कौशल और रोजगार को बढ़ावा देने में शहरीकरण की भूमिका

पाठ्यक्रम: GS2/ शासन, GS3/अर्थव्यवस्था

सन्दर्भ

  • शहरीकरण कौशल विकास और रोजगार सृजन के अवसर प्रस्तुत करता है, विशेष रूप से भारत जैसे तेजी से शहरीकृत होते देश में।

भारत में शहरीकरण की स्थिति

  • भारत में तेजी से शहरीकरण हो रहा है। प्रत्येक मिनट, 30 लोग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पलायन कर रहे हैं। 
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की शहरी जनसँख्या 2001 में 27.7% से बढ़कर 2011 में 31.1% हो गई, जो कि प्रति वर्ष 2.76% की दर से है। 
  • भारत में तेजी से शहरीकरण हो रहा है और अनुमान है कि 2050 तक इसकी 50 प्रतिशत जनसँख्या शहरों में होगी। 
  • 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 6 बड़े शहर (10 मिलियन से अधिक जनसँख्या) हैं: दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद।

शहरीकरण के अवसर

  • विविध रोजगार विकल्प: शहरी क्षेत्रों में विनिर्माण, आईटी, खुदरा और सेवाओं सहित विभिन्न उद्योग हैं, जो कौशल स्तरों में रोजगार का सृजन करते हैं।
  • कौशल संवर्धन पारिस्थितिकी तंत्र: शहरी केंद्र शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों के लिए केंद्र के रूप में कार्य करते हैं, कौशल विकास कार्यक्रमों तक पहुँच को बढ़ावा देते हैं।
  • उद्यमिता के लिए समर्थन: शहर बुनियादी ढाँचा, वित्तीय सेवाएँ और बाज़ार पहुँच प्रदान करते हैं जो उद्यमशीलता के उपक्रमों को बढ़ावा देते हैं।
  • प्रौद्योगिकी-संचालित विकास: तेजी से तकनीकी प्रगति के साथ, शहरी केंद्र डिजिटल कौशल के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो IT, AI, और ई-कॉमर्स क्षेत्रों में रोजगार सृजन को बढ़ावा देते हैं।

चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अनियोजित शहरीकरण: पर्याप्त नियोजन की कमी के कारण अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और झुग्गी-झोपड़ियाँ बढ़ती हैं।
    • 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 24% शहरी परिवार झुग्गियों में रहते हैं, जो आवास और शहरी बुनियादी ढाँचे में चुनौतियों को दर्शाता है।
  • कौशलों का बेमेल होना: शहरों की ओर पलायन करने वाले कई श्रमिकों में शहरी रोजगारों के लिए आवश्यक तकनीकी या सॉफ्ट स्किल्स की कमी होती है, जिसके परिणामस्वरूप कम रोजगार होता है।
  • संसाधनों पर दबाव: शहरों में भीड़भाड़ के कारण आवास, स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक उपयोगिताओं पर दबाव पड़ता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता एवं श्रमिक उत्पादकता प्रभावित होती है।
  • NFHS-5, 2019-21 के अनुसार, शहरी जनसँख्या के 40% से अधिक लोगों के पास पर्याप्त स्वच्छता सुविधाएँ नहीं हैं।
  • अनौपचारिक नौकरियों में भेद्यता: अनौपचारिक क्षेत्रों में कार्य करने वालों को कम वेतन, रोजगार की असुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा लाभों की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • लैंगिक असमानताएँ: सुरक्षा चिंताओं, सीमित गतिशीलता और सामाजिक मानदंडों के कारण महिलाओं को कौशल विकास और रोजगार में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • पर्यावरणीय तनाव: TERI की एक रिपोर्ट के अनुसार, शहरी केंद्र भारत के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 75% का योगदान करते हैं।

सरकारी पहल

  • कौशल भारत मिशन: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से कुशल कार्यबल बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। 
  • स्मार्ट सिटीज मिशन: कुशल बुनियादी ढांचे और शासन के साथ 100 स्मार्ट शहरों को विकसित करने का लक्ष्य। 
  • AMRUT(अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन): आर्थिक गतिविधियों और बेहतर जीवन स्तर का समर्थन करने के लिए शहरी बुनियादी ढांचे में सुधार। 
  • स्टार्टअप इंडिया पहल: वित्तीय और विनियामक सहायता प्रदान करके नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा देना। 
  • DAY-NULM(दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन): शहरी गरीबों के रोजगार और कौशल स्तर को बढ़ाना।
  •  डिजिटल इंडिया कार्यक्रम: प्रौद्योगिकी-संचालित रोजगार का समर्थन करने के लिए डिजिटल साक्षरता और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देना।

सुझाव

  • एकीकृत शहरी नियोजन: किफायती आवास, सार्वजनिक परिवहन और प्रशिक्षण संस्थानों तक पहुँच पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुनियोजित शहरी केंद्र विकसित करें।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: कौशल विकास और रोजगार सृजन पहलों में निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता का लाभ उठाएँ।
  • भविष्य के लिए तैयार कौशल: उभरते उद्योगों और प्रौद्योगिकियों के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए डिजिटल, हरित और सॉफ्ट कौशल पर बल दें।
  • अनौपचारिक क्षेत्र के लिए समर्थन: अनौपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों की कार्य स्थितियों को औपचारिक बनाने और बेहतर बनाने के लिए नीतियाँ प्रस्तुत करें।
  • महिलाओं को सशक्त बनाना: सुरक्षित और समावेशी कार्यस्थलों और केंद्रित प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से शहरी रोजगार बाजारों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करें।

निष्कर्ष

  • यदि शहरीकरण को रणनीतिक ढंग से प्रबंधित किया जाए तो यह कौशल और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने में उत्प्रेरक का कार्य कर सकता है, जिससे भारत में सतत आर्थिक वृद्धि और समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

Source: IE