क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की कार्यनिष्पादन समीक्षा(RRBs)

पाठ्यक्रम: सामान्य अध्ययन पेपर-3/ अर्थव्यवस्था

सन्दर्भ

  • केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री ने पांच राज्यों के नौ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) के प्रदर्शन की समीक्षा के लिए एक बैठक की अध्यक्षता की।

परिचय

  • समीक्षा बैठक में व्यवसाय प्रदर्शन, डिजिटल प्रौद्योगिकी सेवाओं को उन्नत करने, MSME समूहों में व्यवसाय वृद्धि को प्रोत्साहन देने और ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को गहरा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  •  RRBs से सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने का आग्रह किया गया, विशेषकर आकांक्षी जिलों में।

RRBs की उपलब्धियां

  • RRBs का समेकित पूंजी से जोखिम (भारित) परिसंपत्ति अनुपात (CRAR) वित्त वर्ष 2021 में 7.8% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 13.7% हो गया है। 
  • लाभप्रदता वित्त वर्ष 2021 में 41 करोड़ रुपये के घाटे से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 2,018 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ में परिवर्तित हो गए हैं। सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (GNPA) 3.9% के अनुपात के साथ अपेक्षाकृत कम हैं।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs)

  • कृषि और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पर्याप्त बैंकिंग और ऋण सुविधाएं प्रदान करने के लिए 26 सितंबर 1975 को पारित अध्यादेश और RRB अधिनियम 1987 के प्रावधानों के तहत RRB की स्थापना की गई थी।
  • कृषि और अन्य ग्रामीण समुदायों की ग्रामीण ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नरसिम्हम समिति की सिफारिशों के अनुसार आरआरबी की RRB की गई थी। प्रथम ग्रामीण बैंक 2 अक्टूबर 1975 को स्थापित होने वाला पहला बैंक था।
    • सिंडिकेट बैंक प्रथम ग्रामीण बैंक RRB को प्रायोजित करने वाला पहला वाणिज्यिक बैंक बन गया।

RRBs का संचालन

  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB) भारतीय अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (सरकारी बैंक) हैं जो भारत के विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय स्तर पर कार्यरत हैं।
    • इन्हें मुख्य रूप से भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया है।
  • RRBs निम्नलिखित शीर्षकों में विभिन्न कार्य करते हैं:
    • ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाएँ प्रदान करना।
    • मनरेगा श्रमिकों के वेतन का वितरण, पेंशन का वितरण आदि जैसे सरकारी कार्यों को पूरा करना।
    • पैरा-बैंकिंग सुविधाएँ जैसे लॉकर सुविधाएँ, डेबिट और क्रेडिट कार्ड, मोबाइल बैंकिंग, इंटरनेट बैंकिंग, यूपीआई आदि प्रदान करना।

RRBs का स्वामित्व

  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की इक्विटी एक निश्चित अनुपात में हितधारकों के पास होती है। 
  • यह अनुपात 50:35:15 है, जो इस प्रकार वितरित किया जाता है:
    • केंद्र सरकार – 50%
    • प्रायोजक बैंक – 35%
    • राज्य सरकार – 15%

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) से संबंधित मुद्दे

  • उच्च गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs): RRBs को विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में NPAs का उच्च स्तर का सामना करना पड़ता है। यह फसल विफलताओं, प्राकृतिक आपदाओं और ग्रामीण उधारकर्ताओं की भेद्यता जैसे कारकों के कारण है। 
  • सीमित पूंजी आधार: RRBs प्रायः सीमित पूंजी आधार के साथ कार्य करते हैं, जिससे उनका विस्तार करने, प्रौद्योगिकी में निवेश करने और नियामक पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। 
  • परिचालन अक्षमताएँ: RRBs को प्रायः अप्रचलित बुनियादी ढाँचे, कुशल कर्मचारियों की कमी और नौकरशाही प्रक्रियाओं के कारण परिचालन अक्षमताओं का सामना करना पड़ता है।
  •  नियामक बाधाएँ: RRBs विभिन्न नियामक बाधाओं के अधीन हैं, जिनमें सख्त उधार मानदंड और पूंजी पर्याप्तता आवश्यकताएँ शामिल हैं, जिन्हें उनके सीमित संसाधनों को देखते हुए पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  •  जुटाव का मुद्दा: अमीर ग्रामीण जनसँख्या का व्यावहारिक बहिष्कार जमा जुटाने को प्रतिबंधित करता है।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का महत्व (RRBs) 

  • वित्तीय समावेशन:  जहाँ वाणिज्यिक बैंकों की सीमित उपस्थिति है, उन ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं का विस्तार करने में RRBs महत्वपूर्ण हैं। वे बैंकिंग सेवाओं से वंचित आबादी को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने में सहायता करते हैं।
  • कृषि और संबद्ध क्षेत्रों को सहायता: RRBs का मुख्य ध्यान फसल उत्पादन, कृषि उपकरणों की खरीद और अन्य संबंधित गतिविधियों सहित कृषि गतिविधियों के लिए ऋण प्रदान करना है।
  • ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देना: RRBs ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs), स्वयं सहायता समूहों (SHGs) और व्यक्तिगत उद्यमियों को ऋण तथा वित्तीय सेवाएँ प्रदान करके ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • गरीबी उन्मूलन: लक्षित ऋण कार्यक्रमों और सरकारी योजनाओं के माध्यम से, RRBs समाज के सबसे गरीब वर्गों को माइक्रोफाइनेंस और लघु ऋण प्रदान करके गरीबी उन्मूलन प्रयासों में योगदान करते हैं।
  • सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन: RRBs विभिन्न सरकारी प्रायोजित योजनाओं और कार्यक्रमों जैसे  PMJDY, PMJAY आदि के कार्यान्वयन में सहायक होते हैं। 
  • ग्रामीण ऋण बाजारों का स्थिरीकरण: RRBs ऋण के सुसंगत और विनियमित स्रोत प्रदान करके ग्रामीण ऋण बाजारों को स्थिर करने में सहायता करते हैं, जिससे अनौपचारिक साहूकारों पर निर्भरता कम होती है जो प्रायः अत्यधिक ब्याज दर प्राप्त करते हैं।

आगे की राह

  • कार्यकुशलता में सुधार के लिए संरचनात्मक समेकन: संरचनात्मक समेकन में लघु या कमज़ोर RRBs का विलय करके बड़ी, मज़बूत इकाइयाँ बनाना सम्मिलित है। 
  • पूंजी वृद्धि के लिए RRBs का पुनर्पूंजीकरण: पुनर्पूंजीकरण में RRBs में अतिरिक्त पूंजी लगाना सम्मिलित है ताकि उनका वित्तीय आधार दृढ हो सके।
  •  मानव संसाधनों की आवधिक समीक्षा और क्षमता निर्माण: सेवा के उच्च मानक को बनाए रखने के लिए RRBs में कार्यबल के प्रदर्शन और कौशल की नियमित समीक्षा करना आवश्यक है। क्षमता निर्माण में RRBs कर्मचारियों के कौशल तथा ज्ञान को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण एवं विकास कार्यक्रम शामिल हैं।

Source: BS