अनुसंधान एवं विकास बजट कार्यान्वयन पर ध्यान देने की आवश्यकता है

पाठ्यक्रम: GS3/विज्ञान और प्रौद्योगिकी

संदर्भ

  • भारत का अनुसंधान एवं विकास (R&D) क्षेत्र नवाचार, आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • कि, बजट आवंटन में वृद्धि के बावजूद, अनुसंधान एवं विकास बजट का प्रभावी कार्यान्वयन एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।

भारत और अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र

  • सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में, भारत विज्ञान, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा, अंतरिक्ष और डिजिटल परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करते हुए अनुसंधान एवं विकास में महत्त्वपूर्ण निवेश कर रहा है।
  • उच्च प्रभाव वाले क्षेत्र: 
    • फार्मास्यूटिकल्स और जैव प्रौद्योगिकी: भारत को वैक्सीन विकास, जेनेरिक दवाओं और जैव प्रौद्योगिकी नवाचारों में प्रमुख सफलताओं के साथ ‘विश्व की फार्मेसी’ के रूप में जाना जाता है।
    • अंतरिक्ष अनुसंधान: इसरो वैश्विक स्तर पर अग्रणी रहा है, जिसने चंद्रयान, मंगलयान और गगनयान जैसे मिशनों को सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी और AI: भारत IT सेवाओं का वैश्विक केंद्र है, जहाँ AI, मशीन लर्निंग और साइबर सुरक्षा में निवेश बढ़ रहा है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा और स्थिरता: सौर और पवन ऊर्जा में अनुसंधान भारत को स्थिरता और कार्बन तटस्थता की ओर अग्रसर कर रहा है।

अनुसंधान एवं विकास वित्तपोषण की वर्तमान स्थिति

  • अनुसंधान एवं विकास में कम निवेश: सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में अनुसंधान एवं विकास पर भारत का सकल व्यय (GERD) अपेक्षाकृत कम रहा है, जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.6-0.7% रहा है, जो वैश्विक औसत 2.6% से काफी कम है।
    • इसकी तुलना में, इजराइल और दक्षिण कोरिया जैसे देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का क्रमशः 5.6% और 4.8% अनुसंधान एवं विकास के लिए आवंटित करते हैं।
  • भारत में क्षेत्रीय वितरण:
    • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO): 30.7% 
    • अंतरिक्ष विभाग: 18.4% भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद: 12.4% 
    • परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE): 11.4% 
    • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR): 8.2% 
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC): 0.8%
    • नवीकरणीय एवं पर्यावरण ऊर्जा मंत्रालय (MNRE): 0.1%
      • हालाँकि, नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण अनुसंधान जैसे क्षेत्रों को न्यूनतम आवंटन प्राप्त होता है।

निजी क्षेत्र एवं स्टार्टअप

  • टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इन्फोसिस, बायोकॉन, सन फार्मा और रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियां अनुसंधान एवं विकास में भारी निवेश कर रही हैं।
  • भारत में स्टार्टअप इकोसिस्टम काफी विकसित है, जहां AI, फिनटेक, हेल्थ टेक और एडटेक कंपनियां नवाचार पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • निधियों का कम उपयोग: जैव प्रौद्योगिकी और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे विभागों ने वित्त वर्ष 23 में क्रमशः अपने आवंटित बजट का केवल 72% और 61% ही उपयोग किया।
    • यह निधि वितरण और परियोजना क्रियान्वयन में अकुशलता को दर्शाता है।
  • अनियमित निधि जारी करना: निधियों के विलंबित और अंतिम समय पर जारी होने से अनुसंधान संस्थानों को बजट का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए अपर्याप्त समय मिलता है, जिससे वित्तीय और परिचालन संबंधी दबाव बढ़ता है।
  • प्रशासनिक भार: शोधकर्ताओं को अक्सर अत्यधिक प्रशासनिक औपचारिकताओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका ध्यान बौद्धिक गतिविधियों से हटकर वित्तीय नियमों के अनुपालन की ओर चला जाता है।
  • प्रतिभा पलायन: सीमित अवसरों और वित्त पोषण के कारण कई प्रतिभाशाली शोधकर्त्ता विदेश चले जाते हैं।
  • उद्योग-अकादमिक अंतर: विश्वविद्यालयों और निजी उद्योगों के बीच सहयोग अभी भी कमजोर है।
  • पेटेंट एवं नवाचार संबंधी बाधाएं: यद्यपि भारत अनेक पेटेंट दाखिल करता है, फिर भी व्यावसायीकरण एवं नवाचार में पिछड़ा हुआ है।

भारत में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने वाली प्रमुख सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन ( NRF): इसका उद्देश्य उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसंधान वित्तपोषण और बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना है।
  • अटल इनोवेशन मिशन (AIM): अटल टिंकरिंग लैब्स के माध्यम से स्टार्टअप, उद्यमशीलता और नवाचार को प्रोत्साहित करता है।
  • अनुसंधान नवाचार और प्रौद्योगिकी पर प्रभाव (IMPRINT): इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अनुसंधान का समर्थन करता है।
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति (STIP  2020): आत्मनिर्भरता और स्वदेशी अनुसंधान पर केंद्रित है।
  • विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (SERB): वैज्ञानिक विषयों में अनुसंधान एवं विकास के लिए प्रतिस्पर्धी वित्तपोषण प्रदान करता है।
  • मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया: नवाचार-संचालित विनिर्माण और उद्यमशीलता को समर्थन देता है।
  • प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड ( TDB): स्वदेशी प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण को वित्तपोषित करता है।
  • जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद ( BIRAC): जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और स्टार्टअप को बढ़ावा देता है।
  • हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तेजी से अपनाना और विनिर्माण (FAME  इंडिया): इलेक्ट्रिक गतिशीलता में अनुसंधान एवं विकास का समर्थन करता है।
  • PLI (उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन) योजना: इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स जैसे विनिर्माण क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करती है।

सुधार के लिए सिफारिशें

  • सुव्यवस्थित निधि संवितरण: पूरे वित्तीय वर्ष के दौरान समय पर और चरणबद्ध तरीके से निधियों का जारी होना सुनिश्चित करने से बजट उपयोग में वृद्धि हो सकती है और अंतिम समय के दबाव में कमी आ सकती है।
  • क्षमता निर्माण: वित्तीय प्रबंधन में प्रशासनिक कर्मचारियों और शोधकर्ताओं को प्रशिक्षण देने से अनुपालन और दक्षता में सुधार हो सकता है।
  • उभरते क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना: नवीकरणीय ऊर्जा एवं पर्यावरण अनुसंधान जैसे कम वित्त पोषित क्षेत्रों में अधिक संसाधन आवंटित करने से महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान हो सकता है और नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
  • निगरानी और जवाबदेही: निधि उपयोग एवं परियोजना परिणामों पर नज़र रखने के लिए मजबूत तंत्र स्थापित करने से पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सकती है।

निष्कर्ष

  • भारत के लिए अपनी वैज्ञानिक और तकनीकी आकांक्षाओं को प्राप्त करने के लिए अनुसंधान एवं विकास बजट का प्रभावी कार्यान्वयन महत्त्वपूर्ण है। प्रणालीगत अकुशलताओं को दूर करके और रणनीतिक निवेशों को प्राथमिकता देकर, देश अपने अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र की पूरी क्षमता को उन्मुक्त कर सकता है। 
  • अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं को मजबूत करने से न केवल भारत की वैश्विक स्थिति में सुधार होगा, बल्कि सतत और समावेशी विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत के अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र में निधि वितरण और उपयोग में अक्षमताओं को दूर करने के लिए कौन से प्रणालीगत सुधार प्रारंभ किए जा सकते हैं, ताकि आवंटित बजट का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित हो सके?

Source: BL