प्राकृतिक खेती: खेती का एक सतत् तरीका अपनाना

पाठ्यक्रम: GS3/कृषि

संदर्भ

  • शिमला के सेब उत्पादकों के मध्य प्राकृतिक खेती का उदय, सतत् कृषि की ओर एक परिवर्तनकारी बदलाव का प्रतीक है।
क्या आप जानते हैं?
नकदी फसल: हिमाचल प्रदेश में सेब प्रमुख फल फसल है और फलों में यह प्रमुख नकदी फसल बन गई है।यह क्षेत्र के कुल फल उत्पादन में 76% का योगदान देता है।
उत्पादकता में कमी: खराब प्रबंधन पद्धतियां, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर अत्यधिक निर्भरता तथा जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव हिमाचल प्रदेश के कभी समृद्ध सेब उद्योग के लिए गंभीर चुनौतियां प्रस्तुत कर रहे हैं।
समाधान: इन चुनौतियों का एक आशाजनक समाधान प्राकृतिक कृषि  में निहित है, जो स्थानीय संसाधनों का उपयोग करने, मृदा स्वास्थ्य को बढ़ाने और सतत् उत्पादन प्रथाओं को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

प्राकृतिक खेती

  • प्राकृतिक खेती कृषि का एक दृष्टिकोण है जो सतत् और समग्र तरीके से फसल उगाने के लिए प्रकृति की प्रक्रियाओं के साथ कार्य करने पर बल देता है।
  • यह स्वदेशी ज्ञान, स्थान-विशिष्ट प्रौद्योगिकियों और स्थानीय कृषि-पारिस्थितिकी के अनुकूलन पर आधारित स्थानीय कृषि-पारिस्थितिकी सिद्धांतों का पालन करता है।
  • प्राकृतिक खेती का एक मुख्य विचार बाहरी इनपुट पर निर्भरता को कम करना तथा एक ऐसी प्रणाली बनाना है जो दीर्घावधि तक टिक सके।
  • प्राकृतिक खेती की प्रमुख पद्धतियों में शामिल हैं:
    • न्यूनतम मृदा व्यवधान;
    • जैविक आदानों का उपयोग;
    • जैव विविधता और बहुकृषि;
    • जल संरक्षण;
    • कीटों के प्रबंधन के लिए प्राकृतिक तरीके;
    • सिंथेटिक उर्वरकों, शाकनाशियों और कीटनाशकों से परहेज किया जाता है।

प्राकृतिक बनाम जैविक खेती

  • प्राकृतिक खेती प्रकृति के साथ न्यूनतम हस्तक्षेप, जुताई, उर्वरक और यहां तक कि निराई से बचने पर बल देती है।
    • यह कम या बिना किसी बाहरी इनपुट के आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र बनाने, मृदा के स्वास्थ्य को बनाए रखने और कीटों का प्रबंधन करने के लिए प्रकृति पर विश्वास करने पर केंद्रित है।
  • जैविक खेती विशिष्ट प्रमाणन मानकों का पालन करती है जो सिंथेटिक रसायनों और आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) पर प्रतिबंध लगाते हैं।
    • यह जैविक उर्वरकों, कीटनाशकों और जुताई के उपयोग की अनुमति देता है।
    • यह प्राकृतिक खेती की तुलना में अधिक संरचित एवं विनियमित होती है।

प्राकृतिक खेती का व्यावहारिक प्रयोग

  • विभिन्न राज्य प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। इनमें प्रमुख हैं आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु।
प्राकृतिक खेती का व्यावहारिक प्रयोग

प्राकृतिक खेती के लाभ

  • पर्यावरणीय स्थिरता: यह मृदा स्वास्थ्य की रक्षा करने, प्रदूषण को कम करने और जैव विविधता को बढ़ावा देने में सहायता करता है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन: प्राकृतिक खेती ऐसी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देती है जो परिवर्तित जलवायु के अनुकूल हो सकती हैं, जैसे सूखा-सहिष्णु फसलें और टिकाऊ जल उपयोग।
  • स्वास्थ्यवर्धक भोजन: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बिना उत्पादित भोजन अधिक सुरक्षित एवं पौष्टिक माना जाता है।
  • आर्थिक लाभ: समय के साथ, प्राकृतिक खेती से रासायनिक आदानों से संबंधित लागत कम हो सकती है और खेतों की लचीलापन बढ़ सकता है, जिससे संभावित रूप से अधिक उपज हो सकती है।

चुनौतियाँ

  • स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र सीखना: इसके लिए स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की गहन समझ की आवश्यकता होती है, जिसे सीखने और प्रभावी ढंग से लागू करने में समय लग सकता है।
  • श्रम-प्रधान: संक्रमण काल ​​में, प्राकृतिक खेती अधिक श्रम-प्रधान होती है और प्रारंभ में पारंपरिक खेती की तुलना में कम उपज देती है।
  • बाजार की मांग: यद्यपि जैविक उत्पाद लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन प्राकृतिक खेती हमेशा मुख्यधारा के बाजार की अपेक्षाओं या प्रमाणन मानकों को पूरा नहीं कर पाती है।

सरकारी पहल

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): इस कार्यक्रम के अंतर्गत ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिसे प्राकृतिक कृषि पद्धतियों के अनुकूल बनाया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF): केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वतंत्र केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में NMNF की घोषणा की।
    • इसका उद्देश्य देश भर के एक करोड़ किसानों के बीच प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देना है।
    • इसे ग्राम पंचायतों के 15,000 क्लस्टरों में क्रियान्वित किया जाएगा, जिसमें लगभग 1 करोड़ इच्छुक किसान शामिल होंगे।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: 2015 में शुरू की गई यह पहल किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान करती है, जो उनकी मिट्टी की पोषक सामग्री और PH स्तर के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं।
  • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA): 2014 में शुरू किया गया यह मिशन मृदा स्वास्थ्य में सुधार, जल संरक्षण और उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्राकृतिक खेती सहित सतत् कृषि तकनीकों को अपनाने को प्रोत्साहित करता है।
  • राष्ट्रीय जैविक खेती अनुसंधान संस्थान (NOFII): यह मृदा स्वास्थ्य में सुधार, जैविक खेती प्रौद्योगिकियों के विकास और सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
  • प्राकृतिक खेती करने वाले राज्य: प्राकृतिक खेती करने वाले विभिन्न राज्य हैं।
    • इनमें प्रमुख हैं आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, केरल, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु।

आगे की राह

  • सरकार पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने, किसानों की आय में सुधार लाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में प्राकृतिक खेती के महत्व को तीव्रता से पहचान रही है।
  • स्थानीय किसानों की भागीदारी और राज्य स्तरीय नवाचार के साथ इन प्रयासों को मिलाकर भारत में सतत् कृषि के भविष्य के लिए बड़ी संभावनाएं हैं।

Source: DTE