नागरिकता अधिनियम की धारा 6A पर चिंताएँ

पाठ्यक्रम: GS2/ राजव्यवस्था और शासन व्यवस्था

सन्दर्भ

  • धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखने वाले उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने संवैधानिक चिंताओं को उत्पन्न किया है, विशेष रूप से वे चिंताएँ जो असम की स्थानीय जनसँख्या को प्रभावित करती हैं।

पृष्ठभूमि

  • नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A , 1 ​​जनवरी, 1966 के पश्चात् लेकिन 24 मार्च, 1971 से पहले असम में प्रवेश करने वाले प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करती है।
    • यह प्रावधान “असम समझौते” नामक समझौता ज्ञापन को आगे बढ़ाने के लिए अधिनियम में शामिल किया गया था।
  • धारा 6A  के अंतर्गत, जो विदेशी 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश कर चुके थे और राज्य में “सामान्य रूप से निवासी” थे, उन्हें भारतीय नागरिकों के सभी अधिकार एवं दायित्व प्राप्त होंगे।

प्रावधान पर चिंताएँ व्यक्त की गईं

  • कट-ऑफ तिथि असम में प्रवेश करने वाले आप्रवासियों के लिए शेष भारत की तुलना में नागरिकता के लिए एक अलग मानक प्रदान करती है (जो जुलाई 1948 है) और यह संविधान के समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन करती है।
  • इसके अतिरिक्त यह प्रावधान राज्य की जनसांख्यिकी में परिवर्तन करके अनुच्छेद 29 के अंतर्गत असम के मूल निवासियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
असम समझौता क्या है?
– असम समझौते पर 1985 में भारत संघ, सरकार के बीच हस्ताक्षर किए गए थे। असम, ऑल असम स्टूडेंट यूनियन, ऑल असम गण संग्राम परिषद।
– असम समझौते की विभिन्न धाराओं को क्रियान्वित करने के लिए वर्ष 1986 में “असम समझौता कार्यान्वयन विभाग” के नाम से एक नया विभाग स्थापित किया गया।
– समझौते में 24 मार्च 1971 को कट-ऑफ तिथि निर्धारित की गई। जो कोई भी उस तिथि को मध्यरात्रि से पहले असम आया होगा वह भारतीय नागरिक होगा, जबकि जो लोग उसके पश्चात् आए होंगे उन्हें विदेशी माना जाएगा।
– राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को अद्यतन करने में भी इसी कट-ऑफ का उपयोग किया गया।

उच्चतम न्यायालय का निर्णय

  • न्यायालय ने कहा कि किसी राज्य में विविध जातीय समूहों की उपस्थिति मात्र अपने आप में संविधान के अनुच्छेद 29(1) (अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण) का उल्लंघन नहीं है।
  • धारा 6A एक वैधानिक हस्तक्षेप है जो भारतीय मूल के प्रवासियों की मानवीय आवश्यकताओं और भारतीय राज्यों की आर्थिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं पर ऐसे प्रवास के प्रभाव के बीच संतुलन स्थापित करता है।

निष्कर्ष

  • निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 11 के अंतर्गत नागरिकता के मामलों पर संसदीय सर्वोच्चता को रेखांकित किया गया।
  • इसने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 के अंतर्गत संशोधनों के लिए केंद्र सरकार के बचाव को भी सशक्त किया, जिसे वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019
– इसने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1955 में संशोधन किया, जिसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह गैर-मुस्लिम समुदायों – हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई से संबंधित अनिर्दिष्ट प्रवासियों को नागरिकता की सुविधा देने के लिए दो प्रमुख परिवर्तन किए गए; जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश कर चुके हों।
– इसने नागरिकता के लिए अर्हता प्राप्त करने की अवधि को 11 वर्ष के निरंतर प्रवास की वर्तमान आवश्यकता से घटाकर पाँच वर्ष कर दिया।
– हालाँकि, पाकिस्तानी हिंदू नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5 और धारा 6 (1) के अंतर्गत नागरिकता के लिए पात्र थे। CAA ने केवल आवेदन प्रक्रिया को तीव्र करने में सहायता की।
– नियमों के अंतर्गत जनगणना कार्य निदेशक की अध्यक्षता वाली अधिकार प्राप्त समिति को नागरिकता प्रदान करने का अंतिम अधिकार दिया गया है, जबकि पोर्टल पर ऑनलाइन दाखिल आवेदनों की जाँच डाक विभाग के अधिकारियों की अध्यक्षता वाली जिला स्तरीय समिति (DLC) द्वारा की जाएगी।
1. दस्तावेजों के सफल सत्यापन के पश्चात्, जिला स्तरीय अधिकारियों ने आवेदकों को निष्ठा की शपथ दिलाई।

Source: TH