पाठ्यक्रम :GS 3/अर्थव्यवस्था
समाचार में
- इसरो के एक अध्ययन ने उपग्रह डेटा का उपयोग करके 2024-25 रबी सीजन के लिए भारत के कुल गेहूँ उत्पादन का अनुमान 122.724 मिलियन टन लगाया है, जो आठ प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्यों से प्राप्त हुआ है।
अध्ययन के बारे में
- इस अध्ययन में कॉम्प्रिहेंसिव रिमोट सेंसिंग ऑब्जरवेशन ऑन क्रॉप प्रोग्रेस (CROP) रूपरेखा का उपयोग किया गया है, जो EOS-04, EOS-06, और Resourcesat-2A से ऑप्टिकल और सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) डेटा का प्रयोग कर गेहूँ की बुवाई और फसल की स्थिति की वास्तविक समय में निगरानी करता है।
- CROP एक अर्ध-स्वचालित, स्केलेबल रूपरेखा है जिसे NRSC/ISRO द्वारा विकसित किया गया है, जिससे भारत में रबी सीजन के दौरान फसल की बुवाई और कटाई की वास्तविक समय में निगरानी संभव हो पाती है।
- 31 मार्च 2025 तक गेहूँ की बुवाई का क्षेत्र 330.8 लाख हेक्टेयर था, जो कृषि मंत्रालय के आँकड़ों से मेल खाता है।
कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष तकनीक का महत्त्व एवं आवश्यकता
- भारत का कृषि क्षेत्र आजीविका के लिए महत्त्वपूर्ण है, लेकिन बढ़ती जनसंख्या और घटते प्राकृतिक संसाधनों के कारण इसे दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
- स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अनुकूलित योजना और स्मार्ट संसाधन प्रबंधन आवश्यक हैं।
- उपग्रह इमेजिंग, रिमोट सेंसिंग, GNSS और जियोलोकेशन जैसी अंतरिक्ष-आधारित प्रौद्योगिकियां बड़े, विविध क्षेत्रों की निगरानी के लिए शक्तिशाली उपकरण प्रदान करती हैं।
- यह फसल निगरानी, संसाधन उपयोग और मौसम पूर्वानुमान में सुधार करता है।
- यह किसानों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं के लिए सूचित निर्णय लेने में सहायता करता है।
अनुप्रयोग:
- सटीक कृषि (Precision Agriculture)
- ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) सटीक क्षेत्र मानचित्रण और संसाधन आवंटन में सहायता करता है।
- यह सटीक सिंचाई, पोषक तत्व प्रबंधन, और फसल योजना में सहायता करता है।
- इससे पैदावार बढ़ती है और संसाधनों का कुशल उपयोग होता है।
- बेहतर संपर्क (Improved Connectivity)
- उपग्रह-आधारित नेटवर्क मौसम, बाज़ार मूल्य, और विशेषज्ञ सलाह की वास्तविक समय में पहुँच प्रदान करता है।
- रिमोट सेंसिंग और उपग्रह इमेजिंग (Remote Sensing & Satellite Imaging)
- फसल स्वास्थ्य, वनस्पति और भूमि उपयोग की निगरानी करता है।
- रोगों का प्रारंभिक पता लगाता है, जिससे किए गए कीटनाशक उपयोग को कम किया जा सकता है।
- हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग (Hyperspectral Imaging)
- यह विस्तृत पौधों के स्वास्थ्य का आकलन करता है, जो पारंपरिक स्पेक्ट्रल सेंसर से अधिक प्रभावी होता है।
- जल और मृदा प्रबंधन (Water & Soil Management)
- यह सिंचाई, भूजल संरक्षण, और मृदा नमी ट्रैकिंग में मदद करता है।
- यह मृदा संरक्षण, कटाव को रोकने और भूमि के क्षरण को नियंत्रित करने में सहायक है।
संबंधित कदम:
- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय 1980 के दशक से कृषि योजना और उत्पादकता में सुधार के लिए अंतरिक्ष तकनीक का सक्रिय रूप से उपयोग कर रहा है।
- 2012 में महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र (MNCFC) की स्थापना की गई, जिससे इसरो की अंतरिक्ष तकनीक को फसल पूर्वानुमान के लिए उपयोग में लाया जा सके।
- मृदा और भूमि उपयोग सर्वेक्षण (SLUSI) उपग्रह डेटा का उपयोग करके मृदा संसाधन मानचित्रण करता है।
- Krishi-DSS एक अनूठा जियोस्पेशियल प्लेटफॉर्म है, जो भारतीय कृषि के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है। यह उपग्रह छवियों, मौसम की जानकारी, जलाशय भंडारण, भूजल स्तर और मृदा स्वास्थ्य डेटा को वास्तविक समय में कहीं से भी एक्सेस करने की सुविधा प्रदान करता है।
निष्कर्ष एवं आगे की राह
- अंतरिक्ष तकनीक कृषि के भविष्य के लिए अपार संभावनाएँ रखती है।
- उपग्रह इमेजिंग और डेटा की शक्ति को अपनाने से कृषि क्षेत्र में उत्पादकता, स्थिरता और आर्थिक मूल्य में महत्त्वपूर्ण सुधार आ सकते हैं।
- इन तकनीकों का बढ़ता उपयोग खाद्य सुरक्षा, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
Source :TH
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