पाठ्यक्रम: GS2/स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे
संदर्भ
- सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है, हालाँकि, देश के स्वास्थ्य देखभाल परिदृश्य की विविधता और बहुमुखी प्रकृति के कारण UHC को प्राप्त करना चुनौतियों की एक जटिल शृंखला प्रस्तुत करता है।
सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) का परिचय
- यह एक वैश्विक स्वास्थ्य उद्देश्य है जिसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी लोगों को वित्तीय कठिनाई का सामना किए बिना उनकी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच प्राप्त हो।
- इसमें स्वास्थ्य संवर्धन और रोकथाम से लेकर उपचार, पुनर्वास एवं उपशामक देखभाल तक आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की पूरी शृंखला शामिल है।
- UHC को प्राप्त करना सतत् विकास लक्ष्यों (SDG-3) का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जो सभी आयु वर्गों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने और कल्याण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
UHC के प्रमुख घटक
- उपलब्धता: यह सुनिश्चित करना कि स्वास्थ्य सेवाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हों।
- सुगम्यता: यह सुनिश्चित करना कि स्वास्थ्य सेवाएँ सभी के लिए सुलभ हों, चाहे उनका स्थान या सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।
- वहनीयता: वित्तीय कठिनाई उत्पन्न किए बिना स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना।
- गुणवत्ता: यह सुनिश्चित करना कि स्वास्थ्य सेवाएँ उच्च गुणवत्ता वाली हों और जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करें।
भारत का स्वास्थ्य और संवैधानिक स्थिति – सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, अस्पताल और औषधालय राज्य सूची (सूची II, अनुसूची VII) के अंतर्गत आते हैं। – परिवार कल्याण एवं जनसंख्या नियंत्रण, चिकित्सा शिक्षा, खाद्य अपमिश्रण की रोकथाम, तथा औषधियों के निर्माण में गुणवत्ता नियंत्रण को समवर्ती सूची (सूची III, अनुसूची VII) में शामिल किया गया है। – केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण परिषद (संविधान के अनुच्छेद 263 के अंतर्गत स्थापित) स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण से संबंधित मामलों के संबंध में व्यापक नीतिगत रूपरेखा पर विचार करने और सिफारिश करने में सक्षम बनाती है। स्वास्थ्य का अधिकार – यद्यपि भारत के संविधान में स्वास्थ्य के अधिकार का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, किन्तु न्यायपालिका द्वारा इसकी व्याख्या अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का एक अभिन्न अंग के रूप में की गई है। |
भारत में UHC की वर्तमान स्थिति
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य और कल्याण के उच्चतम संभव स्तर को प्राप्त करने के लक्ष्य को स्पष्ट करती है।
- इसके बावजूद, विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच एवं गुणवत्ता में असमानताएँ बनी हुई हैं।
- उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश, केरल और तमिलनाडु क्रमशः प्रति व्यक्ति ₹3,829, ₹2,590 और ₹2,039 व्यय करते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार केवल ₹951 और ₹701 व्यय करते हैं।
- इसमें प्रत्येक राज्य की विशिष्ट वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए विशेष UHC योजनाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
भारत में UHC प्राप्त करने में प्रमुख चुनौतियाँ
- विविध स्वास्थ्य प्रणालियाँ: भारत की स्वास्थ्य प्रणालियाँ राज्यों में व्यापक रूप से भिन्न हैं, जो विकास और स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे के विभिन्न स्तरों को दर्शाती हैं।
- उदाहरण के लिए, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियाँ अपेक्षाकृत उन्नत हैं, जबकि बिहार एवं उत्तर प्रदेश जैसे राज्य स्वास्थ्य देखभाल व्यय तथा परिणामों के मामले में पीछे हैं।
- स्वास्थ्य परिणामों में असमानताएँ: समान जनसंख्या आकार और स्वास्थ्य संकेतकों वाले राज्यों में स्वास्थ्य देखभाल परिणाम काफी भिन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, किशोरावस्था में गर्भधारण दर तथा प्रजनन दर में काफी भिन्नता होती है, जिसका प्रभाव समग्र स्वास्थ्य संकेतकों पर पड़ता है।
- उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में प्रजनन दर कम होने के बावजूद, देश में किशोरावस्था में गर्भधारण की दर सबसे अधिक है।
- उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय: पश्चिम बंगाल (जो 67% पर उच्च बना हुआ है) और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में, आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय कुल स्वास्थ्य व्यय का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जो दर्शाता है कि अकेले सरकारी व्यय में वृद्धि पर्याप्त नहीं है।
- प्रणालीगत चुनौतियाँ: एक ही राज्य में अनेक प्रकार की स्वास्थ्य प्रणालियों का सह-अस्तित्व एकीकृत UHC योजना के कार्यान्वयन को जटिल बना सकता है।
- इसके अतिरिक्त, विभिन्न राज्यों में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे और कार्यबल के विभिन्न स्तरों के कारण समतापूर्ण स्वास्थ्य सेवा पहुँच प्रदान करने के प्रयास अधिक जटिल हो जाते हैं।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: भारत को स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
- विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ, चिकित्सा उपकरण और आवश्यक दवाओं का अभाव है।
- यह स्थिति उन राज्यों में अधिक स्पष्ट है जहां स्वास्थ्य देखभाल पर व्यय कम है।
- कार्यबल की कमी: डॉक्टरों, नर्सों और संबद्ध स्वास्थ्य कर्मचारियों सहित स्वास्थ्य पेशेवरों की गंभीर कमी है।
- असमान वितरण के कारण यह समस्या अधिक गंभीर हो गई है, तथा ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्र इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं।
- नीति और शासन संबंधी मुद्दे: UHC के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सुदृढ़ नीतिगत ढाँचे और शासन संरचनाओं की आवश्यकता होती है।
- हालाँकि, नौकरशाही की अकुशलता, सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच समन्वय की कमी और भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियाँ प्रगति में बाधा बन सकती हैं।
भारत में UHC प्राप्त करने से संबंधित सरकारी पहल
- आयुष्मान भारत: इसका उद्देश्य 500 मिलियन से अधिक लोगों को स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करना है। इसमें दो प्रमुख घटक शामिल हैं:
- स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र (HWCs): इन केंद्रों का उद्देश्य निवारक, प्रोत्साहनात्मक, पुनर्वासात्मक और उपचारात्मक देखभाल सहित व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है।
- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY): यह माध्यमिक और तृतीयक देखभाल अस्पताल में भर्ती के लिए प्रति वर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करती है।
- प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (PM-ABHIM): प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को सुदृढ़ करने के लिए प्रारंभ किए गए इस मिशन का उद्देश्य नई एवं उभरती बीमारियों का पता लगाने और उनका उपचार करने की क्षमता विकसित करना है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): इसमें राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM) शामिल हैं, जिसका उद्देश्य समतापूर्ण, किफायती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है।
- ये मिशन मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने, संचारी एवं गैर-संचारी रोगों को नियंत्रित करने तथा स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ करने पर केंद्रित हैं।
- राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM): इसका उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को एक विशिष्ट स्वास्थ्य आई.डी. प्रदान करके एक डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है, जिससे स्वास्थ्य रिकॉर्ड और सेवाओं तक निर्बाध पहुँच संभव हो सके।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि: सरकार का लक्ष्य सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 2.5% तक बढ़ाना है, जैसा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में उल्लिखित है।
आगे की राह
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को सुदृढ़ करना: सभी व्यक्तियों के लिए व्यापक और निरंतर देखभाल सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में निवेश करना।
- जेब से होने वाले व्यय को कम करना: व्यक्तियों पर वित्तीय भार को कम करने के लिए नीतियों को लागू करना, जैसे कि बीमा कवरेज का विस्तार करना और स्वास्थ्य देखभाल लागतों में सब्सिडी देना।
- क्षेत्रीय असमानताओं का समाधान: विभिन्न राज्यों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप UHC योजनाओं को तैयार करना, तथा उनकी विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों और संसाधनों की उपलब्धता पर विचार करना।
निष्कर्ष
- भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें प्रत्येक राज्य की विविध वास्तविकताओं पर विचार किया जाए।
- इसमें न केवल सरकारी स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि करना शामिल है, बल्कि प्रणालीगत मुद्दों और स्वास्थ्य असमानताओं का समाधान करना भी शामिल है।
- चुनौतियों पर नियंत्रण पाने तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी भारतीयों को वित्तीय कठिनाई के बिना गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो, एक अनुकूलित, क्षेत्र-विशिष्ट रणनीति आवश्यक है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) प्राप्त करने में आने वाली प्रमुख बाधाओं और संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिए। इन चुनौतियों से निपटने में सार्वजनिक-निजी भागीदारी एवं तकनीकी प्रगति की भूमिका का विश्लेषण कीजिए। |
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