परिचर्चा: दक्षिणी राज्य चिंतित क्यों हैं?

पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था एवं शासन

सन्दर्भ

  • केंद्रीय गृह मंत्री ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री द्वारा उठाई गई चिंताओं के जवाब में आश्वासन दिया है कि प्रस्तावित परिसीमन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप दक्षिणी राज्यों में संसदीय क्षेत्र की संख्या कम नहीं की जाएगी।

परिसीमन के बारे में

  • परिसीमन जनसंख्या में परिवर्तन को दर्शाने के लिए संसदीय और विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को पुनः निर्धारित करने की प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य है:
    • जनसांख्यिकीय बदलावों के आधार पर निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
    • विभिन्न राज्यों को आवंटित सीटों की संख्या को समायोजित करना।
  • अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण निर्धारित करना।
  • इस प्रणाली को जनसंख्या वृद्धि को राजनीतिक प्रतिनिधित्व के साथ संतुलित करने और “एक नागरिक, एक वोट, एक मूल्य” के लोकतांत्रिक सिद्धांत को बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 82: प्रत्येक जनगणना के बाद, संसद निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को फिर से परिभाषित करने के लिए परिसीमन अधिनियम पारित करती है।
    • अनुच्छेद 170: प्रत्येक जनगणना के बाद राज्य विधानसभाओं में सीटों की कुल संख्या परिसीमन अधिनियम के अनुसार समायोजित की जाती है।

परिसीमन कौन करता है?

  • परिसीमन आयोग संसदीय अधिनियम के माध्यम से स्थापित एक स्वतंत्र निकाय है, जो इस प्रक्रिया की देखरेख के लिए जिम्मेदार है। प्राधिकरण और उसके निर्णयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। भारत का चुनाव आयोग (ECI) इस अभ्यास के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करता है। हालाँकि, उच्चतम न्यायालय ने 2024 में निर्णय सुनाया है कि अगर संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन होता है तो परिसीमन आदेशों की समीक्षा की जा सकती है।
  • संरचना: 
    • अध्यक्ष: उच्च्च्तम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
    • सदस्य: मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) या CEC द्वारा नियुक्त आयुक्त।
      • संबंधित राज्यों के राज्य चुनाव आयुक्त

भारत में परिसीमन का इतिहास

  • संसदीय अधिकार: परिसीमन (निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का निर्धारण) की शक्ति संसद में निहित है।
  • इस शक्ति का प्रयोग 1952, 1962, 1972 और 2002 के परिसीमन आयोग अधिनियमों के माध्यम से चार बार किया गया है।
  • 42वाँ संशोधन अधिनियम (1976): राज्यों को लोकसभा सीटों के आवंटन और 1971 की जनगणना के आधार पर प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के विभाजन को रोक देता है।
    • इस रोक का उद्देश्य उन राज्यों को संसद में अपना प्रतिनिधित्व समाप्त होने से बचाना था जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण उपायों को सफलतापूर्वक लागू किया था।
  • 84वाँ संशोधन अधिनियम (2001): 1991 की जनगणना के आधार पर प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्समायोजन और युक्तिकरण की अनुमति दी।
    • हालाँकि, इसने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में प्रत्येक राज्य को आवंटित सीटों की संख्या में वृद्धि या कमी की अनुमति नहीं दी।
    • मुख्य उद्देश्य सीटों की कुल संख्या को प्रभावित किए बिना जनसंख्या प्रतिनिधित्व में एकरूपता बनाए रखना था।
  • 87वाँ संशोधन अधिनियम (2003): 1991 की जनगणना से 2001 की जनगणना तक परिसीमन के आधार को बदल दिया गया।
    • 84वें संशोधन की तरह, इसने संसद और राज्य विधानसभाओं में प्रत्येक राज्य को आवंटित सीटों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। 
    • इसका मुख्य उद्देश्य हाल ही के जनसंख्या डेटा के आधार पर अधिक निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना था।

परिसीमन पर पुनर्विचार क्यों किया जा रहा है?

  • अगला परिसीमन कार्य 2021 की जनगणना (महामारी के कारण विलंबित) के आधार पर होने की संभावना है। इसने दक्षिण भारतीय राज्यों में चिंता उत्पन्न कर दी है, क्योंकि उनकी जनसंख्या वृद्धि उत्तर भारतीय राज्यों की तुलना में कम रही है। 
  • यदि परिसीमन ऐतिहासिक पैटर्न (1951, 1961, 1971 और 2002) का अनुसरण करता है, तो प्रति निर्वाचन क्षेत्र 20 लाख लोगों की जनसंख्या अनुपात के आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या 543 से बढ़कर 753 हो सकती है।

दक्षिणी राज्य परिसीमन को लेकर चिंतित क्यों हैं?

  • उत्तरी राज्यों (उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आदि) में जनसंख्या वृद्धि अधिक रही है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें दक्षिण की कीमत पर अधिक सीटें मिल सकती हैं।
  • दक्षिणी राज्यों (तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) को बेहतर शासन और जनसंख्या नियंत्रण उपायों के बावजूद प्रतिनिधित्व में कमी का भय है।

आगे की राह?

  • कुल सीटों में संभावित वृद्धि: किसी भी राज्य से सीटें कम करने के बजाय, बढ़ती जनसंख्या असमानताओं को समायोजित करने के लिए लोकसभा सीटों की कुल संख्या बढ़ाई जा सकती है।
  •  2026 की समीक्षा: अगला परिसीमन 2026 के बाद प्रथम जनगणना के बाद ही हो सकता है, जो संभवतः 2031 की जनगणना होगी। 
  • महिला आरक्षण अधिनियम: 33% महिला आरक्षण के कार्यान्वयन से भी सीट समायोजन प्रभावित हो सकता है।

Source: IE

 

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