विदेश मंत्रालय में सुधार की आवश्यकता

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • भारत की निरंतर आर्थिक वृद्धि, राजनीतिक स्थिरता एवं स्वतंत्र विदेश नीति ने देश को वैश्विक मंच पर एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित किया है। हालाँकि, इस स्थिति को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए विदेश मंत्रालय (MEA) में वर्तमान कमियों एवं अक्षमताओं को दूर करने के लिए महत्त्वपूर्ण सुधारों की आवश्यकता है।

विदेश मंत्रालय (MEA) का परिचय

  • स्थापना: 1947 में विदेश मंत्रालय और राष्ट्रमंडल संबंध मंत्रालय के रूप में गठित, 1948 में इसका नाम परिवर्तित करके विदेश मंत्रालय कर दिया गया।
  • उत्तरदायित्व:
    • विदेश नीति को आकार देना एवं अन्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखना।
    • विश्व भर में भारत के दूतावासों, उच्चायोगों और वाणिज्य दूतावासों की देखरेख करना।
    • अंतर्राष्ट्रीय विकास पर नज़र रखना और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा करना।
    • अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर वार्ता करना, व्यापार को बढ़ावा देना और सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ करना।
    • विदेश में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा करना और उनका कल्याण सुनिश्चित करना।

विदेश मंत्रालय के समक्ष चुनौतियाँ

  • सीमित संसाधन और बजट आवंटन: विदेश मंत्रालय का बजट निरंतर केंद्रीय बजट के 1% भाग से कम है, जिससे भारत के राजनयिक मिशनों पर भार बढ़ रहा है।
    • इसके विपरीत, चीन जैसे देश अपनी विदेश सेवाओं के लिए अत्यधिक बजट आवंटित करते हैं।
  • कर्मचारी और मानव संसाधन की कमी: भारतीय विदेश सेवा (IFS) में कर्मचारियों की भारी कमी है, लगभग 850 IFS अधिकारी 193 राजनयिक मिशनों का प्रबंधन करते हैं।
    • तुलनात्मक रूप से, अमेरिका में लगभग 14,500 विदेश सेवा अधिकारी, U.K. में 4,600, चीन में 4,000 से अधिक और रूस में 4,500 हैं।
    • हालाँकि IFS अधिकारियों की वार्षिक भर्ती बढ़कर 32-35 हो गई है, लेकिन यह अपर्याप्त है।
  • संरचनात्मक अक्षमताएँ: छोटे एवं खंडित (fragmented ) प्रभागों के कारण ज़िम्मेदारियाँ और अक्षमताएँ एक-दूसरे से अतिव्यापित (ओवरलैप) होती हैं।
  • उदाहरण के लिए: PAI प्रभाग (पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, ईरान) एवं मध्य यूरोप प्रभाग (तुर्की सम्मिलित हैं) ओवरलैपिंग और गलत तरीके से संचालित जनादेश प्रदर्शित करते हैं।
  • तकनीकी पिछड़ापन: राजनयिक और वाणिज्य दूतावास सेवाओं के लिए डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाने में भारत के प्रयास असंगत हैं, विशेषकर डिजिटल कूटनीति के युग में।
  • नौकरशाही जटिलताएँ: प्रक्रियागत बाधाओं के कारण विदेश मंत्रालय और अन्य मंत्रालयों के बीच समन्वय में प्रायः विलंब होती है।
  • क्षेत्रीय क्षमता बाधाएँ: अफ्रीका, लैटिन अमेरिका एवं दक्षिण पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में मिशन संसाधन और जनशक्ति की कमी से ग्रस्त हैं, जिससे रणनीतिक जुड़ाव में बाधा आ रही है।
  • आवास संबंधी चुनौतियाँ: घरेलू अधिकारियों के लिए सीमित आवास संसाधनों के कारण असंतोष, मनोबल में कमी और घरेलू पोस्टिंग के लिए प्रतिभा को आकर्षित करने में कठिनाई हो सकती है। यह असमानता उत्पादकता और संगठन के अन्दर निष्पक्षता की समग्र धारणा को प्रभावित कर सकती है।
  • रोटेशनल पोस्टिंग सिस्टम: रोटेशनल पोस्टिंग सिस्टम भाषा प्रशिक्षण को बाद के असाइनमेंट के साथ संरेखित नहीं करता है, जिससे अधिकारियों के भाषा कौशल का कम उपयोग होता है और प्रशिक्षण में निवेश पर रिटर्न कम हो जाता है।

विदेश मंत्रालय में हाल के प्रमुख सुधार और पहल

  • संरचनात्मक और प्रशासनिक सुधार:
    • नए प्रभाग: इंडो-पैसिफिक, साइबर डिप्लोमेसी और डेवलपमेंट पार्टनरशिप एडमिनिस्ट्रेशन (DPA) जैसे विशेष प्रभाग उभरती चुनौतियों का समाधान करते हैं।
    • एकीकृत दृष्टिकोण: रक्षा और वाणिज्य जैसे मंत्रालयों के साथ सहयोग से सुसंगत रणनीति सुनिश्चित होती है।
    • विस्तारित कैडर क्षमता: डोमेन विशेषज्ञों और तकनीकी विशेषज्ञों की पार्श्विक प्रविष्टि IFS को पूरक बनाती है।
  • नागरिक-केंद्रित सुधार:
    • पासपोर्ट सेवा केंद्र (PSK): पासपोर्ट सेवाओं में परिवर्तन, प्रसंस्करण समय में कमी और सुगमता में वृद्धि।
    • विदेश भवन: क्षेत्रीय कार्यालयों को समेकित करना, वाणिज्य दूतावास सेवाओं को सुव्यवस्थित करना।
    • मदद(MADAD) पोर्टल: विदेश में भारतीय नागरिकों के लिए कुशल शिकायत निवारण प्रदान करता है।

प्रवासी भारतीयों के साथ जुड़ाव को सुदृढ़ करना

  • प्रवासी भारतीय दिवस (PBD): प्रवासी भारतीयों के योगदान का जश्न मनाता है और प्रवासी मुद्दों पर संवाद को बढ़ावा देता है।
  • भारत को जानो कार्यक्रम (KIP): युवा प्रवासी सदस्यों के साथ सांस्कृतिक संबंध बनाता है।
  • OCI कार्ड संवर्द्धन: ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (OCI) कार्ड के लिए सुव्यवस्थित प्रक्रियाएँ।

आर्थिक कूटनीति और व्यापार विस्तार

  • FTA पर ध्यान केंद्रित करना: यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और अन्य के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर वार्ता करना।
  • आर्थिक कूटनीति प्रभाग: निवेश को बढ़ावा देता है और विदेशी बाजारों की खोज करने वाले व्यवसायों का समर्थन करता है।
  • विकास भागीदारी प्रशासन: विकासशील देशों में बुनियादी ढाँचे और क्षमता निर्माण परियोजनाओं को निधि प्रदान करता है।

क्षेत्रीय एवं सामरिक कूटनीति

  • एक्ट ईस्ट नीति: आसियान के साथ संबंधों को मजबूत करना तथा कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना जैसी कनेक्टिविटी परियोजनाएँ विकसित करना।
  • पड़ोसी प्रथम नीति: उच्च स्तरीय यात्राओं और विकास परियोजनाओं के माध्यम से नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ जुड़ाव को गहरा करना।
  • क्वाड और हिंद-प्रशांत रणनीति: यह भारत को स्वतंत्र और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करता है।

संकट प्रबंधन और मानवीय सहायता

  • ऑपरेशन गंगा: रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान यूक्रेन से हजारों भारतीय छात्रों को निकाला गया।
  • ऑपरेशन समुद्र सेतु और वंदे भारत मिशन: कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय नागरिकों को वापस लाया गया।
  • मानवीय सहायता: तुर्की (भूकंप सहायता) और अफगानिस्तान (खाद्य और दवा) जैसे देशों को राहत प्रदान की गई।

विदेश मंत्रालय में सुझाए गए सुधार

  • बजटीय सहायता में वृद्धि: आबंटन को केन्द्रीय बजट के कम से कम 2% तक बढ़ाया जाएगा। वित्तपोषण को मापनीय कूटनीतिक परिणामों से जोड़ना।
  • भारतीय विदेश सेवा संवर्ग का विस्तार: आगामी दशक के अंदर संवर्ग की संख्या दोगुनी करना। अर्थशास्त्र, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण विज्ञान जैसे क्षेत्रों से विशेषज्ञों की भर्ती करना।
  • डिजिटल कूटनीति को अपनाना: भू-राजनीतिक प्रवृत्तियों पर नजर रखने के लिए AI और बड़े डेटा को एकीकृत करना। ई-वीज़ा जैसे ई-गवर्नेंस प्लेटफार्मों का विस्तार करना।
  • क्षेत्रीय कूटनीति को मजबूत करना: कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों में अधिक दूतावास खोलना। प्रमुख मिशनों में आर्थिक कूटनीति प्रकोष्ठों की स्थापना करना।
  • विकेंद्रीकरण और समन्वय: प्रमुख भारतीय शहरों में क्षेत्रीय विदेश मंत्रालय कार्यालय स्थापित करना। निर्बाध नीति क्रियान्वयन के लिए अंतर-मंत्रालयी कार्य बल गठित करना।
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: साइबर कूटनीति जैसे उभरते क्षेत्रों पर विशेष पाठ्यक्रम शुरू करना। रणनीतिक अनुसंधान और नीति निर्माण के लिए थिंक टैंकों के साथ सहयोग करना।

निष्कर्ष 

  • जैसे-जैसे भारत की वैश्विक उपस्थिति बढ़ रही है, विदेश मंत्रालय को आधुनिक कूटनीति की माँगों को पूरा करने के लिए विकसित होना चाहिए। संसाधनों की कमी को दूर करना, अपने संगठन का पुनर्गठन करना, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना और प्रशिक्षण को बढ़ाना यह सुनिश्चित करेगा कि विदेश मंत्रालय भारत की विदेश नीति का एक सुदृढ़ साधन बना रहे।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत की बढ़ती वैश्विक गतिविधियों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में विदेश मंत्रालय (MEA) के सामने आने वाली संरचनात्मक और परिचालन चुनौतियों की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।