पाठ्यक्रम: GS2/ राजव्यवस्था एवं शासन
सन्दर्भ
- सरकार की योजना लंबे समय से विलंबित जनगणना को 2025 में शुरू करने की है, जिसके बाद लोकसभा सीटों का परिसीमन किया जाएगा।
परिचय
- राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को अपडेट करने के लिए सामान्यतः प्रत्येक दस वर्ष में आयोजित की जाने वाली जनगणना 2021 के लिए निर्धारित की गई थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसे स्थगित करना पड़ा।
- लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन 2026 के बाद पहली जनगणना के आधार पर किया जाना है।
भारत में जनगणना
- जनगणना किसी क्षेत्र की जनसंख्या का सर्वेक्षण है जिसमें आयु, लिंग और व्यवसाय सहित देश की जनसांख्यिकी का विवरण एकत्र करना शामिल है।
- इतिहास: भारत के जनगणना आयुक्त डब्ल्यू.सी. प्लोडेन के अंतर्गत, पहली समकालिक दशकीय (प्रत्येक दस वर्ष में) जनगणना 1881 में आयोजित की गई थी।
- स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना 1951 में हुई थी और तब से यह प्रत्येक दशक के पहले वर्ष में होती रही है।
- संविधान में यह अनिवार्य है कि गणना की जाए, लेकिन भारत की जनगणना अधिनियम 1948 में इसका समय या आवधिकता निर्दिष्ट नहीं की गई है।
- जनसंख्या जनगणना गृह मंत्रालय के तहत भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के कार्यालय द्वारा की जाती है।
जनगणना की आवश्यकता
- सटीक जनसंख्या डेटा: स्वास्थ्य सेवा से लेकर बुनियादी ढांचे तक विभिन्न राष्ट्रीय और राज्य परियोजनाओं की योजना बनाने तथा प्रबंधन के लिए एक विश्वसनीय जनसंख्या गणना मौलिक है।
- सामाजिक-आर्थिक अंतर्दृष्टि: साक्षरता, आय, व्यवसाय एवं आवास की स्थिति पर जनगणना डेटा सामाजिक चुनौतियों को उजागर करता है और लक्षित हस्तक्षेपों की अनुमति देता है।
- विकास प्रगति का मूल्यांकन: दशकों से जनगणना डेटा की तुलना करने से पिछली नीतियों की प्रभावशीलता का आकलन करने और भविष्य की रणनीतियों का मार्गदर्शन करने में सहायता मिलती है।
- पर्यावरण नियोजन: जनगणना मानव बस्तियों और जनसांख्यिकीय दबावों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, जो पर्यावरणीय स्थिरता प्रयासों का समर्थन करती है।
जनगणना के लाभ
- सूचित नीति निर्माण: जनगणना विस्तृत सामाजिक-आर्थिक डेटा प्रदान करती है, जिससे सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आवास, रोजगार और बुनियादी ढांचे जैसे मुद्दों पर सूचित निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
- संसाधन आवंटन: सटीक जनसंख्या डेटा राज्यों में संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण जैसे क्षेत्रों में।
- चुनावी सुधार और परिसीमन: जनगणना डेटा सीधे निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को प्रभावित करता है, जिससे संसद और राज्य विधानसभाओं में निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है।
आगे की राह
- कोविड के पश्चात् की रिकवरी के लिए अपडेटेड डेटा: पिछली जनगणना 2011 में हुई थी, तब से जनसंख्या की गतिशीलता बदल गई है, जिससे आर्थिक और सामाजिक संरचनाओं में बदलावों को संबोधित करने के लिए अपडेटेड डेटा आवश्यक हो गया है।
- परिसीमन की आवश्यकताएँ: परिसीमन प्रक्रिया 2026 के बाद निर्धारित है, इसलिए अपडेटेड जनसांख्यिकी के आधार पर निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सटीक, वर्तमान जनसंख्या डेटा होना महत्वपूर्ण है।
परिसीमन क्या है? – परिसीमन से तात्पर्य प्रत्येक राज्य में लोकसभा और विधानसभाओं के लिए सीटों की संख्या एवं प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएँ तय करने की प्रक्रिया से है। 1. इसमें इन सदनों में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षित सीटों का निर्धारण भी शामिल है। – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82 और 170 में प्रावधान है कि प्रत्येक जनगणना के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों की संख्या तथा प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इसके विभाजन को पुनः समायोजित किया जाएगा। – यह प्रक्रिया संसद के एक अधिनियम के तहत स्थापित ‘परिसीमन आयोग’ द्वारा की जाती है। विगत परिसीमन – 1951, 1961 और 1971 की जनगणना के आधार पर लोकसभा में सीटों की संख्या 494, 522 और 543 तय की गई थी। – हालांकि, जनसंख्या नियंत्रण उपायों को प्रोत्साहित करने के लिए इसे 1971 की जनगणना के अनुसार स्थिर रखा गया है ताकि उच्च जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों में सीटों की संख्या अधिक न हो। – यह 42वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से वर्ष 2000 तक किया गया था और 84वें संशोधन अधिनियम द्वारा 2026 तक बढ़ा दिया गया था। – प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से समायोजित किया गया (सीटों की संख्या में बदलाव किए बिना) और SC और ST के लिए सीटें 2001 की जनगणना के अनुसार निर्धारित की गईं और 2026 के बाद फिर से लागू की जाएंगी। |
Source: Mint
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