Editorial Analysis in Hindi
हाल ही में आयोजित कृषि अर्थशास्त्रियों के त्रिवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (ICAE-2024) में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि भू-राजनीतिक अशांति एवं जलवायु परिवर्तन के कारण कुपोषण तथा भुखमरी की स्थिति खराब हो रही है, और इसमें सतत कृषि-खाद्य प्रणालियों की ओर परिवर्तन’ पर ध्यान केंद्रित किया गया।
हाल के केन्द्रीय बजट भाषण में यह संकेत दिया गया था कि लोहा, इस्पात तथा एल्युमीनियम जैसे प्रदूषणकारी उद्योगों को उत्सर्जन लक्ष्यों के अनुरूप होना होगा और इन उद्योगों को वर्तमान ‘प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार’ (PAT) प्रणाली से ‘भारतीय कार्बन बाजार’ प्रणाली में परिवर्तित करने के लिए उचित विनियमन लागू करने की आवश्यकता है।
हाल के वर्षों में, औद्योगिक नीति में पुनः रुचि दिखाई गयी है – एक ऐसा विषय जो प्रायः सरकारी हस्तक्षेप और बाजार की शक्तियों के मध्यमार्ग पर है। भारत को विभिन्न अन्य देशों की तरह, औद्योगिक नीति के लिए एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है – एक ऐसा दृष्टिकोण जो निरंतर आर्थिक विकास को सुगम बना सके और देश को वैश्विक विनिर्माण केंद्र में परिवर्तित कर सके।
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