समुद्र स्तर में वृद्धि

पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरणीय क्षरण; आपदा प्रबंधन

संदर्भ

  • समुद्र स्तर में वृद्धि (SLR) की घटना एक वैश्विक चुनौती है, भारत के विशाल और घनी जनसंख्या वाले तटीय क्षेत्र विशेष रूप से संवेदनशील हैं।

समुद्र स्तर में वृद्धि

  • समुद्र स्तर में वृद्धि वैश्विक तापन के प्रभाव के कारण विश्व के महासागरों के स्तर में वृद्धि है।
  • कारण:  समुद्र के स्तर में वृद्धि समुद्र के उष्ण होने और हिमनदों एवं हिम की चादरों के पिघलने के कारण होती है, जो जलवायु परिवर्तन से प्रेरित है।
    • यहां तक ​​कि अगर वैश्विक तापन को पूर्व-औद्योगिक स्तरों (पेरिस समझौते के अनुसार) से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर दिया जाए, तो भी समुद्र का स्तर काफी हद तक बढ़ जाएगा।
    • गल्फ स्ट्रीम जैसे महासागर परिसंचरण पैटर्न, समुद्र के स्तर में वृद्धि में क्षेत्रीय भिन्नता उत्पन्न कर सकते हैं

वर्तमान स्थिति

  • वैश्विक परिदृश्य :
    • 1880 के बाद से, वैश्विक समुद्र का स्तर लगभग 20 सेंटीमीटर बढ़ गया है।
    • यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन निरंतर जारी रहा तो अनुमान है कि सदी के अंत तक यह आंकड़ा 1.2 मीटर तक बढ़ सकता है।
    • 1993 में समुद्र के स्तर में लगभग 2 मिमी/वर्ष की वृद्धि हुई थी।
      • यह दर अब दोगुनी हो गई है और जलवायु शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 2050 तक तटीय क्षेत्रों में बाढ़ की दर तीन गुना बढ़ जाएगी।
  • भारतीय परिदृश्य: भारत की तटरेखा 7,500 किलोमीटर से अधिक लंबी है, जो सांस्कृतिक जीवंतता, आर्थिक गतिविधि एवं जैव विविधता का केंद्र है।
    • SLR के परिणाम विनाशकारी हैं, विशेषकर मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे प्रमुख शहरी केंद्रों के लिए।
    • सुंदरबन, विश्व का सबसे बड़ा सन्निहित मैंग्रोव वन, 2100 तक यह 80% क्षेत्र समाप्त हो सकता है, जिससे जैव विविधता खतरे में पड़ सकती है।
    • इसी प्रकार, ओडिशा तट पर ओलिव रिडले कछुओं के घोंसले के स्थान भी बढ़ती बाढ़ और कटाव के कारण खतरे में हैं, जिससे उनके प्रजनन चक्र एवं भोजन स्रोत बाधित हो रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन से तात्पर्य वैश्विक या क्षेत्रीय जलवायु पैटर्न में दीर्घकालिक परिवर्तनों से है।
– यह मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों से प्रेरित है, जैसे जीवाश्म ईंधन का जलना, वनों की कटाई, और औद्योगिक प्रक्रियाएं, जो वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) एवं मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ती हैं।
– ये गैसें ऊष्मा को रोक लेती हैं, जिससे पृथ्वी का तापमान में वृद्धि होती है – इस घटना को वैश्विक तापन के नाम से जाना जाता है।
प्रभाव: यह अच्छे स्वास्थ्य के आवश्यक तत्वों – स्वच्छ हवा, सुरक्षित पेयजल, पौष्टिक खाद्य आपूर्ति एवं सुरक्षित आश्रय – को खतरे में डालता है और वैश्विक स्वास्थ्य में दशकों की प्रगति को कमजोर करने की क्षमता रखता है।.

समुद्र के स्तर में वृद्धि से संवंधित चिंताएँ

  • बाढ़: इसके कारण तटीय क्षेत्रों में बार-बार और गंभीर बाढ़ आती है, जिससे बुनियादी ढांचे, घरों एवं आजीविका को खतरा होता है।
  • विस्थापन: समुद्र का बढ़ता जलस्तर समुदायों को स्थानांतरित होने के लिए मजबूर करता है, जिससे विस्थापन और संसाधनों को लेकर संभावित संघर्ष उत्पन्न होता है।
  • खारे पानी का अतिक्रमण: लवणता स्वच्छ जल के स्रोतों को दूषित करती है, जिससे पेयजल आपूर्ति और कृषि प्रभावित होती है।
  • आर्थिक प्रभाव: मछली पकड़ने और पर्यटन जैसे तटीय उद्योग गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं, जिससे प्रभावित क्षेत्रों में रोजगार समाप्त हो जाते हैं और आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न होती है।
  • जैव विविधता हानि: मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों जैसे पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में हैं, जिससे जैव विविधता और इन पारिस्थितिकी तंत्रों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं प्रभावित हो रही हैं।
  • स्वास्थ्य जोखिम: बाढ़ से जलजनित बीमारियाँ फैलती हैं।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत के प्रयास

  • नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार: भारत ने 2030 तक अपनी बिजली की 50% मांग को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरा करने का लक्ष्य घोषित किया है।
    • इसने जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य के साथ सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं में भारी निवेश किया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: भारत पेरिस समझौते पर हस्ताक्षरकर्ता है, जो अपनी कार्बन तीव्रता को कम करने तथा अपने कुल ऊर्जा मिश्रण में गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • वनरोपण और वन संरक्षण: कार्बन अवशोषण और जलवायु विनियमन में वनों की भूमिका को पहचानते हुए, भारत ने वन क्षेत्र को बढ़ाने, बंजर भूमि को पुनर्स्थापित करने और सतत् वन प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम प्रारंभ किए हैं।
  • स्वच्छ परिवहन: भारत इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को अपनाने को बढ़ावा दे रहा है और उसने 2030 तक 30% EVs बाजार हिस्सेदारी का लक्ष्य रखा है।
    • सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन और अपनाने को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन और सब्सिडी की शुरुआत की है।
  • जलवायु लचीलापन: भारत जलवायु लचीलापन और अनुकूलन को बढ़ाने के उपायों में निवेश कर रहा है, विशेष रूप से कृषि, जल संसाधन एवं तटीय क्षेत्रों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों और सहयोगों में सक्रिय रूप से भाग लेता है, तथा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन एवं आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन जैसी पहलों में सम्मिलित है।

आवश्यकत कदम

  • भारत ने तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना (1991) लागू की है लेकिन इसका कार्यान्वयन असंगत है।
    • बढ़ते समुद्री स्तर और शक्तिशाली तूफानों सहित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए कानूनों को अनुकूलित करने की आवश्यकता है।
  • अनुकूलन और शमन रणनीतियों में समुद्री दीवारें, पूर्व चेतावनी प्रणालियां, तथा मैंग्रोव एवं आर्द्रभूमि जैसी प्राकृतिक बाधाओं का पुनर्स्थापन सम्मिलित है।
    • मैंग्रोव वनरोपण से तरंग ऊर्जा को कम किया जा सकता है और मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।
    • तैरती कृषि और नमक प्रतिरोधी फसलें कमजोर तटीय क्षेत्रों में किसानों की सहायता कर सकती हैं।
  • भारत, UNFCCC के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के अंतर्गत, SLR प्रभावों से निपटने के लिए धनी देशों से तकनीकी और वित्तीय सहायता मांग सकता है।
    • प्रभावित जनसंख्या के लिए बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी और प्रवासन कार्यक्रमों को वित्तपोषित करने के लिए वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है

निष्कर्ष

  • समुद्र स्तर में वृद्धि भारत के तटीय क्षेत्रों के लिए सामाजिक-आर्थिक और मानवीय संकट का प्रतिनिधित्व करता है।
  • तटीय जनसंख्या, पारिस्थितिकी तंत्र और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए तत्काल एवं समन्वित कार्रवाई आवश्यक है।
  • सतत् विकास और अनुकूलन उपाय भारत के समुद्र तट के लिए एक लचीला भविष्य सुनिश्चित करेंगे।

Source: DTE