आत्मनिर्भरता के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) खाद्य तेल

पाठ्यक्रम: GS3/कृषि

संदर्भ

  • हाल ही में नीति आयोग के एक सदस्य ने अमेरिका और चीन में देखी गई महत्त्वपूर्ण उपज वृद्धि का हवाला देते हुए, आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए भारत को GM खाद्य तेलों को अपनाने का समर्थन किया है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में खाद्य तेलों का महत्त्व

  • भारत विश्व के सबसे बड़े तिलहन उत्पादकों में से एक है, जिससे तिलहन और खाद्य तेल देश में सबसे ज़रूरी कृषि वस्तुओं में से एक बन गए हैं।
  • भारत कई तरह के खाद्य तेलों का उत्पादन करता है जैसे सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, कुसुम और नारियल तेल आदि।
    • यह विश्व के तिलहन उत्पादन में लगभग 5-6% का योगदान देता है। 
  • उत्पादन राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में केंद्रित है।
  •  कुल खपत लगभग 25.5 मिलियन टन रही, जिससे घाटे की भरपाई आयात के ज़रिए की जाती है।
  • इसमें शामिल हैं:
    • पाम ऑयल: 37% (लगभग) 
    • सोयाबीन: 20% (लगभग) 
    • सरसों: 14% (लगभग) 
    • सूरजमुखी: 13% (लगभग)
क्या आप जानते हैं?
– भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत के हिसाब से लगभग 24 किलोग्राम खाद्य तेल की खपत होती है, जो भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (ICMR) द्वारा अनुशंसित 12 किलोग्राम और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित 13 किलोग्राम की सीमा से काफी अधिक है। 
– यह 1950-60 के 2.9 किलोग्राम से काफी वृद्धि दर्शाता है, जो बढ़ती आय, शहरीकरण और बदलती आहार आदतों जैसे कारकों से प्रेरित है।

आयात पर निर्भरता

  • वर्तमान में, भारत अपनी खाद्य तेल आवश्यकताओं का 55-60% इंडोनेशिया, मलेशिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, रूस और यूक्रेन सहित देशों से आयात करता है।
  • 2023-24 के तेल विपणन वर्ष में, भारत का खाद्य तेल आयात लगभग 15.96 मिलियन टन तक पहुँच गया।
    • पाम तेल: सबसे बड़ा हिस्सा, इंडोनेशिया और मलेशिया से
    • सोयाबीन तेल: अर्जेंटीना और ब्राजील से
    • सूरजमुखी तेल: मुख्य रूप से यूक्रेन और रूस से

सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन – ऑयल पाम : इसका लक्ष्य 2025-26 तक ऑयल पाम की खेती को 3.7 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 10 लाख हेक्टेयर करना है।
    • यह किसानों को रोपण सामग्री, सिंचाई और इनपुट के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 
  • राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन – तिलहन: भारत का लक्ष्य 2030-31 तक घरेलू तिलहन उत्पादन को मौजूदा 39 मिलियन टन से बढ़ाकर 70 मिलियन टन करना है। 
  • मूल्य स्थिरीकरण कोष: इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं पर अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के प्रभाव को कम करना है।
    • यह राज्य एजेंसियों को नियंत्रित कीमतों पर खाद्य तेलों की खरीद और वितरण में सहायता करता है। 
  • आयात शुल्क समायोजन: खुदरा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए सरकार प्रायः खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में बदलाव करती है।
  •  तिलहन खेती को बढ़ावा: NFSM-तिलहन जैसे कार्यक्रम किसानों को बीज, तकनीकी सहायता और विस्तार सेवाएँ प्रदान करते हैं। 
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली  सहायता: खाद्य तेलों की आपूर्ति पीडीएस के माध्यम से रियायती दरों पर की जाती है, विशेषकर उच्च मुद्रास्फीति की अवधि के दौरान।

भारत में GM खाद्य तेलों का मामला

  • उत्पादकता बढ़ाना: भारत की सोयाबीन की पैदावार दशकों से स्थिर बनी हुई है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन जैसे देशों ने GM तकनीक को अपनाकर अपनी पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
    • अनुमान है कि GM फसलें पैदावार को दोगुना या 70-80% तक बढ़ा सकती हैं, जिससे भारत वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाएगा। 
  • आयात निर्भरता कम करना: भारत वार्षिक लगभग 16 मिलियन टन खाद्य तेलों का आयात करता है, जो इसकी अर्थव्यवस्था पर एक महत्त्वपूर्ण भार है।
    • GM खाद्य तेलों को अपनाकर, भारत आयात पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है और खाद्य सुरक्षा बढ़ा सकता है। 
  • वैश्विक दृष्टिकोण: अमेरिका और चीन जैसे देशों ने प्रतिकूल प्रभावों की रिपोर्ट किए बिना GM तकनीक को सफलतापूर्वक लागू किया है, जो भारत के लिए अनुसरण करने के लिए एक मिसाल कायम करता है।

Source: ET