फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय

पाठ्यक्रम: GS2/ राजव्यवस्था, न्यायपालिका

संदर्भ

  • 96.28% की निपटान दर के साथ, फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों (FTSCs) ने बलात्कार और  POCSO अधिनियम के अंतर्गत अपराधों के मामलों में तेजी से कानूनी कार्यवाही सुनिश्चित करके यौन अपराधों के पीड़ितों के लिए न्याय में उल्लेखनीय तेजी लाई है।
    • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 एक लिंग-तटस्थ कानून है जिसका उद्देश्य बच्चों को यौन अपराधों से बचाना है।

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (FTSCs) क्या हैं?

  • ये भारत में स्थापित समर्पित न्यायालय हैं जो समयबद्ध न्याय प्रदान करके बलात्कार और बाल यौन शोषण जैसे जघन्य अपराधों से जुड़े मामलों की लंबितता को कम करते हैं।
  • स्थापना: 2019 में विधि एवं न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग द्वारा एक केन्द्र प्रायोजित योजना के रूप में प्रारंभ की गई, जिसका वित्तपोषण केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच साझा किया जाता है।
    • विधानमंडल वाले अधिकांश राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के लिए अनुपात 60:40 (केन्द्र:राज्य)।
    • पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 90:10।
  • लक्ष्य: इस योजना के तहत, विशेष POCSO (e-POCSO) अदालतों सहित कुल 790 FTSCs स्थापित किए जाने हैं।
    • प्रत्येक FTSC से अपेक्षा की जाती है कि वह प्रति तिमाही 41-42 मामलों का तथा प्रतिवर्ष कम से कम 165 मामलों का निपटारा करे, ताकि समय पर न्याय सुनिश्चित हो सके तथा लंबित मामलों में कमी आए।

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों (FTSCs) की आवश्यकता

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 में दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और पोक्सो अधिनियम, 2012 दोनों के अनुसार POCSO मामलों के शीघ्र निपटान के लिए निर्देश जारी किए, जिसमें जांच और परीक्षण के लिए सख्त समयसीमा निर्धारित की गई है।
  • अपर्याप्त न्यायिक संसाधनों के कारण मुकदमे लंबे समय तक चलते हैं। विलंबित न्याय से पीड़ितों को लाभ नहीं मिल पाता और कानून का निवारक प्रभाव कमजोर हो जाता है।
  • न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाकर, FTSCs यह स्पष्ट संदेश देने में मदद करती है कि समाज इन अपराधों को बर्दाश्त नहीं करेगा।

भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (IIPA) की प्रमुख सिफारिशें

  • योजना का जारी रहना: FTSC को जारी रहना चाहिए, क्योंकि यौन हिंसा के मामलों में सुव्यवस्थित और त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है।
  • न्यायिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करना: राज्यों और उच्च न्यायालयों को POCSO मामलों को संभालने में अनुभवी विशेष न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी चाहिए। न्यायिक अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए संवेदीकरण प्रशिक्षण सुनिश्चित करें।
  • न्यायालय कक्षों का तकनीकी उन्नयन: न्यायालय कक्षों को ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग प्रणाली, मामलों की ई-फाइलिंग और न्यायालय रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण से सुसज्जित करना।
  • फोरेंसिक सहायता को मजबूत करना: फोरेंसिक प्रयोगशालाओं की संख्या में वृद्धि करना और आवश्यक कौशल के साथ जनशक्ति को प्रशिक्षित करना।
    • DNA रिपोर्ट समय पर प्रस्तुत करना सुनिश्चित करें, जिससे मुकदमों में तेजी आए और निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित हो।
  • कमजोर गवाह बयान केन्द्रों (VWDCs) की स्थापना: गवाहियों की संवेदनशील और बाल-अनुकूल रिकॉर्डिंग को सक्षम करने के लिए प्रत्येक जिले में VWDCs की स्थापना की जाएगी।
    • पीड़ितों को परीक्षण-पूर्व और परीक्षण प्रक्रियाओं में सहायता प्रदान करने के लिए प्रत्येक FTSC में एक बाल मनोवैज्ञानिक की नियुक्ति करें।

Source: PIB