एससी/एसटी अधिनियम, 1989 पर भारत का उच्चतम न्यायालय

पाठ्यक्रम: सामान्य अध्ययन पेपर-2/समाज का कमजोर वर्ग

सन्दर्भ

  • हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने एक निर्णय में कहा कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के लिए की गई सभी अपमानजनक और धमकाने वाली टिप्पणियां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी अधिनियम) के तहत अपराध नहीं होंगी।

एससी/एसटी अधिनियम की पृष्ठभूमि

  • अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 को प्रारंभ में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध निहित भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण को समाप्त करने के लिए संसद में पारित किया गया था। 
  • 1976 में इसका नाम परिवर्तित कर नागरिक अधिकार संरक्षण (PCR) अधिनियम कर दिया गया। बाद में, उपरोक्त अधिनियमों की अप्रभावीता के कारण, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 अस्तित्व में आया। 
  • एससी/एसटी अधिनियम के अनुसार, सामाजिक अक्षमताओं जैसे कि कुछ स्थानों पर पहुँच से वंचित करना तथा एक पारंपरिक मार्ग का उपयोग करने से रोकना, व्यक्तिगत अत्याचार जैसे कि जबरदस्ती शराब पीना या अखाद्य भोजन खाना, यौन शोषण, चोट आदि और संपत्तियों को प्रभावित करने वाले अत्याचार, दुर्भावनापूर्ण अभियोजन, राजनीतिक अक्षमता एवं आर्थिक शोषण से सुरक्षा प्रदान की जाती है। 
  • एससी/एसटी अधिनियम सक्रिय प्रयासों के माध्यम से हाशिए पर पड़े लोगों को न्याय दिलाने के लिए है, जिससे उन्हें सम्मान, आत्मसम्मान और प्रमुख जातियों से भय, हिंसा या दमन से मुक्त जीवन मिल सके।

आपराधिक कानून के प्रावधान

  • अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय के सदस्यों पर अत्याचार केवल गैर-अनुसूचित जाति और गैर-अनुसूचित जनजाति द्वारा ही किया जा सकता है।
    • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच होने वाले अपराध इस अधिनियम के दायरे में नहीं आते।
  • उन क्षेत्रों में शस्त्र लाइसेंस रद्द करना जहां अत्याचार हो सकता है या हो चुका है और अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों को शस्त्र लाइसेंस प्रदान करना।

संशोधन

  • इस अधिनियम को अधिक प्रभावी बनाने और अत्याचार पीड़ितों को अधिक न्याय तथा अन्याय का बेहतर निवारण प्रदान करने के लिए 2015 में इसमें संशोधन किया गया था।
  •  इसमें नए अपराध, अनुमानों का विस्तारित दायरा, संस्थागत सुदृढ़ीकरण तथा एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपराधों की विशेष रूप से सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों और अनन्य विशेष न्यायालयों की स्थापना सम्मिलित है, ताकि मामलों का शीघ्र निपटान किया जा सके।

उच्चतम न्यायलय की हालिया टिप्पणी

  • प्रयोजन: अदालत ने इस बात पर बल दिया कि अपमान या धमकी के पीछे का प्रयोजन महत्वपूर्ण है। सिर्फ़ यह जानना कि पीड़ित एससी/एसटी समुदाय से है, अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
    • इसके बजाय, जातिगत पहचान के कारण जानबूझकर पीड़ित का अपमान किया जाना चाहिए।
  • जाति-आधारित अपमान: इस अधिनियम को लागू करने के लिए, हमलावर द्वारा किया गया ‘अपमान’ पीड़ित की जातिगत पहचान से गहराई से जुड़ा होना चाहिए।
    • दूसरे शब्दों में, प्रत्येक जानबूझकर किया गया अपमान जाति-आधारित अपमान नहीं होता। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह केवल उन मामलों में लागू होता है जहां अपमान ऐतिहासिक रूप से जड़ जमाए हुए विचारों, जैसे अस्पृश्यता या जातिगत श्रेष्ठता की धारणाओं को पुष्ट करता है।
  • न्यायालय ने माना कि जाति के संदर्भ के बिना भी अपमान या धमकी हो सकती है। यदि अपमान विशेष रूप से पीड़ित की एससी/एसटी स्थिति से जुड़ा नहीं है, तो यह अधिनियम के दायरे में नहीं आता है।
  • अग्रिम जमानत: अधिनियम की धारा 18 के तहत इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता है जब तक कि आरोपी के खिलाफ अधिनियम के तहत प्रथम दृष्टया मामला स्थापित न हो जाए। यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों को अग्रिम जमानत मांगने के उनके अधिकार से अनुचित रूप से वंचित न किया जाए।

Source: IE

 

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