पाठ्यक्रम: GS1/समाज; GS2/सामाजिक मुद्दे
सन्दर्भ
- जैसे-जैसे भारत अपने संविधान की 75वीं वर्षगांठ की ओर बढ़ रहा है, शिक्षा की भूमिका, जो भारत में राष्ट्र निर्माण का एक आधारभूत स्तंभ है, पहले की तरह ही महत्वपूर्ण बनी हुई है।
परिचय
- संविधान निर्माताओं ने शिक्षा को लोकतांत्रिक, समतामूलक और प्रगतिशील समाज के विकास के लिए आधारशिला के रूप में देखा था।
- उनका मानना था कि लोकतंत्र को बढ़ावा देने, सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए शिक्षित जनसँख्या आवश्यक है।
- शिक्षा को सामाजिक विभाजन को समाप्त करने और नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में देखा गया।
- न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लक्ष्यों को प्राप्त करने में शिक्षा को एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में मान्यता दी गई।
- दशकों से, शिक्षा राष्ट्र की परिवर्तित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विकसित हुई है, लेकिन भारत के भविष्य को आकार देने में इसका मौलिक महत्व अपरिवर्तित बना हुआ है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – भारतीय संविधान को अपनाने के बाद से भारत में शिक्षा की अवधारणा में महत्वपूर्ण विकास हुआ है, जिसने राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। – पहला आयोग: विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (1948) और माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-53) ने शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए आधार तैयार किया, जिसमें लोकतांत्रिक मूल्यों और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर बल दिया गया। – कोठारी आयोग (1964-66): इस आयोग की सिफारिशों के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) बनाई गई, जिसका उद्देश्य एक समान शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देना और असमानताओं को दूर करना था। भारत में शिक्षा से संबंधित प्रमुख संवैधानिक प्रावधान – अनुच्छेद 15: धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकता है। यह शैक्षणिक संस्थानों पर भी लागू होता है। – शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A): संविधान शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देता है। यह 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है। राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (DPSP) – अनुच्छेद 41: यह शिक्षा के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने और असमानताओं को कम करने के महत्व पर प्रकाश डालता है। – अनुच्छेद 45: अनुच्छेद 45 के तहत DPSP इस बात पर बल देता है कि राज्य 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा। – अनुच्छेद 46: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य हाशिए के वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देता है। मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51A) – अनुच्छेद 51A(j): नागरिकों का कर्तव्य है कि वे शिक्षा सहित व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करें। भाषा और शिक्षा – अनुच्छेद 350A: प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करता है। – अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की रक्षा करता है, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना तथा प्रशासन का अधिकार भी शामिल है। शैक्षिक संस्थानों की स्वायत्तता – अनुच्छेद 30: धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार देता है। – अनुच्छेद 32: शैक्षिक अधिकारों सहित मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उच्चतम न्यायालय में जाने का अधिकार प्रदान करता है। राज्य की भूमिका – अनुच्छेद 41: राज्य कार्य, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए प्रभावी प्रावधान करेगा। – अनुच्छेद 44: राज्य को समान नागरिक संहिता को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो शिक्षा से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों को प्रभावित कर सकता है। |
शैक्षिक सुधार और नीतियाँ
- स्वतंत्रता के बाद, भारत ने एकीकृत राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए महत्वपूर्ण शैक्षिक सुधार किए।
- औपनिवेशिक पाठ्यक्रम, जो क्लर्क और सिविल सेवक बनाने पर केंद्रित था, को भारत के इतिहास एवं सांस्कृतिक विरासत पर गर्व पैदा करने वाले पाठ्यक्रम से बदल दिया गया।
- तीन-भाषा सूत्र की शुरूआत का उद्देश्य भाषाई विविधता का सम्मान करते हुए एकता को बढ़ावा देना था।
लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में शिक्षा
- लोकतंत्र को बनाए रखने में शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- एक सूचित और शिक्षित मतदाता लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने, सूचित निर्णय लेने और नेताओं को जवाबदेह ठहराने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित होता है।
- पिछले दशकों में, भारत ने साक्षरता दर में सुधार और शिक्षा तक पहुँच बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
- यह न्याय, समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों को बढ़ावा देता है, जो भारत के लोकतांत्रिक लोकाचार के लिए मौलिक हैं।
- हालाँकि, शिक्षा की गुणवत्ता, क्षेत्रीय असमानताएँ और लैंगिक अंतर जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
सामाजिक न्याय और समावेशन
- शिक्षा हाशिए पर पड़े समुदायों के उत्थान, असमानताओं को कम करने और सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण साधन रही है।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) जैसी पहलों ने यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य की प्रतिबद्धता को और मजबूत किया है कि प्रत्येक बच्चे को उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच मिले।
- सहिष्णुता, सम्मान और आपसी समझ के मूल्यों को सिखाकर, शिक्षा सामाजिक सद्भाव बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
आर्थिक विकास
- वैश्विक अर्थव्यवस्था में नवाचार, उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए एक सुशिक्षित कार्यबल आवश्यक है।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी शिक्षा पर भारत के जोर ने इसे सूचना प्रौद्योगिकी तथा अन्य उच्च तकनीक उद्योगों में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित किया है।
- IITs और IIMs सहित शैक्षणिक संस्थानों के प्रसार ने एक कुशल कार्यबल तैयार किया है जो देश के आर्थिक इंजन को आगे बढ़ाता है।
- विशेष रूप से तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया गया है ताकि देश के प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग किया जा सके और रोजगार, GDP एवं समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
- भारत की जनसांख्यिकी लाभांश, जिसकी जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा युवा है, एक अवसर और चुनौती दोनों प्रस्तुत करता है।
संबंधित पहल
- शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009: 86वें संशोधन अधिनियम (2002) ने 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप RTE अधिनियम बना, जो निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को अनिवार्य बनाता है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 जिसमें प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE); मूलभूत साक्षरता एवं संख्यात्मकता; पाठ्यक्रम एवं शिक्षाशास्त्र; और समानता एवं समावेश आदि शामिल हैं।
- अवसंरचना विकास का उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में स्कूल के बुनियादी ढांचे में सुधार करना है, जिसमें नए स्कूलों का निर्माण, मौजूदा सुविधाओं को उन्नत करना तथा बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना शामिल है।
- शिक्षक प्रशिक्षण तथा विकास शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए, सरकार ने शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी है, और इसका उद्देश्य शिक्षकों को आधुनिक शिक्षण तकनीकों से लैस करना तथा उनकी समग्र प्रभावशीलता में सुधार करना है।
- डिजिटल एकीकरण जिसमें शिक्षा को अधिक सुलभ और आकर्षक बनाने के लिए ई-लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म, डिजिटल कक्षाएँ तथा ऑनलाइन संसाधन जैसी पहल शामिल हैं।
- डिजिटल विभाजन को समाप्त करने और शिक्षा की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए पीएम ई-विद्या तथा दीक्षा जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जिन पर विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान प्रकाश डाला गया है।
आगे की राह (फोकस क्षेत्र)
- शिक्षा की गुणवत्ता: प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी स्तरों पर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आवश्यक है। इसमें बेहतर शिक्षक प्रशिक्षण, अद्यतन पाठ्यक्रम और बेहतर बुनियादी ढाँचा शामिल है।
- समानता और समावेश: यह सुनिश्चित करना कि सभी बच्चों को, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच हो। लड़कियों की शिक्षा और विकलांग बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
- कौशल विकास: शिक्षा को रोजगार बाजार की ज़रूरतों के साथ जोड़ना और युवाओं को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
- नवाचार और अनुसंधान: प्रगति को आगे बढ़ाने और सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में नवाचार तथा अनुसंधान की संस्कृति को बढ़ावा देना।
भारत में शिक्षा के आगे पहुँच तथा समानता, शिक्षा की गुणवत्ता, शिक्षक प्रशिक्षण, ड्रॉपआउट दर और कौशल विकास आदि जैसी चुनौतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है और NEP 2020 सही कदम है जो व्यावसायिक शिक्षा के साथ-साथ समग्र विकास, बहुभाषावाद, लचीले पाठ्यक्रम, प्रौद्योगिकी एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है।
निष्कर्ष
- भारत में शिक्षा का तात्पर्य सिर्फ़ ज्ञान देना नहीं है; इसका अर्थ है राष्ट्र निर्माण। यह लाखों लोगों के मस्तिष्क और आकांक्षाओं को आकार देता है, देश को आगे बढ़ाता है। आर्थिक विकास, सामाजिक सामंजस्य और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देकर, शिक्षा भारत के राष्ट्र निर्माण के प्रयासों में एक शक्तिशाली उपकरण बनी हुई है।
- जबकि भारत अपनी आज़ादी के 75वें वर्ष के मुहाने पर खड़ा है, राष्ट्र निर्माण में शिक्षा की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता। यह वह आधार है जिस पर राष्ट्र का भविष्य निर्मित होता है।
- शिक्षा प्रणाली में निवेश और सुधार जारी रखकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि वह प्रगति तथा नवाचार का प्रतीक बना रहे, अपने संस्थापक पिताओं के सपनों को पूरा करे एवं एक उज्जवल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करे।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न |
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[प्रश्न] भारतीय संविधान को अपनाने के बाद से राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में योगदान देने के लिए शिक्षा की अवधारणा किस प्रकार विकसित हुई है? न्यायपूर्ण, समतामूलक और समृद्ध भारत के निर्माण में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित करने के लिए आगे आने वाली चुनौतियों तथा अवसरों पर चर्चा करें। |
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