पाठ्यक्रम: GS3/कृषि; जलवायु परिवर्तन
संदर्भ
- कृषि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील होती जा रही है, जिसमें वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन भी शामिल है, जो पारंपरिक कृषि पद्धतियों को बाधित करता है और खाद्य सुरक्षा को खतरा पहुँचाता है।
भारतीय कृषि का अवलोकन (2025) – कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन: 1. विकास दर: वित्त वर्ष 25 की दूसरी तिमाही में 3.5%; 2. GDP में योगदान: भारत के GDP में लगभग 16%; 3. कार्यबल: जनसंख्या का लगभग 46%; – बजट आवंटन में वृद्धि: 1. केंद्रीय बजट 2025: कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए ₹1.52 ट्रिलियन (पिछले वित्तीय वर्ष में ₹1.22 ट्रिलियन से वृद्धि)। |
भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
- बढ़ता तापमान और घटती उत्पादकता: अध्ययनों से पता चलता है कि तापमान में प्रत्येक 1°C की वृद्धि से गेहूँ की उत्पादकता में 4-5% की गिरावट आ सकती है, जबकि चावल और मक्का को भी इसी प्रकार का हानि हो सकती है।
- यदि अनुकूलन उपायों को लागू नहीं किया गया तो भारत में वर्षा आधारित चावल की उत्पादकता 2080 तक 47% तक कम हो सकती है।
- विश्व आर्थिक मंच (2024) के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था 2030 तक कृषि उत्पादन में 16% की गिरावट का सामना कर सकती है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2.8% की हानि के बराबर होगी।
- पंजाब और हरियाणा में बेमौसम बारिश के कारण गेहूं का उत्पादन कम हुआ है।
- महाराष्ट्र में अनियमित वर्षा के कारण गन्ना और कपास की उत्पादकता प्रभावित हुई है।
- बिहार और असम जैसे बाढ़-प्रवण राज्यों में अत्यधिक मानसूनी बारिश के कारण धान की फसलें नष्ट हो गईं।
- अनियमित वर्षा पैटर्न: भारतीय मानसून (देश की वार्षिक वर्षा का लगभग 70% हिस्सा) तेजी से अप्रत्याशित होता जा रहा है।
- विलंबित या कम मानसून के कारण बुवाई में देरी होती है, जिससे फसल चक्र और उत्पादकता प्रभावित होती है।
- अत्यधिक वर्षा के कारण जलभराव हो जाता है, जिससे धान और गन्ना जैसी फसलों को हानि पहुँचती है।
- चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति: लगातार पड़ रहे सूखे के कारण सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता कम हो रही है।
- ओडिशा, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश जैसे तटीय राज्यों में चक्रवातों से फसलों को हानि पहुँचती है और आपूर्ति श्रृंखला बाधित होती है।
- ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश से खड़ी फसलें नष्ट हो जाती हैं, जिससे किसानों को आर्थिक हानि होती है।
- विश्व आर्थिक मंच (WEF) के अनुसार, भारत में 2015 से 2021 के बीच अत्यधिक बारिश के कारण 33.9 मिलियन हेक्टेयर फसलें नष्ट हो गईं और सूखे के कारण अतिरिक्त 35 मिलियन हेक्टेयर फसलें नष्ट हो गईं।
- मृदा क्षरण और उर्वरता की हानि: भारी बारिश के कारण मृदा क्षरण में वृद्धि
- उच्च तापमान से मृदा पोषक तत्त्वों की कमी तीव्र हो जाती है।
- समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण तटीय क्षेत्रों में लवणता बढ़ने से मिट्टी की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- जल की कमी और सिंचाई चुनौतियां: भारत की 50% से अधिक कृषि मानसून पर निर्भर है, जिससे यह अनियमित वर्षा के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
- पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में भूजल स्तर में गिरावट से सिंचाई पर खतरा बना हुआ है।
- अत्यधिक भूजल निष्कर्षण के कारण भूजल स्तर में चिंताजनक कमी आई है, विशेष रूप से गुजरात, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों में।
- कीट और रोग प्रकोप: बढ़ते तापमान से फाल आर्मीवर्म और टिड्डियों जैसे कीटों के लिए अनुकूल वातावरण उत्पन्न होता है, जो फसलों को नष्ट कर देते हैं।
- अधिक आर्द्रता के कारण गेहूं, चावल और सब्जियों जैसी फसलों में फफूंद और जीवाणुजन्य रोग बढ़ जाते हैं।
सरकारी प्रतिक्रिया और नीतिगत उपाय
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC): इसमें जलवायु-अनुकूल खेती को बढ़ावा देने के लिए सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन (NMSA) शामिल है।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): सिंचाई में जल दक्षता में सुधार पर ध्यान केंद्रित करती है।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: किसानों को मृदा पोषक तत्वों की निगरानी करने और उर्वरता में सुधार करने में सहायता करती है।
- फसल बीमा योजनाएं: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) फसल हानि के विरुद्ध वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है।
- जलवायु-प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देना: अनुसंधान संस्थान सूखा-प्रतिरोधी और ताप-सहिष्णु फसल किस्मों का विकास कर रहे हैं।
- कृषि विस्तार पर उप-मिशन (SMAE): यह ज्ञान के प्रसार, कृषि पद्धतियों में सुधार और स्थिरता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA): यह जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों पर बल देता है, तथा बदलते मौसम पैटर्न से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करता है।
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY): यह जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे का समर्थन करती है और सतत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देती है।
- परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY): जलवायु परिवर्तनशीलता के लिए एक स्थायी अनुकूलन रणनीति के रूप में जैविक खेती को प्रोत्साहित करती है।
- मौसम पूर्वानुमान और पूर्व चेतावनी प्रणाली: IMD ने सटीक और समय पर मौसम संबंधी अपडेट प्रदान करने के लिए अपनी पूर्वानुमान क्षमताओं को बढ़ाया है, जिससे किसानों को बेहतर योजना बनाने में सहायता मिलती है।
भारत में कृषि के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीतियाँ
- जलवायु-स्मार्ट फसल किस्में: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) जैसे संस्थानों द्वारा सूखा प्रतिरोधी, बाढ़ प्रतिरोधी और गर्मी सहनशील फसल किस्मों का विकास।
- प्राकृतिक रूप से लचीली पारंपरिक और स्वदेशी फसल किस्मों को बढ़ावा देना।
- सतत जल प्रबंधन: जल उपयोग दक्षता में सुधार के लिए ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों को अपनाना।
- शुष्क क्षेत्रों में जल तनाव को कम करने के लिए वाटरशेड प्रबंधन और वर्षा जल संचयन।
- धान की खेती में जल की खपत को कम करने के लिए चावल गहनता प्रणाली (SRI) को बढ़ावा देना।
- कृषि वानिकी और मृदा संरक्षण: कृषि वानिकी मॉडलों को प्रोत्साहित करना, जहां कार्बन अवशोषण और मृदा उर्वरता बढ़ाने के लिए पेड़ों को कृषि भूमि में एकीकृत किया जाता है।
- मृदा स्वास्थ्य बनाए रखने और कटाव को रोकने के लिए शून्य-जुताई खेती और कवर फसल।
- मृदा लचीलापन बढ़ाने के लिए जैविक उर्वरकों और बायोचार का उपयोग।
- डिजिटल और तकनीकी हस्तक्षेप: किसानों को प्रतिकूल मौसम की स्थिति के लिए तैयार होने में मदद करने के लिए AI-आधारित मौसम पूर्वानुमान और मोबाइल सलाहकार सेवाओं का उपयोग।
- संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करने के लिए ड्रोन और सेंसर का उपयोग करके सटीक खेती।
- ई-नाम जैसे ई-मार्केटिंग प्लेटफॉर्म बेहतर मूल्य प्राप्ति प्रदान करेंगे तथा जलवायु-प्रेरित आय आघातों को कम करेंगे।
- आजीविका विविधीकरण और फसल बीमा: फसलों पर पूर्ण निर्भरता को कम करने के लिए एकीकृत कृषि प्रणालियों (पशुधन, मत्स्य पालन और बागवानी) को बढ़ावा देना।
- जलवायु से संबंधित फसल हानि के विरुद्ध वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) को मजबूत बनाना।
- नीतिगत समर्थन: जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (NICRA) जैसी सरकारी पहल जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए अनुसंधान, क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी प्रसार पर ध्यान केंद्रित करती है।
केस स्टडी
- NICRA गाँव: NICRA कार्यक्रम ने 446 से अधिक गाँवों में जलवायु-प्रूफिंग तकनीकों का प्रदर्शन किया है, जो एकीकृत दृष्टिकोण की प्रभावशीलता को दर्शाता है।
- जलवायु-स्मार्ट खेती: पर्यावरण रक्षा कोष जैसे संगठनों की पहलों ने कम कार्बन खेती प्रथाओं को बढ़ावा दिया है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आई है और उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
निष्कर्ष
- वर्षा के बदलते पैटर्न से कृषि को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है, जिससे लाखों किसानों की आजीविका की रक्षा करने तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
- जलवायु-अनुकूल पद्धतियों को अपनाकर, जल प्रबंधन में सुधार करके, तथा नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से किसानों को सहायता प्रदान करके, भारत अपने कृषि क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम कर सकता है।
- सतत खेती की ओर यात्रा चुनौतीपूर्ण है, लेकिन देश के भविष्य के लिए आवश्यक है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] सरकारें और किसान बदलते वर्षा पैटर्न के अनुकूल होने और जलवायु परिवर्तन से कृषि स्थिरता के लिए उत्पन्न चुनौतियों को कम करने के लिए किस प्रकार सहयोग कर सकते हैं? |
Previous article
सार्वभौमिक एवं न्यायसंगत स्वास्थ्य कवरेज की आवश्यकता