पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सन्दर्भ
- विदेश नीति में एक वृहद रणनीति के लिए भारत की खोज एक जटिल एवं विकासशील यात्रा है, जो एक अग्रणी वैश्विक शक्ति बनने की इसकी आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करती है।
ऐतिहासिक संदर्भ एवं रणनीतिक बुद्धिमत्ता
- सदियों से चाणक्य, सुन त्ज़ु एवं क्लॉज़विट्ज़ जैसे विचारकों ने युद्ध एवं कूटनीति पर अपने लेखन से सामरिक विचारों को प्रभावित किया है।
- आधुनिक संदर्भ में, समकालीन भू-राजनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिए इन प्राचीन सिद्धांतों की पुनर्व्याख्या की जा रही है।
- भारत की विदेश नीति उसकी संप्रभुता एवं राष्ट्रीय हितों का प्रतिबिंब है। इसे वैश्विक क्षेत्र में भारत के हितों की रक्षा एवं संवर्धन के लिए तैयार किया गया है।
भारत की विदेश नीति का विकास
- प्रारंभिक वर्ष: गुटनिरपेक्षता और शीत युद्ध की गतिशीलता भारत द्वारा सह-स्थापित गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का उद्देश्य संप्रभुता बनाए रखना तथा अमेरिका एवं सोवियत संघ के बीच वैचारिक संघर्षों में उलझने से बचना था।
- यह इसकी विदेश नीति का आधार बन गया, जिसमें शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, उपनिवेशवाद-विरोध एवं राष्ट्रों के बीच आपसी सम्मान पर बल दिया गया।
- शीत युद्ध के बाद के समायोजन: भारत ने आर्थिक चुनौतियों का सामना किया और प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में उदारीकरण सुधारों की शुरुआत की।
- इसमें व्यावहारिक कूटनीति की ओर बदलाव देखा गया, जिसका ध्यान आर्थिक विकास एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकरण पर केंद्रित था।
- अमेरिका के साथ संबंधों में सुधार हुआ और भारत ने क्षेत्रीय एवं वैश्विक संस्थाओं के साथ अधिक सक्रियता से जुड़ना प्रारंभ कर दिया।
- रणनीतिक साझेदारी एवं क्षेत्रीय फोकस: 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक के प्रारंभ में रणनीतिक साझेदारियों का उदय हुआ।
- 1998 में भारत ने अपनी सामरिक स्वायत्तता का दावा करते हुए परमाणु परीक्षण किया।
- प्रारंभिक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद, भारत 2008 में अमेरिका के साथ एक ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौता करने में कामयाब रहा, जो द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण पहल सिद्ध हुआ।
- समकालीन युग: बहु-संरेखण एवं वैश्विक महत्वाकांक्षाएँ: यह रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए प्रमुख शक्तियों के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंध बनाने का प्रयास करता है।
- भारत की विदेश नीति जलवायु परिवर्तन,आतंकवाद एवं साइबर सुरक्षा जैसी वैश्विक चुनौतियों से भी निपटती है।
प्रमुख संबंध – संयुक्त राज्य अमेरिका: भारत-अमेरिका संबंध काफी मजबूत हुए हैं, जिनकी विशेषता रक्षा, व्यापार एवं प्रौद्योगिकी में सहयोग है। 1. अमेरिका, जापान एवं ऑस्ट्रेलिया को सम्मिलित करते हुए क्वाड गठबंधन, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति भारत की रणनीतिक भूमिका को रेखांकित करता है। – चीन: चीन के साथ संबंध जटिल हैं, जिनमें सहयोग एवं प्रतिस्पर्धा दोनों ही सम्मिलित हैं, जैसा कि 2018 के वुहान शिखर सम्मेलन में प्रकट हुआ था। 1. क्षेत्र में सीमा विवाद एवं रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता चुनौतियाँ प्रस्तुत करती हैं, लेकिन आर्थिक संबंध महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं। – रूस: ऐतिहासिक रूप से एक प्रमुख सहयोगी, रूस एक महत्त्वपूर्ण साझेदार बना हुआ है, विशेषकर रक्षा के मामले में। हालाँकि, अमेरिका एवं अन्य पश्चिमी देशों के साथ भारत के बढ़ते संबंधों ने इस रिश्ते में नई गतिशीलता प्रदान की है। – यूरोपीय संघ: भारत एवं यूरोपीय संघ के बीच मजबूत आर्थिक और रणनीतिक हित हैं। भारत-यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ समझौते जैसे हालिया समझौते इस साझेदारी की गहराई को प्रकट करते हैं I |
प्रमुख स्तंभ: विदेश नीति के लिए भारत की रणनीति
- बहुपक्षीय दृष्टिकोण की अपेक्षा द्विपक्षीय दृष्टिकोण: भारत को बहुपक्षीय ढाँचे की अपेक्षा द्विपक्षीय संबंधों को प्राथमिकता देने की परामर्श दिया जाता है।
- यह अधिक अनुकूलित एवं प्रभावी साझेदारी की अनुमति देता है, जो भारत के रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- भारत का निकटतम पड़ोस प्राथमिकता बना हुआ है। सार्क और बिम्सटेक जैसी पहलों तथा आसियान के साथ सहभागिता के माध्यम से दक्षिण एशियाई देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना, लुक ईस्ट नीति (बाद में एक्ट ईस्ट नीति) क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा दे सकती है।
- सामरिक स्वायत्तता: सामरिक स्वायत्तता बनाए रखना भारत की विदेश नीति का केंद्रीय तत्व है।
- यह भारत को इस क्षेत्र में, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी प्रभुत्व के प्रतिसंतुलन के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाता है।
- प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों में संतुलन: संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और रूस जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों का प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है।
- भारत को चीन और रूस के प्रति संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखते हुए अमेरिका के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी जारी रखनी चाहिए। इसमें संवाद में शामिल होना, बहुपक्षीय मंचों में भाग लेना तथा अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का लाभ उठाना शामिल है।
- चीनी आधिपत्य के विरुद्ध निवारण: चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों के साथ साझेदारी को मजबूत करना आवश्यक है।
- ये राष्ट्र भारत की सामरिक स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं तथा क्षेत्रीय स्थिरता में साझा हित रखते हैं।
- बहुपक्षीय सहभागिता: संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय संगठनों में सक्रिय भागीदारी वैश्विक मुद्दों पर भारत की आवाज को बढ़ा सकती है।
- समकालीन वास्तविकताओं को प्रतिबिम्बित करने के लिए इन संस्थाओं में सुधार का समर्थन करना भी एक रणनीतिक प्राथमिकता हो सकती है।
- प्रवासी सहभागिता: विश्व भर में फैले भारतीय प्रवासी भारत के हितों के राजदूत के रूप में कार्य कर सकते हैं तथा इसकी आर्थिक और सांस्कृतिक पहुँच में योगदान दे सकते हैं।
भविष्य के लिए भारत की विदेश नीति की अन्य प्रमुख रणनीतियाँ
- आर्थिक कूटनीति: 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य के साथ, भारत अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि को बढ़ाने के लिए अपनी आर्थिक वृद्धि का लाभ उठा रहा है।
- इसमें व्यापार को बढ़ावा देना, विदेशी निवेश को आकर्षित करना और G-20 जैसे वैश्विक आर्थिक मंचों में भागीदारी करना शामिल है, जिससे भारत की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिल सकता है।
- तकनीकी और डिजिटल कूटनीति: वैश्विक साझेदारों के साथ साइबर सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल बुनियादी ढाँचे पर सहयोग करने से भारत की तकनीकी क्षमताओं में वृद्धि हो सकती है तथा इसकी डिजिटल सीमाओं को सुरक्षित किया जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन और सतत विकास: अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौतों और पेरिस समझौते जैसी पहलों में सक्रिय भागीदारी से भारत की वैश्विक छवि एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में बढ़ सकती है।
- इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहलों का लाभ उठाकर भारत सतत् विकास में अग्रणी बन सकता है।
- सांस्कृतिक और सॉफ्ट पावर कूटनीति: भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और सॉफ्ट पावर का लाभ उठाकर इसके वैश्विक प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शैक्षिक सहयोग और पर्यटन को बढ़ावा देने से सकारात्मक धारणाएँ निर्मित हो सकती हैं तथा राजनयिक संबंध मजबूत हो सकते हैं।
- मानवीय एवं विकास सहायता: जरूरतमंद देशों को मानवीय सहायता एवं विकास सहायता प्रदान करने से भारत की वैश्विक स्थिति में सुधार हो सकता है।
- इसमें आपदा राहत, स्वास्थ्य देखभाल सहायता और क्षमता निर्माण पहल शामिल हैं।
चुनौतियाँ और जटिलताएँ
- रणनीतिक स्वायत्तता बनाम. गठबंधन निर्माण: भारत का लक्ष्य मजबूत द्विपक्षीय संबंध बनाते हुए अपनी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखना है।
- यह संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत अमेरिका, रूस और अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ अपने संबंधों को प्रबंधित करते हुए चीनी प्रभाव का मुकाबला करना चाहता है।
- क्षेत्रीय गतिशीलता: दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के साथ भारत के संबंध जटिल बने हुए हैं और हमेशा इसकी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप नहीं होते हैं।
- बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव में हाल के राजनीतिक परिवर्तन और चीन के साथ चल रहे तनाव जैसी चुनौतियाँ।
- चीन के साथ विश्वास पुनर्स्थापना तथा पाकिस्तान और अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए भारत के प्रयास महत्त्वपूर्ण हैं।
- सुरक्षा चिंताएँ: साइबर सुरक्षा खतरों और समुद्री सुरक्षा सहित सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करना प्राथमिकता है।
- प्रमुख साझेदारों के साथ भारत का रक्षा सहयोग तथा क्षेत्रीय सुरक्षा ढाँचे में इसकी भूमिका इसकी विदेश नीति के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।
- अमेरिकी संबंध: यद्यपि अमेरिका एक प्रमुख साझेदार है, लेकिन संघर्षों में सहयोगियों से पक्ष लेने की उसकी अपेक्षाएं भारत के स्वतंत्र दृष्टिकोण को चुनौती दे सकती हैं।
- रूस की भूमिका: भारत और चीन को पास लाने के रूस के प्रयासों से दोनों देशों के साथ संतुलित संबंधों की भारत की इच्छा जटिल हो जाती है।
निष्कर्ष
- 21वीं सदी में भारत की विदेश नीति के लिए एक भव्य रणनीति तैयार करने में ऐतिहासिक ज्ञान, रणनीतिक स्वायत्तता और विकासशील भू-राजनीतिक गतिशीलता के जटिल परिदृश्य को समझना शामिल है।
- द्विपक्षीय संबंधों को प्राथमिकता देकर, रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखकर और क्षेत्रीय आधिपत्य का मुकाबला करके, भारत एक अग्रणी वैश्विक शक्ति बनने की दिशा में मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य, आर्थिक वास्तविकताओं और भारत के अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए, 21वीं सदी के लिए भारत की विदेश नीति के प्रमुख तत्वों पर चर्चा कीजिए। |
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