पाठ्यक्रम: GS2/ अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संदर्भ
- हाल ही में दुबई में भारतीय विदेश सचिव और तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री के बीच हुई बैठक भारत और तालिबान के मध्य वार्ता के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि का प्रतीक है।
ऐतिहासिक संदर्भ और रणनीतिक पुनर्संरेखण
- भारत की पारंपरिक नीति:
- ऐतिहासिक रूप से, भारत ने तालिबान का विरोध किया है तथा तालिबान विरोधी ताकतों और काबुल में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार का समर्थन किया है।
- अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत द्वारा 3 बिलियन डॉलर से अधिक के निवेश में बुनियादी ढांचा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा परियोजनाएं शामिल थीं।
- 2021 तालिबान के अधिग्रहण के पश्चात् परिवर्तन:
- अगस्त 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी से शुरू में ऐसा लग रहा था कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान का प्रभाव मजबूत होगा, लेकिन बाद में काबुल और रावलपिंडी के मध्य तनाव ने भारत को फिर से जुड़ने का अवसर प्रदान किया।
- भारत द्वारा 2022 में काबुल स्थित अपने दूतावास में एक तकनीकी टीम भेजना, उसकी उपस्थिति को पुनः स्थापित करने की दिशा में एक सतर्क कदम है।
भारत-तालिबान संबंधों में हालिया घटनाक्रम
- उन्नत संवाद: दुबई में हाल ही में हुई बैठक 2021 के पश्चात् से तालिबान के साथ भारत की उच्चतम-स्तरीय भागीदारी का प्रतिनिधित्व करती है, जो गैर-मान्यता वाले दृष्टिकोण से व्यावहारिक संवाद की ओर बदलाव को उजागर करती है।
- चर्चा में मानवीय सहायता, व्यापार सुविधा और क्षेत्रीय स्थिरता शामिल थे।
- भू-राजनीतिक वास्तविकता: तालिबान के विवादास्पद शासन के बावजूद, भारत काबुल में सत्ता में जो भी सरकार हो, उसके साथ बातचीत करने की आवश्यकता को समझता है। यह व्यावहारिक दृष्टिकोण उपमहाद्वीप की स्थायी भू-राजनीतिक वास्तविकता से प्रेरित है।
- आर्थिक एवं व्यापारिक संबंध: अफगानिस्तान के साथ राजनीतिक एवं आर्थिक संबंधों को मजबूत करना प्राथमिकता है।
- चर्चा में व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए चाबहार बंदरगाह के उपयोग पर भी चर्चा की गई।
- चाबहार बंदरगाह भारत को पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए एक महत्वपूर्ण पारगमन मार्ग प्रदान करता है।
- क्षेत्रीय प्रभाव को संतुलित करना: ऐतिहासिक रूप से, अफगानिस्तान पाकिस्तान के दबाव को संतुलित करने के लिए भारत की ओर देखता रहा है।
- तालिबान की सत्ता में वापसी को शुरू में पाकिस्तान के लिए एक लाभ के रूप में देखा गया था, लेकिन काबुल और रावलपिंडी के बीच तनाव अभी भी बना हुआ है।
- मानवीय सहायता: भारत ने अफगानिस्तान को आवश्यक दवाएं, कोविड एवं पोलियो के टीके, तपेदिक रोधी दवाएं, सर्जिकल आइटम, नशामुक्ति स्वच्छता किट, कंबल, सर्दियों के कपड़े, कीटनाशक, छात्रों के लिए स्टेशनरी के साथ-साथ गेहूं की बड़ी खेप भी भेजी है।
- यूरोपीय संघ ने अफगानिस्तान में मानवीय सहायता और स्थिरता सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया है, जो स्थिर एवं शांतिपूर्ण अफगानिस्तान में भारत के हितों के अनुरूप है।
- शैक्षिक पहल: अगस्त 2021 से, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) ने 600 अफगान लड़कियों सहित 3,000 से अधिक अफगान छात्रों को प्रवेश दिया है।
- इसके अतिरिक्त, अफगानिस्तान में रहने वाले छात्रों को सुलभ शैक्षिक अवसर प्रदान करने के लिए एक ऑनलाइन छात्रवृत्ति योजना शुरू की गई है।
चिंताएँ और चुनौतियाँ
- मुख्य चिंताएँ: तालिबान की घरेलू नीतियाँ, विशेषकर महिलाओं पर दमन और बुनियादी अधिकारों से वंचित करना, अत्यंत चिंताजनक हैं। शासन ने महिलाओं की शिक्षा एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कठोर प्रतिबंध लगा दिए हैं।
- यह भारत के लिए ऐसी व्यवस्था के साथ जुड़ने में नैतिक और मोरल प्रश्न उठाता है। भारत की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह ऐसे दमनकारी शासन के विरुद्ध खड़ा हो तथा अफगान लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता का समर्थन करे।
- सुरक्षा एवं स्थिरता संबंधी चिंताएं: पाकिस्तान के साथ तालिबान के संबंध तथा अफगानिस्तान को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए आधार के रूप में उपयोग किए जाने की संभावना, महत्वपूर्ण सुरक्षा चिंताएं बनी हुई हैं।
- तालिबान के साथ भारत का जुड़ाव आंशिक रूप से क्षेत्र में अपनी सुरक्षा एवं स्थिरता सुनिश्चित करने की आवश्यकता से प्रेरित है।
- हालाँकि, अफगानिस्तान में तालिबान शासन ने आश्वासन दिया है कि इससे भारत सहित किसी भी देश को कोई खतरा नहीं है। यह क्षेत्रीय स्थिरता और भारत के सुरक्षा हितों के लिए महत्वपूर्ण है।
- पश्चिमी अभिनेताओं की भूमिका और प्रभाव:
- संयुक्त राज्य अमेरिका की वापसी से क्षेत्र में शक्ति गतिशीलता में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है, जिसके कारण एक शून्यता उत्पन्न हो गई है, जिसे भारत सहित कई क्षेत्रीय शक्तियां भरने का प्रयास कर रही हैं। अमेरिका आतंकवाद-रोधी और मानवीय मुद्दों पर तालिबान के साथ बातचीत जारी रखे हुए है, जो अप्रत्यक्ष रूप से समूह के प्रति भारत के दृष्टिकोण को प्रभावित करता है।
- रूस और चीन जैसे अन्य क्षेत्रीय देशों ने अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए तालिबान के साथ अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। इसका भारत पर भी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि वह इन प्रमुख शक्तियों के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ा रहा है।
- पाकिस्तान की रणनीतिक गहराई: पाकिस्तान लंबे समय से अपने पश्चिमी मोर्चे पर रणनीतिक गहराई चाहता रहा है, लेकिन तालिबान की वापसी से अस्थिरता बढ़ गई है।
- तालिबान द्वारा डूरंड रेखा (19वीं शताब्दी में स्थापित सीमा, जिसे तालिबान ‘काल्पनिक’ कहता है) को मान्यता देने से मना करना, (तालिबान इसे ‘काल्पनिक’ कहता है), बलूचिस्तान और पश्तून क्षेत्रों में उग्रवाद के तेज होने और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को इसके समर्थन ने स्थिति को अधिक जटिल बना दिया है।
- तालिबान के साथ पाकिस्तान के ऐतिहासिक संबंधों तथा अफगानिस्तान में उसके रणनीतिक हितों को देखते हुए, उसकी भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है। भारत के कूटनीतिक प्रयासों को प्रायः क्षेत्र में पाकिस्तान के प्रभाव के कारण बाधा पहुंचती है।
भारत का दृष्टिकोण और सिफारिशें
- भारत की ‘एक्ट वेस्ट’ नीति: अफगानिस्तान में तालिबान शासन के प्रति भारत के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है। इसका उद्देश्य पश्चिम एशियाई देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना है, तथा अब इस क्षेत्र में भारत के सामरिक हितों की रक्षा के लिए तालिबान के साथ बातचीत करना भी इसमें शामिल है।
- मूल मूल्यों को बनाए रखना: भारत को तालिबान के साथ अपने संबंधों में मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखना जारी रखना चाहिए। इसमें अफगानिस्तान में महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का समर्थन करना भी शामिल है।
- सामरिक कूटनीति: तालिबान के साथ बातचीत करते समय, भारत को अपने कूटनीतिक चैनलों का लाभ उठाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अफगानिस्तान आतंकवाद का प्रजनन स्थल न बने, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है।
- मानवीय सहायता: भारत को अफगान लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करना जारी रखना चाहिए, तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सहायता तालिबान शासन द्वारा शोषण किए बिना जरूरतमंदों तक पहुंचे।
- क्षेत्रीय सहयोग: ईरान एवं मध्य एशियाई देशों सहित अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ संबंधों को मजबूत करने से भारत को अफगानिस्तान में पाकिस्तान और तालिबान के प्रभाव को संतुलित करने में सहायता मिल सकती है।
निष्कर्ष
- भारत-तालिबान संबंधों की उभरती गतिशीलता ऐतिहासिक शत्रुता, रणनीतिक हितों एवं पश्चिमी और क्षेत्रीय अभिनेताओं के प्रभाव के जटिल अंतर्संबंध द्वारा आकार लेती है।
- तालिबान के साथ भारत की सतर्क भागीदारी क्षेत्र में व्यापक भू-राजनीतिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए अपने निवेश एवं सुरक्षा हितों की रक्षा करने की आवश्यकता को दर्शाती है।
- पश्चिमी अभिनेताओं(Western actors), विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ की भूमिका भारत के दृष्टिकोण को प्रभावित करती रहती है, क्योंकि वे विभिन्न मोर्चों पर तालिबान के साथ जुड़ते हैं।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद भारत-तालिबान संबंधों की उभरती गतिशीलता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए, तथा इस जटिल अंतर्संबंध को आकार देने में पश्चिमी अभिनेताओं की भूमिका और प्रभाव की जांच कीजिए। |
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