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (1878) जैसे कानून बनाए।
- केसरी (बाल गंगाधर तिलक द्वारा संपादित), बंदे मातरम और अमृत बाजार पत्रिका जैसे समाचार पत्रों ने जनमत को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिन्हें प्रायः दमन का सामना करना पड़ा।
- भारत में, प्रेस ने निम्नलिखित में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है:
- भ्रष्टाचार को उजागर करना: खोजी पत्रकारिता ने बोफोर्स घोटाला, 2 जी स्पेक्ट्रम मामला और व्यापम घोटाला जैसे घोटालों को उजागर किया है।
- कानून बनाना: समाचार पत्रों एवं टीवी परिचर्चाओं ने सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम जैसी प्रमुख नीतियों और कानूनी सुधारों को प्रभावित किया है।
- चुनावी अखंडता सुनिश्चित करना: चुनावों का मीडिया कवरेज मतदाताओं को उम्मीदवारों, नीतियों और राजनीतिक घोषणापत्रों के बारे में शिक्षित करता है।
लोकतंत्र में पत्रकारिता के कार्य
- सटीक और समय पर सूचना प्रदान करना: एक सुचारु रूप से कार्य करने वाला लोकतंत्र एक सूचित मतदाता पर निर्भर करता है। पत्रकार शासन, नीतियों एवं सामाजिक मुद्दों के बारे में समाचार एकत्र करते हैं, सत्यापित करते हैं और प्रसारित करते हैं, जिससे नागरिक ज्ञानपूर्ण विकल्प चुन पाते हैं।
- निगरानीकर्त्ता के रूप में कार्य करना: मीडिया सरकारों, निगमों और संस्थानों को जवाबदेह बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खोजी पत्रकारिता भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन और सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करने में सहायता करती है।
- सार्वजनिक परिचर्चा और राय निर्माण को सुविधाजनक बनाना: संपादकीय, परिचर्चा एवं राय के खंडों के माध्यम से, पत्रकारिता विविध दृष्टिकोणों के लिए एक मंच प्रदान करती है, चर्चा और असहमति की संस्कृति को बढ़ावा देती है – दोनों एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं।
- नागरिकों को शिक्षित करना: समाचारों से परे, पत्रकारिता आर्थिक नीतियों, स्वास्थ्य मुद्दों और वैश्विक मामलों का महत्त्वपूर्ण विश्लेषण प्रदान करती है, जिससे लोग अपने जीवन को प्रभावित करने वाले जटिल विषयों को समझने में सक्षम होते हैं।
- प्रेस की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा करना: एक स्वतंत्र प्रेस किसी भी लोकतंत्र की नींव है। स्वतंत्र पत्रकारिता सुनिश्चित करती है कि सरकारें असहमति की आवाज़ों को दबाएँ नहीं, इस प्रकार लोकतांत्रिक आदर्शों को संरक्षित किया जाता है।
आधुनिक पत्रकारिता परिदृश्य में चुनौतियाँ
- फर्जी खबरें और गलत सूचना: सोशल मीडिया के उदय के साथ, असत्यापित एवं भ्रामक जानकारी तेजी से फैलती है, जो प्रायः जनता की राय और चुनावी परिणामों को प्रभावित करती है।

- राजनीतिक और कॉर्पोरेट प्रभाव: मीडिया घरानों को प्रायः राजनीतिक दलों और कॉर्पोरेट संस्थाओं के दबाव का सामना करना पड़ता है, जिससे पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग होती है। यह पत्रकारिता की अखंडता को कमजोर करता है और जनता के विश्वास को प्रभावित करता है।
- प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले: विश्व भर में पत्रकारों को सेंसरशिप, कानूनी धमकियों और शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है। भारत में, राजद्रोह कानूनों के अंतर्गत धमकाने और गिरफ्तारियों की रिपोर्टों ने प्रेस की स्वतंत्रता में गिरावट के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- वित्तीय स्थिरता: डिजिटल मीडिया में बदलाव ने पारंपरिक राजस्व मॉडल को बाधित कर दिया है, जिससे स्वतंत्र समाचार संगठनों के लिए कॉर्पोरेट या राजनीतिक समर्थन के बिना जीवित रहना मुश्किल हो गया है।
भारत में पत्रकारिता को मजबूत करने वाले प्रमुख कानून
- प्रेस परिषद अधिनियम, 1978: इसने पत्रकारिता नैतिकता को बनाए रखने के लिए भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना की।
- मीडिया के कदाचार के विरुद्ध निगरानी संस्था के रूप में कार्य करता है, लेकिन इसमें कोई दंडात्मक शक्तियाँ नहीं हैं।
- सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005: पत्रकारों को सरकारी रिकॉर्ड तक पहुँचने और पारदर्शिता को बढ़ावा देने में सक्षम बनाता है।
- खोजी पत्रकारिता के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
- व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन एक्ट, 2014: भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले व्यक्तियों (पत्रकारों सहित) को सुरक्षा प्रदान करता है।
- केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995: जिम्मेदार रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिए टीवी चैनलों पर प्रसारित सामग्री को विनियमित करता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: डिजिटल समाचार मीडिया के लिए सामग्री विनियमन प्रस्तुत करता है।
- शिकायत निवारण तंत्र को अनिवार्य बनाता है।
- मानहानि कानून (भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500): प्रायः प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के लिए इसका दुरुपयोग किया जाता है, लेकिन यह जवाबदेही भी सुनिश्चित करता है।
भारत में पत्रकारिता पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
- रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950): इस बात की पुष्टि की गई कि प्रेस की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मुक्त भाषण का हिस्सा है।
- हालाँकि, यह अधिकार अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत उचित प्रतिबंधों के अधीन है, जो सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा, मानहानि या सार्वजनिक व्यवस्था की चिंताओं के मामलों में सीमाएँ लगाने की अनुमति देता है।
- बेनेट कोलमैन एंड कंपनी बनाम भारत संघ (1973): न्यूज़प्रिंट पर सरकारी नियंत्रण को समाप्त कर दिया, जिससे मीडिया की स्वतंत्रता को बल मिला।
- इंडियन एक्सप्रेस न्यूज़पेपर्स बनाम भारत संघ (1985): फैसला सुनाया कि समाचार पत्रों पर अत्यधिक कर लगाने से प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगता है।
- सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्प बनाम सेबी (2012): न्याय के लिए “वास्तविक और पर्याप्त” जोखिम के मामलों में ही मीडिया रिपोर्टों पर पूर्व प्रतिबंध लगाने की अनुमति दी गई।
- अर्नब रंजन गोस्वामी बनाम भारत संघ (2020): इस बात पर प्रकाश डाला गया कि प्रेस की स्वतंत्रता को मनमाने ढंग से कम नहीं किया जा सकता है, लेकिन मीडिया को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए।
- अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (2020): इस बात पर बल दिया गया कि इंटरनेट बंद करने से पत्रकारिता पर अंकुश लगता है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है।
आगे की राह: भारत में पत्रकारिता को मजबूत बनाना
- कानूनी सुधार और प्रेस स्वतंत्रता संरक्षण:
- प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को और अधिक प्रभावी निगरानी संस्था के रूप में कार्य करने के लिए मजबूत बनाना।
- पत्रकारों को कानूनी उत्पीड़न (जैसे, मानहानि, राजद्रोह कानून) से बचाने के लिए कानूनों को लागू करना।
- समाचार सामग्री पर मनमाने प्रतिबंधों को रोकना और डिजिटल पत्रकारिता पर निष्पक्ष विनियमन सुनिश्चित करना।
- मीडिया साक्षरता और नैतिकता प्रशिक्षण:
- प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से नैतिक पत्रकारिता को प्रोत्साहित करना।
- गलत सूचना का मुकाबला करने के लिए तथ्य-जाँच पहल को बढ़ावा देना।
- न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) जैसे स्व-नियमन निकायों को मजबूत करना।
- वित्तीय स्वतंत्रता और स्थिरता:
- अनुदान और सब्सिडी के माध्यम से स्वतंत्र पत्रकारिता को प्रोत्साहित करना।
- सरकार और कॉर्पोरेट विज्ञापनों पर निर्भरता कम करना।
- वैकल्पिक राजस्व मॉडल (जैसे, सदस्यता-आधारित पत्रकारिता) पेश करना।
- डिजिटल परिवर्तन और साइबर सुरक्षा:
- छोटे और क्षेत्रीय समाचार प्लेटफार्मों के लिए डिजिटल पहुँच का विस्तार करना।
- पत्रकारों को ऑनलाइन खतरों से बचाने के लिए साइबर सुरक्षा उपायों को लागू करना।
- निगरानी और डेटा उल्लंघनों के विरुद्ध सुरक्षा बढ़ाना।
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संक्षिप्त समाचार 19-03-2025