भारत का रक्षा निर्यात

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • केयरएज (CareEdge) रेटिंग्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का रक्षा क्षेत्र का उत्पादन वित्त वर्ष 24-वित्त वर्ष 29 के दौरान लगभग 20% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने वाला है।

प्रमुख विशेषताएँ

  • बजट आवंटन: भारत का रक्षा बजट लगातार सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 1.90 से 2.8% के मध्य रहा है।
    • वित्त वर्ष 2024-25 के लिए रक्षा क्षेत्र के लिए 6.22 लाख करोड़ रुपये समर्पित किए गए हैं।
  • स्वदेशी विनिर्माण: ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों के समर्थन से देश निरंतर विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है और अपनी रक्षा क्षमताओं को आगे बढ़ा रहा है।
  • रक्षा निर्यात: वित्त वर्ष 2024 तक समाप्त पिछले छह वर्षों में, भारतीय रक्षा निर्यात लगभग 28% की CAGR से बढ़ा है।
    • अगले 5 वर्षों के दौरान (अर्थात् वित्त वर्ष 24 से वित्त वर्ष 29 तक) भारत का रक्षा निर्यात लगभग 19% की अनुमानित दर से बढ़ेगा।
    • भारत के रक्षा निर्यात में विभिन्न उत्पाद शामिल हैं, जैसे विमान, नौसेना प्रणाली, मिसाइल प्रौद्योगिकी और सैन्य हार्डवेयर।

भारत का रक्षा निर्यात

  • भारत ने 2028-29 तक 50,000 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात लक्ष्य रखा है।
  • वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का रक्षा निर्यात 21,083 करोड़ रुपये तक पहुँच गया, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 32.5% अधिक है।
  • भारत से निर्यात में निजी क्षेत्र और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (DPSUs) का योगदान क्रमशः लगभग 60% और 40% था।
  • देश वर्तमान में लगभग 85 देशों को सैन्य हार्डवेयर निर्यात कर रहा है, जिसमें लगभग 100 स्थानीय कंपनियाँ सम्मिलित हैं।
  • स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, 2000 से 2023 के मध्य म्यांमार भारतीय हथियारों का सबसे बड़ा आयातक बना रहा, जिसकी भारत के निर्यात में 31% हिस्सेदारी थी, तथा उसके बाद श्रीलंका का स्थान था, जिसकी हिस्सेदारी 19% थी।
    • मॉरीशस, नेपाल, आर्मेनिया, वियतनाम और मालदीव अन्य प्रमुख आयातक थे।
  • भारत का रक्षा उत्पादन 2016-17 में 74,054 करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में 108,684 करोड़ रुपये हो गया।
    • इसमें से 21.96% उत्पादन निजी कंपनियों द्वारा किया गया।
भारत का रक्षा निर्यात

रक्षा उत्पादन में वृद्धि के लाभ

  • आत्मरक्षा: चीन एवं पाकिस्तान जैसे शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों की उपस्थिति के कारण भारत के लिए अपनी आत्मरक्षा और तैयारी को बढ़ाना आवश्यक हो गया है।
  • रणनीतिक लाभ: आत्मनिर्भरता भारत की भू-राजनीतिक स्थिति को शुद्ध सुरक्षा प्रदाता के रूप में रणनीतिक रूप से मजबूत बनाएगी।
  • तकनीकी उन्नति: रक्षा प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उन्नति से स्वचालित रूप से अन्य उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को अधिक बढ़ावा मिलेगा।
  • आर्थिक क्षति: भारत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3% रक्षा पर व्यय करता है और इसका 60% आयात पर व्यय होता है। इससे भारी आर्थिक क्षति होती है।
  • रोजगार: रक्षा विनिर्माण को कई अन्य उद्योगों के समर्थन की आवश्यकता होगी जो रोजगार के अवसर सृजित करते हैं।

चिंताएँ

  • निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी: रक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी अनुकूल वित्तीय ढाँचे के अभाव के कारण बाधित है, जिसका अर्थ है कि हमारा रक्षा उत्पादन आधुनिक डिजाइन, नवाचार और उत्पाद विकास से लाभान्वित होने में असमर्थ है।
  • महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी का अभाव: डिजाइन क्षमता का अभाव, अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास निवेश, प्रमुख उप-प्रणालियों और घटकों के विनिर्माण में असमर्थता स्वदेशी विनिर्माण में बाधा उत्पन्न करती है।
  • हितधारकों के बीच समन्वय का अभाव: रक्षा मंत्रालय एवं औद्योगिक संवर्धन मंत्रालय के बीच अधिकार क्षेत्र के अतिव्यापी होने के कारण भारत की रक्षा विनिर्माण क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है।

सरकारी कदम

  • निर्यात प्रक्रियाओं का सरलीकरण: सरकार ने रक्षा निर्यात के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल, इंडिया डिफेंस मार्ट की शुरुआत की है, जो कंपनियों को निर्यात लाइसेंस के लिए आवेदन करने और उनके आवेदनों को ऑनलाइन ट्रैक करने में सक्षम बनाता है।
  • रक्षा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए रक्षा निर्यात संवर्धन योजना (SPDE) जिसमें अंतर्राष्ट्रीय रक्षा प्रदर्शनियों में भाग लेने, विदेशों में भारतीय रक्षा उत्पादों के विपणन और प्रचार के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान शामिल है।
  • भारतीय रक्षा उद्योग के आधुनिकीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (TUFS)।
    • यह योजना विनिर्माण सुविधाओं के तकनीकी उन्नयन और आधुनिकीकरण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • सरकार ने विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी के माध्यम से रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक रणनीतिक साझेदारी मॉडल प्रस्तुत किया है।
    • ब्रह्मोस मिसाइल भारत और रूस के मध्य मजबूत रक्षा सहयोग का प्रमाण है।
  • मेक इन इंडिया जैसी पहल के साथ-साथ भारत सरकार ने रक्षा निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए निर्यात संवर्धन परिषद (EPC) की स्थापना की है।
  • निर्यात को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश को उदार बनाने के लिए रक्षा क्षेत्र में FDI को स्वचालित मार्ग से 74% और सरकारी मार्ग से 100% तक बढ़ा दिया गया है।
  • सरकार ने तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश राज्यों में दो समर्पित रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित किए हैं, जो रक्षा विनिर्माण के क्लस्टर के रूप में कार्य करेंगे एवं वर्तमान बुनियादी ढाँचे तथा मानव पूँजी का लाभ उठाएँगे।

आगे की राह

  • रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने एवं प्रोत्साहित करने के लिए ग्रीन चैनल स्टेटस पॉलिसी (GCS) प्रारंभ की गई है।
  • भारत में लगभग 194 रक्षा प्रौद्योगिकी स्टार्टअप हैं जो देश के रक्षा प्रयासों को सशक्त बनाने और समर्थन देने के लिए नवीन तकनीकी समाधान तैयार कर रहे हैं।
  • भारत के आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विदेशी निवेश पर प्रतिबंधों को आसान बनाने पर सरकार के बल के साथ, भारतीय रक्षा क्षेत्र की विकास गति मजबूत बनी हुई है।
  • यह वृद्धि भारतीय रक्षा उत्पादों एवं प्रौद्योगिकियों की वैश्विक स्वीकार्यता का प्रतिबिंब है।

Source: DD