पाठ्यक्रम: GS3/भारतीय अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने 2022-23 और 2023-24 के दौरान घरेलू उपभोग व्यय पर दो लगातार सर्वेक्षण आयोजित करने का निर्णय लिया।
परिचय
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) नियमित अंतराल पर उपभोग/उपभोक्ता व्यय पर घरेलू सर्वेक्षण आयोजित करता रहा है, जो सामान्यतः एक वर्ष की अवधि का होता है।
- 1972 से, NSSO उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण आयोजित कर रहा है।
- इसे परिवारों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खपत के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- सर्वेक्षण का उद्देश्य देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए घरेलू मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE) और इसके वितरण का अलग-अलग अनुमान लगाना है।
प्रयुक्त पद्धति
- वर्तमान सर्वेक्षण में, तीन 3 प्रश्नावली का उपयोग किया गया, जिसमें सम्मिलित हैं:
- खाद्य वस्तुएँ;
- उपभोग्य वस्तुएँ और सेवा से संबंधित वस्तुएँ, और
- टिकाऊ (durable) वस्तुओं का उपयोग किया गया।
- सर्वेक्षण में विभिन्न सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से परिवारों द्वारा निःशुल्क प्राप्त और उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की संख्या की खपत की मात्रा पर जानकारी एकत्र करने के लिए एक अलग प्रावधान था।
कार्यप्रणाली में परिवर्तन
- सम्मिलित की गई वस्तुओं की संख्या 347 से बढ़कर 405 हो गयी है।
- सर्वेक्षण की प्रश्नावली में परिवर्तन किया गया है।
- पहले के सर्वेक्षण में प्रयुक्त एकल प्रश्नावली के स्थान पर, HCES 2022-23 में खाद्य, उपभोग्य सामग्रियों और सेवाओं तथा टिकाऊ वस्तुओं के लिए चार अलग-अलग प्रश्नावली प्रस्तुत की गईं।
- इस प्रकार, पहले के सर्वेक्षणों में एकल दौरे की सामान्य प्रथा के बजाय डेटा संग्रह के लिए विभिन्न दौरे हुए हैं।
2023-24 के लिए प्रमुख विशेषताएँ
- औसत MPCE: औसत भारतीय का मासिक व्यय ग्रामीण क्षेत्रों में 9.2% बढ़कर ₹4,122 और शहरी क्षेत्रों में 8.3% बढ़कर ₹6,996 हो गया।
- ग्रामीण व्यय की प्रवृत्ति: व्यय का 53% हिस्सा गैर-खाद्य पर खर्च किया गया।
- कपड़े, बिस्तर और जूते का हिस्सा सबसे बड़ा था।
- शहरी व्यय की प्रवृत्ति: गैर-खाद्य वस्तुओं पर व्यय 60% रहा, जिसमें विविध वस्तुओं और मनोरंजन, कपड़े एवं जूते, तथा शिक्षा का स्थान सबसे ऊपर रहा।
- पेय पदार्थ और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, सब्जियाँ एवं डेयरी उत्पाद जैसी खाद्य श्रेणियों का शहरी व्यय वृद्धि में 31.5% योगदान रहा।
- ग्रामीण शहरी अंतराल: यह 2011-12 में 84% से घटकर 2022-23 में 71% हो गयी है।
- 2023-24 में यह कम होकर 70% पर आ गया।
- ग्रामीण परिवार अब शहरी परिवारों के व्यय का 69.7% व्यय करते हैं।
- राज्यों में औसत MPCE में ग्रामीण-शहरी अंतर मेघालय (104%) में सबसे अधिक है, इसके बाद झारखंड (83%) और छत्तीसगढ़ (80%) का स्थान है।
- MPCE में प्रमुख वृद्धि: यह भारत की ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों की निचली 5 से 10 प्रतिशत जनसंख्या के लिए अधिकतम रहा है।
- उपभोग असमानता: ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में 2022-23 के स्तर से इसमें गिरावट दर्ज हुई है।
- गिनी गुणांक: ग्रामीण क्षेत्रों में यह 0.266 से घटकर 0.237 तथा शहरी क्षेत्रों में 0.314 से घटकर 0.284 हो गया है।
- कम गुणांक कम असमानता को दर्शाता है।
- क्षेत्रीय उपभोग पैटर्न: पूर्वी और मध्य राज्यों की तुलना में पश्चिमी और उत्तरी राज्यों में प्रति व्यक्ति खपत सबसे अधिक है।
- महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में व्यय औसत से अधिक है, जबकि पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश एवं ओडिशा जैसे राज्यों में उपभोग औसत से कम है।
- राज्यों में, सिक्किम में MPCE सबसे अधिक रहा, जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में 9,377 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 13,927 रुपये रहा, जबकि छत्तीसगढ़ में सबसे कम MPCE दर्ज किया गया।
भविष्य का दृष्टिकोण
- HCES 2023-24 के निष्कर्ष चल रहे आर्थिक सुधार और ग्रामीण और शहरी उपभोग के मध्य कम होते अंतर पर प्रकाश डालते हैं।
- ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में उपभोग असमानता में 2022-23 के स्तर से गिरावट आई है।
- पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण और शहरी MPCE के मध्य का अंतर काफी कम हो गया है, जो ग्रामीण आय में सुधार लाने में सरकारी नीतियों की सफलता को दर्शाता है।
- नीति निर्माता इस डेटा का उपयोग असमानता को कम करने तथा सतत् आर्थिक विकास को समर्थन देने के लिए लक्षित हस्तक्षेपों को डिजाइन करने के लिए कर सकते हैं।
Source: TH
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