भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): संबंधित चिंताएं और प्रभावशीलता में वृद्धि

पाठ्यक्रम: GS3/खाद्य सुरक्षा; गरीबी और भूख से संबंधित मुद्दे

सन्दर्भ

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के महान उद्देश्यों के बावजूद, यह गंभीर रिसाव और भ्रष्टाचार से ग्रस्त है, जिससे इसकी प्रभावशीलता और लाखों भारतीयों की खाद्य सुरक्षा कमजोर हो रही है।

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली

  • संक्षिप्त विवरण: 
    • यह देश के खाद्य सुरक्षा ढांचे का एक महत्वपूर्ण घटक है, जिसका उद्देश्य गरीबों को सब्सिडी वाले खाद्यान्न उपलब्ध कराना है। 
    • खाद्यान्न की कमी की चुनौतियों का समाधान करने और आवश्यक वस्तुओं का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए इसे दशकों में विकसित किया गया है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ और विकास:
    • PDS की स्थापना युद्ध के बीच की अवधि में की गई थी, लेकिन 1960 के दशक में खाद्यान्नों की भारी कमी के कारण इसे प्रमुखता मिली।
    •  इसे मुख्य रूप से शहरी अभाव वाले क्षेत्रों में किफायती कीमतों पर खाद्यान्न वितरित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। 
    • समय के साथ, 1992 में शुरू की गई संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (RPDS) जैसी पहलों के माध्यम से PDS का दायरा ग्रामीण क्षेत्रों, विशेष रूप से उच्च गरीबी दर वाले क्षेत्रों को शामिल करने के लिए विस्तारित किया गया।
  • संरचना और कार्यप्रणाली:
    • PDS केंद्र और राज्य सरकारों की संयुक्त जिम्मेदारी के तहत कार्य करता है।
    • केंद्र सरकार, भारतीय खाद्य निगम (FCI) के माध्यम से खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण, परिवहन और थोक आवंटन का कार्य संभालती है।
    • राज्य सरकारें उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के नेटवर्क के माध्यम से पात्र परिवारों को ये अनाज वितरित करने के लिए जिम्मेदार हैं।
    • वितरित की जाने वाली वस्तुओं में गेहूं, चावल, चीनी और केरोसिन शामिल हैं, कुछ राज्य दालें एवं खाद्य तेल जैसी अतिरिक्त वस्तुएँ भी प्रदान करते हैं।
    • विश्व बैंक के अनुसार, PDS पाँच लाख से अधिक उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से लगभग 800 मिलियन लोगों को सब्सिडी वाला अनाज प्रदान करता है।
      • यह गरीब परिवारों को खाद्य मूल्य आघातों से बचाने में सहायता करता है और आर्थिक संकट के समय गरीबी को कम करता है।

वर्तमान सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित मुख्य मुद्दे

  • उच्च रिसाव: हाल के आंकड़ों के अनुसार, लाभार्थियों के लिए लक्षित लगभग 28% खाद्यान्न उन तक नहीं पहुँच पाता है, जो एक महत्वपूर्ण वित्तीय हानि है, जिसका अनुमान लगभग ₹69,108 करोड़ प्रतिवर्ष है, और भूख एवं कुपोषण को कम करने के कार्यक्रम के प्राथमिक लक्ष्य को प्राप्त करने में विफलता है।
    • प्रणाली में रिसाव के लिए उजागर किए गए कारण हैं भ्रष्टाचार एवं नौकरशाही की अक्षमताएँ; अपर्याप्त निगरानी तथा पर्यवेक्षण; खराब बुनियादी ढाँचा; और पहचान एवं लक्ष्यीकरण के मुद्दे।
  • अक्षमताओं के साथ उच्च समावेशन: PDS वर्तमान में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) जैसी योजनाओं के तहत लगभग 57% जनसंख्या को संयोजित करती है। हालाँकि, प्रणालीगत अक्षमताओं के कारण खाद्यान्न का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाता है।
  • खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: PDS में रिसाव से लक्षित लाभार्थियों के लिए सब्सिडी वाले खाद्यान्न की उपलब्धता कम हो जाती है, जिससे आर्थिक रूप से वंचित लोगों में भूख और कुपोषण बढ़ जाता है।
    • हाल के आंकड़ों के अनुसार, जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा अभी भी गरीबी रेखा से नीचे रहता है, और कई परिवार अपनी बुनियादी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हैं। 
  • पोषण सुरक्षा: वर्तमान व्यवस्था पोषण सुरक्षा को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करती है, विशेषकर पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए। सिर्फ़ मुफ़्त चावल और गेहूँ ही जनसँख्या की विविध पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त हैं। 
  • भ्रष्टाचार और अक्षमता: रिसाव को रोकने के प्रयासों में उचित मूल्य की दुकानों (FPS) पर पॉइंट-ऑफ़-सेल (PoS) सिस्टम की शुरुआत और आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण का उपयोग शामिल है।
    • हालाँकि इन उपायों से कुछ हद तक रिसाव कम हुई है, लेकिन समस्या बनी हुई है, विशेषकर उन राज्यों में जहाँ भ्रष्टाचार और अक्षमता की दर अधिक है।

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित प्रमुख सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA): 2013 में अधिनियमित, NFSA का उद्देश्य लगभग 75% ग्रामीण जनसँख्या और 50% शहरी जनसँख्या को रियायती खाद्यान्न उपलब्ध कराना है।
    • इसमें 16 करोड़ महिलाओं सहित लगभग 81 करोड़ लाभार्थी शामिल हैं, जो जनसँख्या के एक महत्वपूर्ण हिस्से के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
    • इसने रिसाव को कम करने और PDS की दक्षता में सुधार करने में सहायता की है। उदाहरण के लिए, बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों ने सुधारों को जल्दी अपनाने के कारण PDS रिसाव में आकस्मिक कमी देखी है।
  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY): COVID-19 महामारी के दौरान शुरू की गई, PMGKAY लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न प्रदान करती है।
    • गरीबों के सामने आने वाली आर्थिक कठिनाइयों को कम करने के लिए इसे 1 जनवरी, 2024 से अतिरिक्त पाँच वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया है।
  • PM पोषण (पोषण शक्ति निर्माण) योजना: यह सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार लाने पर केंद्रित है।
    • इसका उद्देश्य पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराकर भूख से निपटना और शिक्षा को बढ़ावा देना है, जिससे वंचित छात्रों के बीच नियमित स्कूल उपस्थिति को बढ़ावा मिले।
  • अंत्योदय अन्न योजना (AAY): AAY समाज के सबसे कमजोर वर्गों को लक्षित करती है, जो सबसे गरीब लोगों को अत्यधिक सब्सिडी वाले खाद्यान्न उपलब्ध कराती है।
    • यह सुनिश्चित करती है कि सबसे वंचित परिवारों को आवश्यक खाद्य पदार्थों तक पहुँच प्राप्त हो।

प्रमुख सुधार और भविष्य की दिशाएँ

  • तकनीकी एकीकरण:
    • बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण: रिसाव को कम करने के लिए FPS पर आधार-आधारित बायोमेट्रिक्स का उपयोग करें।
    • PoS मशीनें: पारदर्शिता के लिए PoS मशीन के उपयोग का विस्तार करें।
  • लक्षित सब्सिडी:
    • केवल सबसे कमजोर लोगों को ही मुफ्त भोजन उपलब्ध कराएं, अन्य लोगों से नाममात्र शुल्क लें।
  • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT):
    • नकद हस्तांतरण: लचीलेपन के लिए वस्तु के बजाय नकद हस्तांतरण की ओर प्रवृति करें।
    • खाद्य वाउचर: यह सुनिश्चित करने के लिए वाउचर का उपयोग करें कि सब्सिडी का उपयोग भोजन के लिए किया जाए।
  • लाभार्थी कवरेज पर पुनर्विचार:
    • अत्यंत गरीबी रेखा से ऊपर रहने वालों से MSP का आधा मूल्य लिया जाएगा, जिससे लागत कम हो जाएगी।
  • कृषि में निवेश:
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली की बचत का उपयोग ग्रामीण बुनियादी ढांचे और संधारणीय कृषि में सुधार के लिए करें।
  • पोषण सुरक्षा बढ़ाना:
    • PDS मदों में विविधता लाकर उनमें दालें, बाजरा और पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल करें।
  • आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन:
    • इन्वेंट्री प्रबंधन और वास्तविक समय ट्रैकिंग के लिए तकनीक का उपयोग करें। 
    • भ्रष्टाचार को कम करने के लिए एक समर्पित निरीक्षण टीम बनाएं।
  • नीति सुधार:
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार: सार्वजनिक वितरण प्रणाली को आवश्यकता-आधारित बनाएं और सब्सिडी रिसाव को कम करें। 
    • पोषण पर ध्यान: खाद्य और पोषण सुरक्षा दोनों पर ध्यान दें।

निष्कर्ष और आगे की राह

  • भविष्य को देखते हुए, यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह जनसँख्या की उभरती जरूरतों को पूरा करे, PDS में निरंतर सुधार की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का सुझाव है कि PDS प्रभावी रहा है, लेकिन यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) जैसे विकल्पों की खोज कम आय वाले परिवारों को अधिक कुशल सहायता प्रदान कर सकती है।
    •  हालांकि, समाज के कमजोर वर्गों पर प्रतिकूल प्रभाव से बचने के लिए ऐसे किसी भी परिवर्तन के लिए सावधानीपूर्वक योजना और मजबूत कार्यान्वयन की आवश्यकता होगी। 
  • रिसाव की लगातार समस्या को दूर करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि संसाधनों का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए, भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार करना आवश्यक है। सबसे सुभेद्य जनसँख्या को लक्षित करके और बचत को कृषि निवेश की ओर पुनर्निर्देशित करके, भारत खाद्य तथा पोषण सुरक्षा दोनों को बढ़ा सकता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। इस प्रणाली में व्याप्त रिसाव और अकुशलता के मुद्दों पर चर्चा करें।