उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था एवं विकास

समाचार में

  • सरकार ने PLI योजना को वर्तमान 14 क्षेत्रों से आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय लिया है।
    • कुछ क्षेत्रों में प्रारंभिक सफलता के बावजूद, योजना ने अन्य क्षेत्रों में खराब प्रदर्शन किया तथा प्रोत्साहन भुगतान में भी देरी हुई।

समाचार के बारे में अधिक जानकारी

  • आवंटित 23 बिलियन डॉलर में से, अक्टूबर 2024 तक केवल 1.73 बिलियन डॉलर (8%) वितरित किए गए हैं। 
  • इस योजना के अंतर्गत 151.93 बिलियन डॉलर मूल्य की वस्तुओं का उत्पादन किया गया है – जो मूल लक्ष्य का केवल 37% है। 
  • फॉक्सकॉन, रिलायंस और अडानी जैसी कम्पनियों को देरी, लक्ष्य पूरा न होने या गैर-अनुपालन का सामना करना पड़ा।
  • इसलिए, सरकार ने उत्पादन की समय-सीमा बढ़ाने या योजना में नए क्षेत्रों को जोड़ने के अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया है।

PLI योजना के बारे में

  • लॉन्च: 2020 में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत ₹1.97 लाख करोड़ के परिव्यय के साथ।
  • सम्मिलित क्षेत्र: इसमें 14 क्षेत्र शामिल हैं (मोबाइल, फार्मा, ऑटो, एसीसी बैटरी, दूरसंचार, व्हाइट गुड्स, सौर, आदि)। 
  • उद्देश्य: यह मेक इन इंडिया पहल के हिस्से के रूप में पाँच वर्षों के लिए वृद्धिशील बिक्री पर पात्र फर्मों को प्रोत्साहन प्रदान करता है।
    • इसका उद्देश्य चीन जैसे विदेशी देशों पर भारत की निर्भरता को कम करना और श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोजगार बढ़ाना है।
    • 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ाकर 25% करना। 
  • प्रोत्साहन तंत्र: आधार वर्ष की तुलना में वृद्धिशील बिक्री पर 4-6%।
    • यह नियम भारत में पंजीकृत घरेलू और विदेशी दोनों कंपनियों पर लागू है।

PLI योजना के लाभ

  • इलेक्ट्रॉनिक्स सफलता: भारत ने वित्त वर्ष 2023-24 में 49 बिलियन डॉलर मूल्य के मोबाइल का उत्पादन किया; एप्पल अब भारत में उच्च-स्तरीय मॉडल बनाती है।
PLI योजना के लाभ
  • फार्मास्युटिकल विकास: एक दशक पहले की तुलना में निर्यात लगभग दोगुना होकर 27.85 बिलियन डॉलर हो गया।
  • FDI प्रवाह को बढ़ावा दिया, प्रमुख उद्योगों के विकास में मदद की और भारत की ‘चीन प्लस वन’ रणनीति का समर्थन किया।
  • रणनीतिक क्षेत्रों (जैसे, अर्धचालक, सौर मॉड्यूल) में उत्पादन को प्रोत्साहित किया गया।

मुद्दे और चिंताएँ

  • कम संवितरण: लक्ष्य पूरा होने के बावजूद केवल 8% प्रोत्साहन वितरित किए गए।
  • सब्सिडी में विलंब: सब्सिडी समय पर जारी नहीं की जाती, जिससे नकदी प्रवाह प्रभावित होता है।
  • लक्ष्य पूरा न होना: कई कम्पनियाँ उत्पादन प्रारंभ करने या बढ़ाने में असफल रहीं।
  • लालफीताशाही: नौकरशाही बाधाएँ और कठोर अनुपालन शर्तें।
  • GDP में कोई वृद्धि नहीं: विनिर्माण हिस्सेदारी 15.4% से घटकर 14.3% (2020-2024) हो गई।

Source: TH