भारत की खेल संस्कृति और चुनौतियाँ

पाठ्यक्रम: GS2/शासन

सन्दर्भ

  • केंद्रीय युवा मामले एवं खेल मंत्री ने कहा कि भारत खेल के क्षेत्र में विश्व के शीर्ष दस प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक बनने के लिए तैयार है।

भारत का खेल परिदृश्य

  • कुश्ती, कबड्डी, तीरंदाजी और मार्शल आर्ट के विभिन्न रूप जैसे पारंपरिक खेल केवल शारीरिक गतिविधियाँ ही नहीं थे, बल्कि सांस्कृतिक अनुष्ठान भी थे। 
  • औपनिवेशिक काल के दौरान, अंग्रेजों ने भारत में क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी और टेनिस जैसे आधुनिक खेलों की शुरुआत की।
    • परिणामस्वरूप, इन खेलों के लिए बुनियादी ढाँचा विकसित होना शुरू हुआ। 
  • स्वतंत्रता के बाद, भारत ने खेल बुनियादी ढाँचे में अस्थिर वृद्धि देखी।
    • हालाँकि, विकास की गति अपेक्षाकृत धीमी रही और बुनियादी ढाँचा मुख्य रूप से कुछ महानगरीय क्षेत्रों तक ही सीमित था। 
  • 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में भारत ने प्रतिभाओं को पोषित करने में खेल बुनियादी ढाँचे के महत्व को पहचानना शुरू किया।
  •  भारत ने 1982 में एशियाई खेलों और 1987 में क्रिकेट विश्व कप जैसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय आयोजनों की मेजबानी की, जिसके लिए विश्व स्तरीय खेल बुनियादी ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता थी। 
  • समय के साथ, प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ, खेल बुनियादी ढाँचे के प्रति दृष्टिकोण में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ।

अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में भारत का प्रदर्शन

  • पेरिस ओलंपिक में भारत ने छह पदक जीते – एक रजत और पांच कांस्य – और पदक तालिका में 71वें स्थान पर रहा।
    • यह जॉर्जिया, कजाकिस्तान और उत्तर कोरिया जैसे बहुत कम जनसँख्या वाले देशों से नीचे रैंक दर्ज किया गया।
    • भारत की जन्स्नाख्या के एक चौथाई से भी कम की जनसंख्या वाला संयुक्त राज्य अमेरिका 126 पदकों के साथ चार्ट में सबसे ऊपर है, उसके बाद चीन 91 पदकों के साथ दूसरे स्थान पर है।
  • भारत ने 1900 में अपने पदार्पण के बाद से अब तक कुल 41 ओलंपिक पदक जीते हैं, जो सभी ग्रीष्मकालीन खेलों में जीते हैं।
  • देश के प्रदर्शन ने खेल संस्कृति की आवश्यकता के बारे में कई प्रश्न खड़े किए।

भारतीय एथलीटों की सफलता में कमी के कारण

  • बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी: हालांकि सुधार किए गए हैं, लेकिन कई क्षेत्रों में अभी भी गुणवत्तापूर्ण खेल बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी है, लेकिन आधुनिक प्रशिक्षण उपकरण और कोचिंग तक पहुँच बेहतरीन एथलीटों को विकसित करने के लिए आवश्यक है।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण: कई एथलीट पर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे उनके प्रशिक्षण के अवसर और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भागीदारी सीमित हो जाती है।
  • लोकप्रिय खेलों पर ध्यान: क्रिकेट पर अत्यधिक ध्यान प्रायः अन्य खेलों पर प्रभुत्वशाली हो जाता है, जिससे एथलेटिक्स, तैराकी और अन्य जैसे विषयों के लिए संसाधनों और ध्यान की कमी हो जाती है।
  • बुनियादी स्तर पर विकास की कमी: एक मजबूत बुनियादी स्तर की खेल संस्कृति की आवश्यकता है जो कम उम्र से ही प्रतिभा की पहचान करे और उसका पोषण करे।
  • प्रतियोगिता का स्तर: भारतीय एथलीटों को प्रायः अधिक स्थापित खेल संस्कृति और बेहतर वित्तपोषण वाले देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, जिससे पोडियम फिनिश प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

सरकार द्वारा की गई पहल

  • खेलो इंडिया: बुनियादी स्तर पर खेलों को बढ़ावा देना। इसमें प्रतिभाओं की पहचान, कोचिंग, खेल अवसंरचना विकास और स्कूल तथा विश्वविद्यालय स्तर पर प्रतियोगिताओं का आयोजन शामिल है।
  • राष्ट्रीय खेल नीति: खेल प्रशिक्षण की गुणवत्ता को बढ़ाना, भागीदारी को बढ़ावा देना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने वाले एथलीटों की संख्या में वृद्धि करना।
  • भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI): युवा प्रतिभाओं को बढ़ावा देने और प्रशिक्षण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए जिम्मेदार एक प्रमुख संस्था।
  • राष्ट्रीय खेल पुरस्कार: खेलों में उत्कृष्टता को मान्यता देने और पुरस्कृत करने के लिए ये पुरस्कार प्रतिवर्ष दिए जाते हैं।
  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय कल्याण कोष (PDUNWFS): इसे 1982 में अतीत के उत्कृष्ट खिलाड़ियों की सहायता के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
  • राष्ट्रीय खेल विकास कोष: यह कोष खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रशिक्षकों के अधीन प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करके उन्हें उत्कृष्टता प्राप्त करने में सहायता करता है।
    • यह खेलों को बढ़ावा देने के लिए अवसंरचना के विकास और अन्य गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है।
  • लक्ष्य ओलंपिक पोडियम योजना (TOPS): ओलंपिक खेलों में पदक जीतने की क्षमता वाले एथलीटों की पहचान करना और उनका समर्थन करना।
    • यह प्रशिक्षण, कोचिंग और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भागीदारी के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • मिशन ओलंपिक सेल (MOC): युवा मामले और खेल मंत्रालय के अंतर्गत एक निकाय जो टॉप्स के तहत ओलंपिक के लिए एथलीटों के प्रशिक्षण और तैयारी की निगरानी करता है तथा सहायता प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय खेल महासंघ (NSFs): सरकार NSFs को मान्यता देती है और उन्हें वित्तपोषित करती है, जो अपने-अपने खेलों को बढ़ावा देने और विकसित करने के लिए उत्तरदायी हैं।

संभावित उपाय

  • वित्तपोषण: खेल सुविधाओं में निवेश बढ़ाएँ, विशेषकर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में।
  • प्रतिभा की पहचान: कम उम्र से ही प्रतिभा की पहचान करने और उसे निखारने के लिए स्कूलों में खेल कार्यक्रम लागू करें।
  • अन्य खेलों को प्रोत्साहन: क्रिकेट के अतिरिक्त एथलेटिक्स, तैराकी और स्वदेशी खेलों जैसे खेलों की एक विस्तृत विविधता को बढ़ावा दें।
  • लीग और प्रतियोगिताएँ: भागीदारी और दर्शकों की संख्या बढ़ाने के लिए कम प्रसिद्ध खेलों में पेशेवर लीग और प्रतियोगिताएँ स्थापित करें।
  • कॉर्पोरेट प्रायोजन: वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए निजी कंपनियों और खेल संगठनों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करें।
  • रोल मॉडल: युवाओं को खेलों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करने के लिए सफल एथलीटों को उजागर करें।

निष्कर्ष

  • अपने प्रदर्शन के बारे में आलोचनात्मक होना अच्छा है क्योंकि इससे एथलीटों में खेल का लगाव बढ़ता है और प्रशासकों को भी बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करता है।
  •  हाल के वर्षों में, खेल के बुनियादी ढांचे के प्रति भारत के दृष्टिकोण में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है। 
  • सरकार, निजी संस्थाओं और विभिन्न खेल निकायों द्वारा किए गए ठोस प्रयास देश के खेल पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। 
  • यह विकास भारत की खेलों में एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में उभरने की आकांक्षा को दर्शाता है और देश के खेल इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण को चिह्नित करता है।

Source: PIB