पाठ्यक्रम: GS2/सामाजिक मुद्दा; न्यायपालिका
सन्दर्भ
- न्यायपालिका में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व, जिससे निष्पक्षता और समानता की अपेक्षा की जाती है, वास्तविक लैंगिक समानता प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण अंतर को प्रकट करता है। विभिन्न प्रयासों के बावजूद, महिलाओं को न्यायपालिका में प्रवेश करने और आगे बढ़ने में पर्याप्त बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
भारत में न्यायपालिका में महिलाएँ
- महिला न्यायाधीश विविध दृष्टिकोण और अनुभव लेकर आती हैं, जिससे न्यायपालिका में जनता का विश्वास बढ़ सकता है और न्यायिक निर्णयों की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। उनकी उपस्थिति भ्रष्टाचार से निपटने और मानवाधिकारों को बनाए रखने के प्रयासों से भी जुड़ी है।
- हाल ही में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, उच्च न्यायालयों में महिलाओं की संख्या केवल 13.4% और भारत के उच्चतम न्यायालय में मात्र 9.3% है।
- कुछ राज्यों में यह भी स्पष्ट है, जहाँ कुछ उच्च न्यायालयों में या तो कोई महिला न्यायाधीश नहीं है या केवल एक है।
- जबकि जिला न्यायपालिका में 36.3% महिला न्यायाधीशों का अधिक उत्साहजनक आंकड़ा दिखाई देता है, न्यायपालिका के उच्च स्तरों पर मुख्य रूप से पुरुष ही हैं।
- इसके अतिरिक्त, उच्च न्यायालयों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व असमान है, जिनमें बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, त्रिपुरा और उत्तराखंड जैसे राज्य शामिल हैं, जिनमें या तो कोई महिला न्यायाधीश नहीं है या केवल एक महिला न्यायाधीश है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य एवं रुझान
- कुल प्रतिनिधित्व: औसतन, विश्व के न्यायिक अधिकारियों में महिलाओं की संख्या 25% से थोड़ी अधिक है।
- हालाँकि, यह आँकड़ा क्षेत्र और देश के हिसाब से काफ़ी अलग-अलग है। कुछ क्षेत्रों में, न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या 10% से भी कम है।
- OECD देशों में प्रगति: विभिन्न OECD देशों में, अब पेशेवर न्यायाधीशों में महिलाओं की संख्या 54% से अधिक है।
- यह आंशिक रूप से हाल के दशकों में कानूनी पेशे और न्यायपालिका में प्रवेश करने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या के कारण है।
चुनौतियां
- प्रवेश स्तर पर बाधाएँ: कुछ राज्यों में भर्ती कोटा जैसे उपाय लागू किए गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप सिविल जज (जूनियर) डिवीजन में 50% से अधिक सफल उम्मीदवार महिलाएँ हैं।
- हालाँकि, ये उपाय अकेले अपर्याप्त हैं। कई राज्यों में न्यायिक सेवा नियमों के अनुसार बेंच में पदोन्नति के लिए निरंतर अभ्यास की न्यूनतम अवधि की आवश्यकता होती है, यह एक ऐसा मानदंड है जो महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करता है जो प्रायः पर्याप्त समर्थन के बिना पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाती हैं।
- अवधारण: जो महिलाएँ न्यायपालिका में प्रवेश करने में सफल होती हैं, उन्हें प्रायः एक हतोत्साहित करने वाले वातावरण का सामना करना पड़ता है जो उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहता है।
- मातृत्व लाभ, न्यूनतम वृत्ति और चाइल्डकैअर सुविधाओं जैसे सहायक बुनियादी ढाँचे की कमी उनके करियर की प्रगति को अधिक जटिल बनाती है।
- दुष्चक्र: वरिष्ठ पदों पर कम महिलाओं के साथ, महत्वाकांक्षी महिला न्यायाधीशों के लिए सीमित रोल मॉडल और सलाहकार हैं।
- यह एक पुरुष-प्रधान संस्कृति को कायम रखता है, जिससे महिलाओं के लिए कांच की छत को तोड़ना मुश्किल हो जाता है।
अन्य चुनौतियाँ
- सहायक बुनियादी ढांचे की कमी, लैंगिक रूढ़िवादिता और सामाजिक दृष्टिकोण उनकी प्रगति में बाधा डालते हैं।
- इसके अतिरिक्त, बेंच तक पहुंचने के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता उन महिलाओं के लिए एक बड़ी चुनौती है जो पारिवारिक जिम्मेदारियों को संभालती हैं।
सुझाए गए सुधार
- सरकार और न्यायपालिका की पहल: सरकार और न्यायपालिका ने लैंगिक विविधता की आवश्यकता को पहचाना है।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश ने न्यायपालिका में महिलाओं के 50% प्रतिनिधित्व के लिए समर्थन व्यक्त किया है, इस बात पर बल देते हुए कि यह अधिकार का विषय है, दान का नहीं।
- न्यायिक नियुक्तियों में सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिसमें उच्च न्यायपालिका पदों के लिए महिला उम्मीदवारों पर विचार करने की सिफारिशें शामिल हैं।
- सेवानिवृत्त उच्चतम न्यायलय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने कानूनी पेशे में महिलाओं का समर्थन करने के लिए कई उपायों की समर्थन की है जो प्रणालीगत बाधाओं को खत्म करने और समानता को बढ़ावा देने वाले वातावरण को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि महिलाएं न केवल कानूनी पेशे में प्रवेश करें बल्कि उसमें सफल भी हों।
- इनमें लचीले कार्य घंटे; माता-पिता की छुट्टी; मेंटरशिप तथा कौशल विकास; लैंगिक पूर्वाग्रह को संबोधित करना; और बुनियादी ढांचे में सुधार आदि महत्वपूर्ण हैं।
आगे की राह
- न्यायपालिका में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व को संबोधित करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। नीतिगत सुधार जो समान कार्य स्थितियों को सुनिश्चित करते हैं, जैसे मातृत्व लाभ और लचीले कार्य घंटे, महत्वपूर्ण हैं।
- इसके अतिरिक्त, महिलाओं को बनाए रखने और बढ़ावा देने के लिए एक सहायक वातावरण बनाना आवश्यक है जिसमें मेंटरशिप कार्यक्रम, लिंग संवेदनशीलता प्रशिक्षण और बुनियादी ढाँचागत सहायता शामिल है।
- न्यायपालिका को उस समाज की विविधता को प्रतिबिंबित करना चाहिए जिसकी वह सेवा करती है। न्यायपालिका में महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना न केवल निष्पक्षता का विषय है, बल्कि न्याय प्रदान करने के लिए भी आवश्यक है जो वास्तव में समावेशी और समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न |
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[प्रश्न] लैंगिक समानता में प्रगति के बावजूद, भारत में न्यायपालिका अभी भी पुरुष-प्रधान है। इस कम प्रतिनिधित्व में योगदान देने वाले कारकों पर चर्चा करें और न्याय प्रशासन पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करें। |
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