भारत की ‘लुक ईस्ट’ नीति ‘एक्ट ईस्ट’ में परिवर्तित

पाठ्यक्रम: GS2/ अंतर्राष्ट्रीय संबंध

समाचार में

  • हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भारत की “लुक ईस्ट” नीति को “एक्ट ईस्ट” में परिवर्तित करने पर प्रकाश डाला।

ऐतिहासिक संदर्भ और विकास

  • लुक ईस्ट पॉलिसी (शीत युद्ध के बाद का युग): 1992 में प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव द्वारा प्रारंभ की गई लुक ईस्ट पॉलिसी का उद्देश्य गहरे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों के बावजूद दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रति भारत की ऐतिहासिक उपेक्षा को सुधारना था।
  • प्रारंभ में दक्षिण-पूर्व एशिया पर केंद्रित इस नीति का बाद में पूर्वी एशिया और ओशिनिया तक विस्तार किया गया।
  • प्राथमिक उद्देश्य: व्यापार और आर्थिक विकास को बढ़ाना।
    • आसियान देशों के साथ रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना।
    • पूर्वी एशिया की आर्थिक सफलता की कहानियों से प्रेरणा लेना।
  • प्रारंभिक परिणाम: वाणिज्य को सुविधाजनक बनाने के लिए व्यापार बाधाओं में कमी।
    • दक्षिण-पूर्व एशिया से आने वाले पर्यटन में वृद्धि।
  • एक्ट ईस्ट पॉलिसी (2014 के पश्चात): एक्ट ईस्ट पॉलिसी लुक ईस्ट पॉलिसी का प्रत्यक्ष विकास थी, जिसमें मजबूत कार्रवाई और परिणामों पर बल दिया गया। 2011 में, अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भारत से एशिया-प्रशांत में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का आग्रह किया, जिससे दृष्टिकोण में परिवर्तन आया।
    • 2014 में, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने औपचारिक रूप से घोषणा की कि भारत “एक्ट ईस्ट” के लिए तैयार है, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस प्रतिबद्धता को और मजबूत किया गया।
  • प्रमुख प्रगति: ठोस कार्रवाई और परिणामों पर अधिक बल।
    • क्षेत्रीय जुड़ाव के लिए एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में पूर्वोत्तर भारत का एकीकरण।
    • रणनीतिक और आर्थिक प्राथमिकता के रूप में इंडो-पैसिफिक की मान्यता।
  • 2014 के पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में, PM मोदी ने 3Cs दृष्टिकोण पेश किया:
    • वाणिज्य – व्यापार और आर्थिक संबंधों का विस्तार करना।
    • संस्कृति – ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना।
    • कनेक्टिविटी – निर्बाध एकीकरण के लिए बुनियादी ढाँचे और डिजिटल नेटवर्क का निर्माण।

एक्ट ईस्ट नीति के उद्देश्य और उपलब्धियाँ

  • रणनीतिक विस्तार: आसियान से आगे बढ़कर व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • बिम्सटेक, एशिया सहयोग वार्ता और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे क्षेत्रीय समूहों को मजबूत किया गया।
  • रक्षा कूटनीति में वृद्धि: फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइलों की बिक्री।
    • वियतनाम के साथ सैन्य रसद समझौता।
  • आर्थिक और व्यापारिक संबंध: व्यापार बाधाओं में कमी।
    • मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया के साथ अधिक आर्थिक एकीकरण।
    • क्षेत्र से भारत में विदेशी निवेश प्रवाह में वृद्धि।
    • भारत ने इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और आसियान के साथ संबंधों को रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाया है।
    • भारत ने क्षेत्रीय एकीकरण और प्रभावी परियोजना कार्यान्वयन पर बल देते हुए आसियान देशों को अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है।
  • सांस्कृतिक और सॉफ्ट पावर कूटनीति: रामायण और महाभारत परंपराओं और बौद्ध संबंधों सहित साझा सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देना।
    • दक्षिण पूर्व एशियाई भागीदारी के साथ रामायण महोत्सव जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मेजबानी।
    • भारत का लक्ष्य लोगों के बीच आपसी संपर्क और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने के लिए बौद्ध तथा हिंदू सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्जीवित और मजबूत करना है।
  • कनेक्टिविटी: पूर्वोत्तर भारत में बेहतर बुनियादी ढाँचे का विकास, जो दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए प्रवेश द्वार के रूप में काम करेगा।
    • प्रमुख परियोजनाओं में शामिल हैं:
      • भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग।
      • कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना।
      • संपर्क को मजबूत करने के लिए रि-टिडिम रोड परियोजना और बॉर्डर हाट।

चुनौतियाँ और सुधार के क्षेत्र

  • सामरिक और आर्थिक चुनौतियाँ: पूर्वोत्तर भारत में शहरीकरण और औद्योगीकरण का पर्यावरणीय प्रभाव।
    • चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को आकर्षक वित्तीय प्रोत्साहन देकर सख्त प्रतिस्पर्धा प्रस्तुत करती है।
    • चीन का BCIM-EC (बांग्लादेश, चीन, भारत, म्यांमार आर्थिक गलियारा) कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे में प्रतिस्पर्धी चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
    • म्यांमार का राजनीतिक परिवर्तन भारत के लिए लगातार चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।
    • आसियान देशों के साथ अपनी रणनीतिक भौगोलिक निकटता के बावजूद, पूर्वोत्तर अभी तक भारत की भारतमाला और सागरमाला परियोजनाओं में पूरी तरह से एकीकृत नहीं हुआ है।
  • सॉफ्ट पावर और सांस्कृतिक चुनौतियाँ: बौद्ध विरासत पर चीन का दावा भारत की कहानी को चुनौती देता है।
  • सीमित भाषाई जुड़ाव: कुछ ही भारतीय विश्वविद्यालय खमेर, बहासा इंडोनेशिया, थाई या बर्मी भाषा में पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं।
  • कनेक्टिविटी की अड़चनें: कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में देरी।
    • पूर्वोत्तर भारत में परिवहन और व्यापार सुविधाओं का अविकसित होना।

निष्कर्ष और आगे की राह

  • एक्ट ईस्ट नीति के लिए बुनियादी ढाँचे के विकास, निवेश और आपसी विकास तथा प्रगति सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता होगी। 
  • भारत के उत्तर-पूर्व को आसियान-भारत संबंधों को मजबूत करने में एक केंद्रीय भूमिका निभानी चाहिए, जिससे दक्षिण पूर्व एशिया के साथ इस क्षेत्र की निकटता का लाभ मिल सके। 
  • भारत के संपर्क प्रयासों को बुनियादी ढाँचे की कमियों को दूर करना चाहिए और बेहतर व्यापार एवं बातचीत के लिए निर्बाध एकीकरण सुनिश्चित करना चाहिए। 
  • जैसे-जैसे दक्षिण-पूर्व एशिया जलवायु परिवर्तन और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों के प्रति संवेदनशील होता जा रहा है, क्षेत्रीय आपदा प्रबंधन, जलवायु कूटनीति एवं समुद्री क्षेत्र जागरूकता में भारत की भूमिका बढ़ने वाली है। 
  • भारत को इंडो-पैसिफिक में मध्यम शक्तियों के साथ अधिक सक्रिय रूप से जुड़कर रणनीतिक साझेदारी के अपने नेटवर्क का विस्तार करने के लिए भी कार्य करना चाहिए।

Source: TH

 

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