भारत का विनिर्माण क्षेत्र: चुनौतियाँ, और अवसर

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

सन्दर्भ

  • हाल ही में, 2022-23 के लिए उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) जारी किया गया, जिसमें उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) योजना प्रोत्साहनों और क्षेत्रीय प्रदर्शन के बीच सकारात्मक सहसंबंध को दर्शाया गया है, जो विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने एवं भारत को एक संभावित वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण रहा है।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र की वर्तमान स्थिति

  • विनिर्माण क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद में 17% और 27.3 मिलियन से अधिक श्रमिकों के साथ देश की आर्थिक वृद्धि में एक अभिन्न स्तंभ के रूप में उभर रहा है।
  • विकास और प्रदर्शन: 2022-23 के लिए उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र ने उत्पादन में 21.5% की मजबूत वृद्धि दर दर्ज की, जिसमें सकल मूल्य वर्धित (GVA) वृद्धि 7.3% रही।
    • बुनियादी धातु विनिर्माण, कोक और परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्य उत्पाद, रसायन एवं मोटर वाहन जैसे प्रमुख क्षेत्रों ने सामूहिक रूप से कुल विनिर्माण उत्पादन में 58% का योगदान दिया।
  • रोज़गार सृजन: विनिर्माण क्षेत्र भी रोज़गार का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है, जिसने 2022-23 में लगभग 22 लाख रोजगार सृजित किए हैं।
    • यह महामारी-पूर्व स्तरों को पार कर गया है, जो स्थिर सुधार और विस्तार का संकेत देता है।
    • महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख राज्य इस क्षेत्र के जीवीए और रोज़गार में अग्रणी योगदानकर्ता रहे हैं।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): भारत के विनिर्माण क्षेत्र में FDI 165.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है, जो उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के कारण पिछले दशक की तुलना में 69% की वृद्धि है।
    • पिछले पांच वर्षों में कुल FDI प्रवाह 383.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।

भविष्य की संभावनाएँ

  • राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (NMP) के अनुसार, भारत का लक्ष्य 2025 तक अर्थव्यवस्था के उत्पादन का 25% विनिर्माण से प्राप्त करना है। 
  • भारत में 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के सामान निर्यात करने की क्षमता है और यह एक प्रमुख वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की राह पर है। 
  • भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के अनुमानों के अनुसार, घरेलू विनिर्माण क्षमताओं और घरेलू मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयास जारी रहने पर GVA में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी वर्तमान 17% से बढ़कर 2030-31 तक 25% से अधिक और 2047-48 तक 27% तक पहुँचने की क्षमता है।
    • यह 2047 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को एक विकसित अर्थव्यवस्था में बदलने में सहायता करता है।
उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI)
– यह सर्वेक्षण सांख्यिकी अधिनियम, 1953 के तहत 1959 से किया जा रहा है। 
1. वर्तमान में, यह सर्वेक्षण सांख्यिकी संग्रहण अधिनियम, 2008, जिसे 2017 में संशोधित किया गया था, तथा इसके अंतर्गत 2011 में बनाए गए नियमों के अंतर्गत किया जा रहा है।
– यह भारत के औद्योगिक परिदृश्य का निष्पक्ष मूल्यांकन करने के लिए पंजीकृत विनिर्माण क्षेत्र की महत्वपूर्ण विशेषताओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है। 
– इसमें कारखाना अधिनियम, 1948 के तहत पंजीकृत कारखाने और बीड़ी एवं सिगार श्रमिक (रोजगार की शर्तें) अधिनियम, 1966 के तहत प्रतिष्ठान शामिल हैं। 
– इसमें केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के साथ पंजीकृत नहीं होने वाली बिजली के उत्पादन, पारेषण एवं वितरण में लगे सभी बिजली उपक्रम भी शामिल हैं।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ और चिंताएँ

  • बुनियादी ढांचे की कमी: इसमें न केवल सड़क, बंदरगाह और बिजली आपूर्ति जैसे भौतिक बुनियादी ढांचे शामिल हैं, बल्कि डिजिटल बुनियादी ढांचा भी शामिल है।
    • खराब कनेक्टिविटी एवं अविश्वसनीय बिजली आपूर्ति परिचालन लागत को बढ़ाती है और दक्षता को कम करती है।
  • कुशल श्रमिकों की कमी: जबकि भारत में एक बड़ा कार्यबल है, आधुनिक विनिर्माण प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक कौशल में एक महत्वपूर्ण अंतर है।
    • यह आंशिक रूप से अपर्याप्त व्यावसायिक प्रशिक्षण और शिक्षा प्रणालियों के कारण है।
  • विनियामक बाधाएँ: भूमि अधिग्रहण कानून, श्रम कानून और पर्यावरण नियम बोझिल एवं समय लेने वाले हो सकते हैं, निवेश को रोकते हैं और परियोजना कार्यान्वयन को धीमा कर देते हैं।
  • वित्त तक पहुँच: छोटे और मध्यम आकार के उद्यम (SMEs), जो विनिर्माण क्षेत्र की रीढ़ हैं, प्रायः वित्त तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करते हैं।
    • उच्च ब्याज दरें, कठोर संपार्श्विक आवश्यकताएँ और लंबी स्वीकृति प्रक्रियाएँ इन व्यवसायों के लिए विस्तार एवं आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक धन सुरक्षित करना चुनौतीपूर्ण बनाती हैं।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारत के विनिर्माण क्षेत्र को चीन जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, जिनके पास अधिक विकसित विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र हैं।
    • इन देशों में कम उत्पादन लागत और बेहतर बुनियादी ढाँचा भारतीय निर्माताओं के लिए वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल बनाता है। 
  • नीति कार्यान्वयन: जबकि सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ और उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी कई पहल की हैं, इन नीतियों का कार्यान्वयन असंगत रहा है।
    • नौकरशाही की देरी और विभिन्न सरकारी विभागों के बीच समन्वय की कमी के कारण प्रायः परिणाम कमतर होते हैं। 
  • प्रौद्योगिकी अपनाना: स्वचालन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT) जैसी उन्नत विनिर्माण तकनीकों को अपनाना भारत में अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है।
    •  अनुसंधान और विकास (R&D) में सीमित निवेश और इन तकनीकों के लाभों के बारे में जागरूकता की कमी उनके व्यापक रूप से अपनाए जाने में बाधा डालती है। 
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन और संसाधनों के सतत उपयोग जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण चिंताएँ हैं जिन्हें इस क्षेत्र की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए संबोधित करने की आवश्यकता है।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र में सतत विकास के लिए प्रमुख सिफारिशें

  • PLI के दायरे का विस्तार: PLI योजना इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में विनिर्माण को बढ़ावा देने में सहायक रही है।
    • परिधान, चमड़ा, जूते और फर्नीचर जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों के साथ-साथ एयरोस्पेस, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तथा रखरखाव, मरम्मत एवं ओवरहाल (MRO) जैसे उभरते उद्योगों को PLI प्रोत्साहन प्रदान करने से विकास के नए आयाम खुल सकते हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, उच्च आयात निर्भरता वाले लेकिन अप्रयुक्त घरेलू क्षमता वाले क्षेत्रों, जैसे पूंजीगत सामान, को भी PLI प्रोत्साहन के लिए विचार किया जाना चाहिए। 
  • महिला कार्यबल भागीदारी: महिला कार्यबल भागीदारी को बढ़ाना विनिर्माण विकास को बढ़ावा देने का एक अप्रयुक्त अवसर है।
    • विश्व बैंक के नवीनतम दक्षिण एशिया विकास अपडेट का अनुमान है कि यदि अधिक महिलाएं कार्यबल में शामिल होती हैं तो भारत का विनिर्माण उत्पादन 9% बढ़ सकता है।
  •  MSMEs  पर ध्यान केंद्रित करना: MSMEs  भारत के विनिर्माण सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 45% का योगदान करते हैं और लगभग 60 मिलियन लोगों को रोजगार देते हैं।
    • MSMEs को समायोजित करने के लिए पूंजी निवेश सीमा को कम करके और उत्पादन लक्ष्यों को कम करके PLI प्रोत्साहनों को तैयार करना, इन उद्यमों को मूल्य श्रृंखलाओं में अधिक प्रभावी ढंग से विस्तार करने, नवाचार करने एवं एकीकृत करने में सशक्त बनाएगा। 
  • संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान: इनमें बुनियादी ढांचे में सुधार, कौशल विकास को बढ़ाना और व्यापार करने में आसानी सुनिश्चित करना शामिल है।
    • विनिर्माण के विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए मजबूत सुधार आवश्यक हैं। 
    • परिवहन नेटवर्क, गोदाम एवं बंदरगाह सुविधाओं में निवेश दक्षता बढ़ा सकता है और माल की ढुलाई के समय तथा लागत को कम कर सकता है। 
  • कौशल विकास और श्रम सुधार: कौशल भारत मिशन जैसी पहल का उद्देश्य आधुनिक विनिर्माण की मांगों को पूरा करने के लिए कार्यबल को आवश्यक कौशल से लैस करना है। 
  • सतत प्रथाओं को बढ़ावा देना: हरित विनिर्माण प्रथाओं के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
    • ऊर्जा दक्षता, अपशिष्ट में कमी और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने वाली नीतियां दीर्घकालिक स्थिरता लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता कर सकती हैं।
  •  प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को प्रोत्साहित करना: अनुकूल नीतियों एवं स्थिर कारोबारी वातावरण के माध्यम से FDI को आकर्षित करने से पूंजी, प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता आ सकती है।
    •  यह वैश्विक स्तर पर भारत के विनिर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ा सकता है।
  • डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना: डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने से दक्षता और उत्पादकता में सुधार हो सकता है।
    • डिजिटल इंडिया पहल का उद्देश्य इन प्रौद्योगिकियों को विनिर्माण प्रक्रिया में एकीकृत करना है।

आगे की राह

  • विनिर्माण क्षेत्र का पुनरुद्धार PLI योजना जैसी रणनीतिक नीतिगत पहलों की प्रभावशीलता का प्रमाण है।
  • इसकी क्षमता का पूरा लाभ उठाने के लिए मजबूत सुधारों की आवश्यकता स्पष्ट है। श्रम-प्रधान क्षेत्रों के साथ-साथ एयरोस्पेस और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी जैसे उभरते उद्योगों को PLI प्रोत्साहन देने से विकास के नए आयाम खुल सकते हैं।
  • इसके अतिरिक्त, पूंजीगत वस्तुओं जैसे अप्रयुक्त घरेलू क्षमताओं वाले क्षेत्रों में उच्च आयात निर्भरता को संबोधित करना महत्वपूर्ण है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने के अपने प्रयास में भारत के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा करें। इन चुनौतियों पर नियंत्रण पाने और इन अवसरों का लाभ उठाने के प्रयासों पर प्रकाश डालें?

Source: TH