गंभीर प्रकृति की आपदा

पाठ्यक्रम: GS3/ आपदा प्रबंधन

संदर्भ

  • केंद्र सरकार ने वायनाड भूस्खलन को “गंभीर प्रकृति की आपदा” घोषित किया है, पाँच महीने पहले इस आपदा में 254 लोगों की मृत्यु हो गई थी और 128 लोग लापता हो गए थे।

गंभीर प्राकृतिक आपदाएँ

  • गंभीर प्रकृति की आपदाएँ विनाशकारी घटनाएँ होती हैं जो जीवन, संपत्ति और पर्यावरण को व्यापक हानि पहुँचाती हैं।
  •  ये आपदाएँ भूकंप, चक्रवात या भूस्खलन जैसी प्राकृतिक घटनाओं या औद्योगिक दुर्घटनाओं जैसे मानव-प्रेरित कारणों से उत्पन्न हो सकती हैं।

घोषणा के निहितार्थ

  • जब किसी आपदा को “दुर्लभ गंभीरता”/”गंभीर प्रकृति” की घोषित किया जाता है, तो राज्य सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर सहायता प्रदान की जाती है। 
  • केंद्र NDRF से अतिरिक्त सहायता पर भी विचार करता है। 
  • आपदा राहत कोष (CRF) की स्थापना की जाती है, जिसमें केंद्र और राज्य के बीच 3:1 के अनुपात में धनराशि साझा की जाती है।
    • जब CRF में संसाधन अपर्याप्त हों, तो राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता निधि (NCCF) से अतिरिक्त सहायता पर विचार किया जाता है, जिसका 100% वित्तपोषण केंद्र द्वारा किया जाता है।
  • जब किसी आपदा को “गंभीर” घोषित कर दिया जाता है, तो ऋण की अदायगी में राहत या प्रभावित व्यक्तियों को रियायती शर्तों पर नए ऋण प्रदान करने पर भी विचार किया जाता है।

गंभीर प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव

  • सामाजिक प्रभाव: जीवन की हानि और लोगों के विस्थापन के साथ-साथ महिलाओं और बच्चों सहित हाशिए पर रहने वाले वर्गों की बढ़ती संवेदनशीलता।
  • आर्थिक प्रभाव: सड़कों, पुलों और विद्युत प्रणालियों जैसे बुनियादी ढाँचे को हानि।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: मृदा अपरदन में वृद्धि, वनों की कटाई, और प्राकृतिक आवासों का हानि।

सरकार की पहल

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापनाI
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: पर्यावरण क्षरण से होने वाले जोखिमों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली: भारतीय सुनामी पूर्व चेतावनी प्रणाली और डॉपलर रडार स्थापना जैसी पहल।
  • तत्काल राहत एवं पुनर्वास के लिए राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि (SDRF) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया निधि (NDRF)।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: आपदा मानचित्रण एवं नियोजन के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और रिमोट सेंसिंग का उपयोग।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन हेतु सुझाव

  • बुनियादी ढाँचे की लोचशीलता: उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में निर्माण को रोकने के लिए भूमि-उपयोग नियोजन और ज़ोनिंग विनियमों को लागू करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से अन्य देशों के साथ सर्वोत्तम प्रथाओं और प्रौद्योगिकी को साझा करना।
  • जलवायु परिवर्तन शमन पर ध्यान देना: आपदाओं के अंतर्निहित कारकों को संबोधित करने के लिए सतत् विकास को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

  • प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के लिए रोकथाम, शमन, तैयारी एवं प्रतिक्रिया को मिलाकर एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। 
  • प्रौद्योगिकी को एकीकृत करके एवं जलवायु-प्रतिरोधी नीतियों को अपनाकर, भारत गंभीर प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों को काफी हद तक कम कर सकता है और अपने विकास पथ को सुरक्षित कर सकता है।

Source: TH