भारत में बाल श्रम के मुद्दे पर नया अध्ययन NCRB से भिन्न है

पाठ्यक्रम: GS1-समाज/GS2-शासन

संदर्भ

  • ई-कोर्ट प्लेटफॉर्म से प्राप्त न्यायिक आंकड़ों के आधार पर एनफोल्ड और सिविकडाटालैब द्वारा बाल श्रम पर किया गया अध्ययन NCRB से भिन्न है और इसमें छह राज्यों में बाल श्रम के अधिक मामले सामने आए हैं।

मुख्य निष्कर्ष

  • डेटा में विसंगति: न्यायिक डेटा से पता चलता है कि NCRB द्वारा रिपोर्ट किए गए मामलों की तुलना में बाल श्रम के 8 गुना अधिक मामले हैं।
    • NCRB ने बाल और किशोर श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत 1,329 मामले (2015-2022) रिपोर्ट किए हैं।
    •  ई-कोर्ट डेटा से पता चलता है कि इसी अवधि में 9,193 मुकदमे दर्ज किए गए, जो एक महत्त्वपूर्ण वृद्धि है। 
  • छह राज्य: महाराष्ट्र, असम, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में 10,800 बाल श्रम मामलों का विश्लेषण किया गया। 
  • NCRB डेटा के साथ समस्याएँ: NCRB “प्रमुख अपराध नियम” का पालन करता है, जिसमें कई अपराधों वाले मामलों में केवल सबसे गंभीर अपराध की गणना की जाती है।
    • बाल श्रम जैसे छोटे अपराध, अगर वे किसी बड़े आपराधिक मामले का हिस्सा हैं, तो उन्हें दर्शाया नहीं जा सकता है। 
  • डेटा का महत्त्व: अपराध की प्रवृतिको समझने और बाल श्रम जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिए डेटा महत्त्वपूर्ण है।
    • शोधकर्त्ताओं और शिक्षाविदों को बेहतर समाधान और नीतियाँ बनाने में सहायता करता है।

भारत में बाल श्रम का मुद्दा

  • सरकारी प्रयासों के बावजूद, भारत में बाल श्रम एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है।
  • मूल कारण: गरीबी और अशिक्षा, प्रभावी समाधान के लिए सामाजिक भागीदारी की आवश्यकता है।
  • बाल श्रम पर सांख्यिकी
    • जनगणना 2001: 25.2 करोड़ कुल बाल जनसंख्या में से 1.26 करोड़ कार्यरत बच्चे (आयु 5-14 वर्ष)।
    • जनगणना 2011: भारत में 5-14 वर्ष की आयु के लगभग 10.1 मिलियन बाल श्रमिक थे, जो इस आयु वर्ग की कुल बाल जनसंख्या का 3.9% है।
  • गुरुपादस्वामी समिति: इसका गठन 1979 में बाल श्रम का अध्ययन करने और उपाय सुझाने के लिए किया गया था।
    • पाया कि गरीबी बाल श्रम को खत्म करने में एक प्रमुख बाधा थी।
    • खतरनाक क्षेत्रों में बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाने और अन्य क्षेत्रों को विनियमित करने की सिफारिश की।
    • बहु-नीति दृष्टिकोण का समर्थन किया।

समाज पर बाल श्रम का प्रभाव

  • आर्थिक विकास में बाधा: बाल श्रम से दीर्घावधि में उत्पादकता में कमी आती है, क्योंकि बच्चे शिक्षा और कौशल विकास से वंचित रह जाते हैं।
  • गरीबी का स्थायीकरण: पढ़ाई के बजाय काम करने वाले बच्चे गरीबी चक्र को जारी रखने में योगदान करते हैं, क्योंकि वयस्क होने पर उन्हें अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी मिलने की संभावना कम होती है।
  • कुशल कार्यबल की कमी: श्रम में शामिल बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, जिससे भविष्य की अर्थव्यवस्था में कुशल श्रमिकों की कमी हो जाती है।
  • सामाजिक असमानता: बाल श्रम सामाजिक असमानता को बढ़ाता है, क्योंकि हाशिए पर पड़े और आर्थिक रूप से वंचित बच्चों का शोषण होने की संभावना अधिक होती है।
  • सामाजिक प्रगति को कमजोर करता है: व्यापक बाल श्रम समाज की प्रगति को सीमित करता है, क्योंकि यह शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार के प्रयासों में बाधा डालता है।

भारत में बाल श्रम रोकने की चुनौतियाँ:

  • गरीबी: परिवार प्रायः जीवित रहने के लिए बच्चों की आय पर निर्भर रहते हैं, जिससे बाल श्रम को समाप्त करना मुश्किल हो जाता है।
  • शिक्षा तक पहुँच की कमी: खराब बुनियादी ढाँचा और सीमित स्कूल, विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में, बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने से रोकते हैं।
  • सांस्कृतिक स्वीकृति: कुछ क्षेत्रों में, बाल श्रम को सामान्य माना जाता है और इसे पारिवारिक परंपरा या आजीविका के हिस्से के रूप में देखा जाता है।
  • सीमित जागरूकता: बाल श्रम के हानिकारक प्रभावों के बारे में परिवारों, नियोक्ताओं और समुदायों में जागरूकता की कमी।
  • आर्थिक शोषण: कपड़ा, कृषि और निर्माण जैसे उद्योगों में सस्ते श्रम की माँग बच्चों का शोषण करती रहती है।
  • प्रवास: शहरी क्षेत्रों में प्रवासी परिवार प्रायः अस्थिरता और शिक्षा तक पहुँच की कमी के कारण बच्चों को कार्य पर लगा देते हैं।

संवैधानिक प्रावधान:

  • मौलिक अधिकार:
    • अनुच्छेद 21A: राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा।
    • अनुच्छेद 24: खतरनाक रोजगार में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के श्रम पर प्रतिबंध लगाता है।
  • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत:
    • अनुच्छेद 39(e): बच्चों को शोषण और दुर्व्यवहार से बचाता है।
    • अनुच्छेद 39(f): गरिमा और स्वतंत्रता की स्थिति में बच्चों के विकास को सुनिश्चित करता है।

विधायी कार्यवाहियाँ

  • बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986: खतरनाक व्यवसायों में बाल श्रम पर प्रतिबंध तथा अन्य क्षेत्रों में विनियमित कार्य।
    • संशोधन (2016): सभी व्यवसायों में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध।
      • किशोरों (14-18 वर्ष) को भी खतरनाक रोजगारों में लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति (1987): क्रमिक और अनुक्रमिक दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • बच्चों और किशोरों के पुनर्वास को प्राथमिकता दी गई।
  • राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP): उच्च सांद्रता वाले क्षेत्रों में श्रम से बचाए गए बच्चों के लिए शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और पुनर्वास प्रदान करती है।
  • शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009: 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है, जिसका उद्देश्य उन्हें कार्यबल से बाहर रखना है।
  • मध्याह्न भोजन योजना: निःशुल्क भोजन प्रदान करके स्कूल में उपस्थिति को प्रोत्साहित करती है, जिससे बच्चों को कार्य करने के लिए प्रोत्साहन कम मिलता है।
  • श्रम निरीक्षण और छापे: राज्य सरकारें उद्योगों में बाल श्रम की पहचान करने और उसे रोकने के लिए नियमित निरीक्षण और छापे मारती हैं।
  • एकीकृत बाल संरक्षण योजना (ICPS): बाल श्रम सहित शोषण एवं दुर्व्यवहार के जोखिम वाले बच्चों के लिए सहायता और पुनर्वास प्रदान करती है।

Source: IE