पाठ्यक्रम: GS2/शासन; नीति और हस्तक्षेप
संदर्भ
- कई भारतीय राज्यों को अपर्याप्त धन और संसाधन आवंटन के कारण पर्याप्त पुलिस बल बनाए रखने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
परिचय
- संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार ‘पुलिस’ और ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ राज्य के विषय हैं।
- भारत की पुलिस व्यवस्था को मुख्य रूप से राज्य सरकारों द्वारा वित्त पोषित किया जाता है, जबकि केंद्र सरकार पुलिस बलों के आधुनिकीकरण (MPF) कार्यक्रम जैसी योजनाओं के माध्यम से अतिरिक्त सहायता प्रदान करती है।
- राज्यों में संसाधनों का आवंटन अलग-अलग होता है, जिससे बुनियादी ढाँचे, जनशक्ति और प्रौद्योगिकी में असमानताएँ उत्पन्न होती हैं।
पुलिस व्यय की वर्तमान स्थिति
- आंतरिक सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रभावी कानून प्रवर्तन महत्त्वपूर्ण है।
- कई राज्यों में, पुलिस विभागों को गंभीर वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे अधिकारियों की भर्ती, प्रशिक्षण और उन्हें पर्याप्त रूप से सुसज्जित करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। बजटीय प्रतिबंधों के कारण:
- पुलिस बल में कर्मचारियों की कमी होती है, जिसके परिणामस्वरूप आपातकालीन प्रतिक्रिया समय लंबा हो जाता है।
- पुराने उपकरण एवं तकनीक, अपराध की रोकथाम और जांच में दक्षता को कम करते हैं।
- अपर्याप्त प्रशिक्षण, अत्यधिक बल और कानूनी विवादों के जोखिम को बढ़ाता है।
- इन कारकों के संयोजन से जनता का विश्वास कम होता है और अपराध को प्रभावी ढंग से रोकने की कानून प्रवर्तन की क्षमता कमजोर होती है।
भारत में बजटीय प्रवृति
- प्रमुख बजट आवंटन (हालिया प्रवृति): केंद्रीय बजट 2025-26 में पुलिस व्यय के लिए गृह मंत्रालय को ₹1,60,391.06 करोड़ (केंद्रीय बजट 2023-24 में ₹1.27 लाख करोड़) आवंटित किए गए।
- इसका एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा आंतरिक सुरक्षा, सीमा सुरक्षा और महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार केंद्रीय पुलिस संगठनों की ओर निर्देशित किया जाता है।
- पुलिस बलों के आधुनिकीकरण (MPF) योजना को ₹2,750 करोड़ मिले, जिसका उद्देश्य हथियारों, फोरेंसिक बुनियादी ढाँचे और निगरानी प्रौद्योगिकी को उन्नत करना है।
- राज्य सरकारें सामूहिक रूप से पुलिसिंग पर वार्षिक ₹1.2 लाख करोड़ से अधिक व्यय करती हैं, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में काफी भिन्नताएँ हैं।
संसाधन आवंटन में चुनौतियाँ
- कम कर्मचारी और अत्यधिक कार्यभार वाले कर्मचारी: कई राज्यों में पुलिस कर्मियों की महत्त्वपूर्ण कमी है, कुछ क्षेत्रों में रिक्तियों की दर 24% तक है।
- भारत में प्रति 1 लाख लोगों पर केवल 152 पुलिस अधिकारी हैं, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनुशंसित 222 अधिकारियों से कम है।
- इससे अधिकारियों पर अत्यधिक भार पड़ता है, कार्यकुशलता कम होती है और अपराधों को संबोधित करने में देरी होती है।
- प्रति व्यक्ति कम व्यय: औसतन, राज्य पुलिस सहित न्याय प्रणाली पर प्रति व्यक्ति वार्षिक केवल ₹2,056 व्यय करते हैं।
- विषम प्राथमिकताएँ: निधियों का एक बड़ा भाग वेतन और पेंशन (कुछ राज्यों में 80% से अधिक अर्थात राजस्व व्यय) में चला जाता है, जिससे आधुनिकीकरण और परिचालन लागतों के लिए बहुत कम बचता है।
- राज्यों में असमान निधि: महाराष्ट्र एवं कर्नाटक जैसे अमीर राज्य अधिक निधि आवंटित करते हैं, जबकि बिहार और झारखंड जैसे गरीब राज्य पुलिस आधुनिकीकरण के साथ संघर्ष करते हैं।
- प्रौद्योगिकी एकीकरण की कमी: कई राज्य AI-संचालित अपराध विश्लेषण, साइबर फोरेंसिक और GPS-सक्षम गश्त प्रणाली को अपनाने में पिछड़ जाते हैं।
- अपर्याप्त प्रशिक्षण: सीमित बजट के कारण प्रायः प्रशिक्षण कार्यक्रम अपर्याप्त हो जाते हैं, जिससे अधिकारी जटिल परिस्थितियों से निपटने में असमर्थ हो जाते हैं।
- बढ़ती अपराध दर: साइबर अपराध, संगठित अपराध और सांप्रदायिक हिंसा की बढ़ती घटनाओं के कारण अधिक मजबूत एवं सुसज्जित पुलिस बल की आवश्यकता है।
बेहतर संसाधन आवंटन के लिए सिफारिशें
- पूँजीगत व्यय में वृद्धि: पुलिस बजट का कम से कम 30% आधुनिकीकरण, बुनियादी ढाँचे और तकनीकी उन्नयन के लिए आवंटित किया जाना चाहिए।
- प्रदर्शन-आधारित वित्तपोषण: केंद्र सरकार को प्रभावी पुलिसिंग सुधारों को लागू करने वाले राज्यों को प्रोत्साहन देना चाहिए।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): निजी क्षेत्र के साथ सहयोग से निगरानी तकनीक, साइबर सुरक्षा और प्रशिक्षण को बढ़ाया जा सकता है।
- कौशल विकास और प्रशिक्षण: डी-एस्केलेशन प्रशिक्षण, सामुदायिक पुलिसिंग और फोरेंसिक क्षमताओं के लिए अधिक धन आवंटित किया जाना चाहिए।
- धन का बेहतर उपयोग: धन के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर ऑडिट और प्रदर्शन ट्रैकिंग को लागू किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
- पुलिस बलों में पर्याप्त निवेश सिर्फ़ शासन का मामला नहीं है, बल्कि सामाजिक कल्याण के लिए भी आवश्यक है।
- कम कर्मचारियों, पुराने बुनियादी ढाँचे और अपर्याप्त प्रशिक्षण की चुनौतियों का समाधान करके, राज्य समकालीन मांगों को पूरा करने में सक्षम कानून प्रवर्तन प्रणाली का निर्माण कर सकते हैं।
- सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन लोगों को सशक्त बनाने के लिए सामूहिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है जो सुरक्षा और सेवा करते हैं।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] पुलिस बलों पर राज्य के व्यय में वृद्धि से कैसे कम कर्मचारियों, अपर्याप्त प्रशिक्षण एवं पुराने बुनियादी ढाँचे जैसी चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है, साथ ही जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है और कानून प्रवर्तन में जनता का विश्वास बढ़ाया जा सकता है? |
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